पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१५३

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मालिनी २४४६ बालेष्ट हो । जो अपनी पूरी अवस्था को पहुँच चुका हो । जवान । बालुकास्वेद-संशा पुं० [सं० ] भावप्रकाश के अनुसार पसीना प्राप्त-वयस्क । नाबालिग का उलटा । कराने के लिये गरम बालू की गरमी पहुँचाने की क्रिया । विशेष-कानून के अनुसार कुछ बातों के लिये २१ वर्ष और । बालुफी-संज्ञा स्त्री० [सं० ] एक प्रकार की ककड़ी। कुछ बातों के लिये १८ वर्ष या इससे अधिक अवस्था का बालू-संज्ञा पुं० [सं० बालुका ] पत्थर या चट्टानों आदि का वह मनुष्य बालिग माना जाता है। बहुत ही महीन चूर्ण या कण जो वर्षा के जल आदि के बालिनी-संघा सी० [सं०] अश्विनी नक्षत्र का एक नाम। साथ पहाड़ों पर से बह आता और नदियों के किनारों बालिश-संज्ञा स्त्री० [फा०] तकिया। आदि पर, अथवा असर ज़मीन या रेगिस्तानों में बहुत संज्ञा पुं० [सं०] (१) बालक । शिशु । (२) मूर्ख । अबोध : अधिक पाया जाता है। रेणुका । रेत। व्यक्ति । नासमान। मुहा०----बालू की भीत=ऐसी वस्तु जो शीघ्र ही नष्ट हो जाय वि० [सं०] अबोध । अज्ञान । नासमझ । बेवकूफ । उ.-- अथवा जिसका भरोसा न किया जा सके । उ०-बिनसत बार (क) कुलहि लजावे बाल श्रालिस बजावै गाल कैयौं कर न लागहीं ओछे जन की प्रीत। अंबर डंबर साँझ के ज्यों काल बस तमकि त्रिदोष हैं। तुलसी । (ख) बालिग बालू की भीत। वासी अबध के बूझियो न खाको । ते पाँवर पहुँचे तहाँ संशा स्त्री॰ [ देश० ] एक प्रकार की मछली जो दक्षिण जाहाँ मुनि मन थाको।-तुलसी। भारत और लंका के जलाशयों में पाई जाती है। वालिश्त-संक्षा पुं० [फा०] एक प्रकार की माप जो प्राय: बारह बालूक-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का विष । अंगुल से कुछ ऊपर और लगभग आध फुट के होती चालूचर-संज्ञा पुं० [बालूचर-एक स्थान ] बंगाल के बालूचर है। हाथ के पंजे को भरपूर फैलाने पर अंगूठे की नोक से नामक स्थान का गांजा जो बहुत अच्छा समझा जाता है। लेकर कानी उँगली की नोक तक की दूरी । बिलम्त । | (अब यह गाँजा और स्थानों में भी होने लगा है।) बीता। बालूचरा-संज्ञा पुं० [हिं० बालू+चर ] वह भूमि जिस पर बहुत वालिश्य-संज्ञा पुं० [सं०] मूर्खता । अज्ञानता । नासमझी। उथला या छिछला पानी भरा हो। चर । ( लश.) बेवकूफी। बालूदानी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बालू-+-फा० दानी ] एक प्रकार की वालिस-न-संशा स्त्री० [ अं० बलास्ट ट्रेन ] वह रेलगाड़ी जिस मुअरीदार डिबिया जिसमें लोग बालू रखते हैं। इस बालू पर सरक बनाने के सामान ( कंकड़ आदि) लाद कर भेजे से वे स्याही सुखाने का काम लेते हैं। (साधारणतः जाते हैं। वहीखाता लिखनेवाले लोग, जो सोरस्ते का व्यवहार नहीं बाली-संज्ञा स्त्री० [सं० पालिका ] कान में पहनने का एक प्रसिद्ध करते, इसी बादानी से तुरंत के लिखे हुए लेखों पर आभूपण जो सोने या चाँदी के पतले तार का गोलाकार ! बालू छिड़कते हैं और फिर उस बालू को उसी डिबिया की बना होता है। इसमें शोभा के लिये मोती आदि भी अझरी पर उलट कर उसे डिबिया में भर लेते है। प्राचीन पिरोए जाते हैं। काल में इसी प्रकार लेखों की स्याही सुखाई जाती थी। संज्ञा स्त्री० [हिं० बाल ] जो गेहूँ ज्वार आदि के पौधों का | बालूघुर्द-वि० [हिं० बाल+फा० बुर्द ले गया ] बाल द्वारा नष्ट वह ऊपरी भाग या सींका जिसमें अन्न के दाने लगते हैं। किया हुआ। दे. "बाल"। संज्ञा पुं० वह भूमि जिसकी उर्वरा शक्ति बालू पढ़ने के संज्ञा स्त्री० [देश०] हथौड़े के आकार का फसेरों का एक कारण नष्ट हो गई हो। औज़ार जिसमे वे लोग बरतनों की कोर उठाते हैं। बालूसाही-संज्ञा स्त्री० [हिं० बालू+साही अनुरूप ] एफ प्रकार संशा पु० दे. "बालि"। की मिठाई । इसके लिये पहले मैदे की छोटी छोटी टिकिया बाली-सवरा-संशा पुं० [ बाला ? +हिंसबरा ] वह सबरा जिस बना लेते हैं और उनको घी में तल कर दो तार के शीरे से करे थाली या परात की कोर उभारते हैं। में डुबा कर निकाल लेते हैं। यह खाने में बालू सी खस- बालुफ-संज्ञा पुं० [सं०] (१) एलुवा । (२) पनिवाल।। खसी होती है। बालुका-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) रेत । याल । (२) एक प्रकार बालेय-संशा पुं० [सं०] (१) गदहा । खर । (२) चावल । का कपूर। (३) ककदी। वि० (१) मृदु । कोमल । (२) जो बालकों के लिये बाल्ट्रकायंत्र-संज्ञा पुं० [सं०] औषध आदि को फूंकने का वह : लाभदायक हो । (३) जो बलि देने के योग्य हो। बलि- यंत्र जिसमें औषध को बालू भरी हाँदी में रख कर आग दान करने लायक। पर रखते या आग से चारों ओर से ढकते हैं। | बालेट-संज्ञा पुं० [सं०] बेर ।