पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१४४

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बायक २४३७ बायाँ बायक-संशा पुं० [सं० वाचक ] (1) कहनेवाला । बतलाने । विशेष—इस देश में जितनी विदेशीय जातियाँ आई वे सब वाला । (२) पदनेवाला । बाँचनेवाला । (३) दूत । की सब प्रायः वायव्य कोण ही से आई। अत: बायवी बायकाट-संशा पुं० [ अं०] (8) वह व्यवस्थित बहिष्कार जी शब्द, जो वायवीय का अपभ्रंश है गैर, अज्ञात, अजनवी किसी व्यक्ति, दल या देश आदि को अपने अनुकूल बनाने ___ आदि अर्थों में रूदि हो गया है। या उससे कोई काम कराने के उद्देश्य से उसके साथ उस बायव्य-संज्ञा पुं० दे. "वायव्य"। समय तक के लिए किया जाय जब तक वह अनुकूल न बायरा-संज्ञा पुं॰ [देश॰] कुश्ती का एक पेंच । हो जाय या मांग पूरी न करे। (२) संबंध आदि का त्याग बायल-वि० [हिं० बायाँ, बायं ] (दाँव) जो खाली जाय । (दाँत्र) या बहिष्कार। जो किसी का न पड़े। (जुआरी)। बायन-संज्ञा पुं० [सं० वायन ] (1) वह मिठाई या पकवान संयोक्रि०-जाना। आदि जो लोग उत्सवादि के उपलक्ष में अपने इष्ट मित्रों : बायला-वि० [हिं० बाय+ला (प्रत्य॰)] वायु उत्पन्न करनेवाला। के यहाँ भेजते हैं। (२) भेंट । उपहार। वायु का विकार बढ़ानेवाला । जैसे,—-किपीको बैंगन बायला संज्ञा पुं० [अ० बयाना ] (१) मूल्य का कुछ अंश जो किसी किसी को बैंगन पथ्य। चीज़ को मोल लेनेवाला उसे ले जाने या पूरा दाम दुकाने बायलर-संज्ञा पु. [ अं०] भाप के इंजन में लोहे आदि धातु का के पहले मालिक को दे देता है जिसमें बात पक्की रहे बना हुआ वह बड़ा कोठा जिसमें भाप तैयार करने के लिये और वह दूसरे के हाथ न बेचे । अगाऊ । पेशगी। जल भरकर गरम किया जाता है। विशेष- व्यापारी जब किसी माल को पसंद करते हैं और बायस-संज्ञा पुं० दे. "वायस"। उसका भाव पट जाता है तब मूल्य का कुछ अंश साल के | बायस्कॉप-संशा पुं० [अ० ] एक यंत्र जिसके द्वारा पर्दे पर मालिक को पहले से दे देते हैं और शेष माल ले जाने पर चलते फिरते हिलते डोलते चित्र दिखलाए जाते हैं। इस वा किसी समय पर देते हैं। इसमे माल का मालिक उस यंत्र में एक छोटा सा छेद होता है जिसमें होकर माल को किसी दूसरे के हाथ नहीं बेच सकता है। वह धन सामने के पर्दे पर बिजली का प्रकाश डाला जाता है, जो माल पसंद होने और दाम पटने पर उसके मालिक को फिर एक पतला कीता जिसे 'फ़िल्म' कहते हैं चरखी से दिया जाता है बयाना कहलाता है। उस छेद के ऊपर तेजी से फिराया जाता है। यह फीता (२) मज़दूरी का थोड़ा अंश जो किसी को कोई काम पतला पारदर्शक और लचीला होता है। इस पर चित्रों की करने की आज्ञा देने के साथ ही इसलिये दे दिया जाता है आकृति भिन्न भिन्न चेष्टा की बनी रहती है जिसके जिसमें वह समय पर काम करने आवे, और जगह न जाय।। शीघ्रता से फिराए जाने से चित्र चलते फिरते हिलते डोलते मुहा०—बायन देना-छेड़ छाड़ करना । उ.-भले भवन अनेक चेष्टा करते दिखलाई पड़ते हैं। __ अब बापन दीन्हा । पावहुगे फल आपन की हा। तुलसी। बायाँ-वि० [सं० वाय ] [स्त्री० बाई ] (1) किसी मनुष्य या और बायबरंग-संज्ञा स्त्री० दे० "वायबिडंग"। प्राणी के शरीर के उस पार्च में पड़नेवाला जो उसके बायबिडंग-संशा पुं० [सं० विडंग ] एक लता जो हिमालय पूर्वाभिमुख खड़े होने पर उत्तर की ओर हो । 'दहना' का पर्वत, लंका और बर्मा में होती है। इसमें छोटे छोटे मटर उलटा । जैसे, बायाँ पैर, बायाँ हाथ, बाई आँख । के बराबर गोल गोल फल गुच्छों में लगते हैं जो सूखने महा०—बाँया देना=(१) किनारे से निकल जाना । बचा पर औषध के काम आते हैं। ये सूखे फल देखने में कबाब जाना । जैसे,—रास्ते में कहीं वे दिखाई भी पड़े तो बायाँ दे चीनी की तरह लगते हैं पर उससे अधिक हलके और पोले जाते हैं। (२) जान बूटाकर छोड़ना । मिलते हुए. का होते है। वैयक में इसका स्वाद घरपरा कड़वा लिखा है त्याग करना । उ०-बायों दियो विभव कुरुपति को भोजन और इसे रूखा गरम और हलका माना है। यह कृमिना जाय विदुर घर कीन्हों।-तुलसी। बायाँ पाँय पूजना- शक, कफ और बात को दूर करनेवाला, दीपक तथा धाक मानना । हार मानना । उदर रोग प्लीहा आदि में लाभकारी होता है। (२) उलटा । (३) प्रतिकूल । विरुद्ध । खिलाफ़ । अहित पO०-भस्मक । मोघा । कैराल । केवल । बेल्लस हुला । में प्रवृत्त । उ०-बहुरि बदि बलगन सति भाये । जे पिनु घोषा इत्यादि। काज दाहिनेहु बायें।-तुलसी। बायर्यावल-संशा स्त्री० दे० "बाइबिल"। संशा पुं. वह तबला जो बायें हाथ से बजाया जाता है। वायवी-वि० [सं० वायवीय ] (1) बाहरी । अपरिचित । अज यह मिट्टी या ताँबे आदि धातु का होता है। इसे अकेला नवी । अज्ञात । गैर । (२) नया आया हुआ। भी लोग ताल के लिये बजाते हैं।