पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बाटी २४४७ बास बाल्टी-संशा स्त्री० दे. "बालटी"। बावरचीखाना-संज्ञा पुं० [फा०] भोजन पकने का स्थान । बाल्य-संशा पुं० [सं०] (1) बाल का भाव । लरकपन । बच्च पाकशाला । रसोईघर । पन । (२) बालक होने की अवस्था । बावरा-त्रि० दे० "बाबा"। वि० (१) बालक-संबंधी। बालक का । (२) बालक | बाचरि* -संज्ञा स्त्री० दे."बावली"। की अवस्था से संबंध रखनेवाला । बचपन का। बावरी -वि० दे० "बावली"। बाल्यावस्था-संज्ञा स्त्री० [सं०] प्राय: सोलह सम्रह वर्ष तक | वाचल-संज्ञा पुं० [सं० वायु। आँधी । अंधर । (डिंगल) की अवस्था । बालक होने की अवस्था । युवावस्था से वावला-वि० [सं० वातुल, प्रा० बाउल | जिसे वायु का प्रकोप पहले की अवस्था । लड़कपन । हो। पागल। विक्षिप्त सनकी। बाव-संशा पुं० [सं०] (1) वायु । हवा । पवन । उ.- ' बावलापन-संज्ञा पुं० [हिं० बावला+पन (प्रत्य॰)] पागलपन । दादु बलि सुम्हारे बार जी गिणत न राणा राव । मीर खिड़ीपन । अक। मलिक प्रधान पति तुम बिन सत्र ही बाव-दान । (२) बावली-संशा स्त्री० [सं० बाप+डी या ना (प्रत्य०) 1(१) चौड़े मुँह वाई। (३) अपान वायु । पाद । गोज । का कुआँ जिसमें पानी तक पहुँचने के लिये सीढ़ियाँ बनी महा-बाव रसना-अपान वायु का निकलना । पाद नियां । हो। (२) छोटा गहरा तालाब जिसमें पानी तक सीढ़ियाँ हों। (३) हजामत का एक प्रकार जिसमें माथे से लेकर संज्ञा पुं॰ [फा० बाब ] ज़मींदारों का एक हक जो उनको चोटी के पास तक के घाल चार पांच अंगुल चौड़ाई में अमामी की कन्या के विवाह के समय मिलता है। मद । kड़ दिए जाते है जिससे सिर के ऊपर चूल्हे का सा वच । भुरस। आकार बन जाता है। बावड़ी-संशा सी० [सं० वाप+डी (प्रत्य॰)] (1) वह चौड़ा और बाव -वि० [सं० वाम J (1) बाई ओर का । (२) बड़ा कुओं जिसमें उतरने के लिये सीढ़ियाँ होती है। प्रतिकूल । विरुद्र । उ०—(क) प्रभु रुग्व निरखि निराम बावली । (२) छोटा तालाब। भरत भए जान्यो है सबहि भाँति विधि बावों 1---तुलसी। बावन-संज्ञा पुं० दे० “वामन"। (ख) धरह धीर बलि जाउँ तात मोकी आजु विधाता संज्ञा पुं० [सं० द्विपंचाशत पा० द्विपण्णासा, प्रा. विवण्णा 1 दूपण्णासा, प्रा. विवण्णा] बावों।–तुलम्पी। पचास और दो की संख्या या उसका सूचक अंक, जो बाशिंदा-संज्ञा पुं० [फा०] रहनेवाला । निवासी। इस प्रकार लिखा जाता है--५२ ॥ बाकल-संज्ञा पुं० [सं० 1 (3) एक दैत्य का नाम । (२) वीर । वि० पचास और दो। छब्बीस का दूना । योद्धा । (३) एक उपनिषद् का नाम । (४) एक ऋषि मुहा०-बावन तोले पाव रत्ती-जो हर तरह से बिलकुल का नाम । ठीक हो। बिलकुल दुरुस्त । जैसे,—आपकी सभी बातें बावन बाप-संज्ञा पुं० [सं० बाप ] (१) भाप । (२) लोहा । (३) तोले पाव रत्ती हुआ करती हैं। बावन बीर बहुत अधिक अश्रु । आँसू । (४) एक प्रकार की जड़ी। (५) गौतम वीर या चतुर । बड़ा बहादुर और चालाक । बुद्ध के एक शिष्य का नाम । बावनवाँ-वि० [हिं० बावन+वाँ (प्रत्य॰)] गिनती में बावन के | बाष्पी-संशा श्री० [सं०] हिंगुपत्री । स्थान पर पड़नेवाला । जो क्रम में वावन के स्थान पर हो। बासंतिक-वि० [सं०1 (1) बसंतऋतु संबंधी। (२) बसंत बावना-वि० दे० "बौना"। ऋतु में होनेवाला । बावभक-संशा स्त्री० [हिं० वाव वायु+अनु० भक ] पागलपन । बासंती-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) अडमा । बासा । (२) सिद्दीपन । झक। माधवीलता। बावर*1-वि० [सं० वातुल, प्रा० बाउल, हिं० बावला ] (१)पागल। बास-संशा पुं० [सं० वास ] (१) रहने की क्रिया या भाव । थावला । उ.-पियवियोग अस वायर जीऊ । पपिहा जस निवास । (२) रहने का स्थान निवासस्थान । (३) बू । बोल पिउ पीक ।-जायसी। (२) मूर्ख । बेवकूफ । गंध । महक । (५) एक छंद का नाम। (५) वख करड़ा। निर्बुद्धि । उ०-राजै दुई दिसा फिर देखा । पडित बावर, पोशाक। उ.--(क) जहाँ कोमलै बल्कलै बास सोहैं। कौन सरेखा ।-जायली। जिन्हें अल्पधी कल्पशाखी विमोहैं। केशव । (ख) पाँच संज्ञा पुं० [फा०] यकीन । विश्वास । घरी चौथे पहर पहिरति राते बास । करति अंग रचना वावरची-संज्ञा पुं० [फा०] भोजन पकानेवाला । रसोइया ।। बिबिध भूपन भेष बिलास ।-देव । यौ-बावरचीखाना। संशा स्त्री० [सं० वासना] वासना ।इच्छा । लालच ।