पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१५७

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बाहिर २४५० चिंग अर्थात् हाथी, ८१ रथ, २४३ सवार और ४०५ पैदल स्युत । पतित । निकृष्ट । उ०-कपटी कायर कुमति कुजाती। हों। (२) सेना । फौज । (३) सवारी । यान । (४) नदी। लोक वेद बाहेर सब भाँती। तुलसी । बाहिर-क्रि० वि० दे. "बाहर"। बाह्मन-संज्ञा पुं० दे. "ब्राह्मण" । बाही -संशा खी. दे. "बाँह"। बाह्य-वि० [सं०] बाहरी । बाहर का । बाहु-संज्ञा स्त्री० [सं०] भुजा । हाय । यौह। संज्ञा पुं० [सं०] (1) भार ढोनेवाला पशु । जैसे, बैल, बाहुक-संश। ५० [सं०] (9) राजा नल का उस समय का नाम गधा, ऊँट आदि । (२) सवारी । यान । जब वे अयोध्या के राजा के सारथी बने थे। (२) नकुल बाहाकण-संज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक नाग का नाम । (३) एक नाग का नाम । का नाम । बाहुज-संज्ञा पुं० [सं०] क्षत्रिय, जिनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के हाथ बाहाकुंड-संज्ञा पुं॰ [सं०] एक नाग का नाम । से मानी जाती है। बाह्यतपश्चर्या-संज्ञा स्त्री० [सं०] जैनियों के अनुसार तपस्या बाहुत्राण-संज्ञा पुं० [सं० ] चमड़े या लोहे आदि का वह दम्ताना । का एक भेद । यह छ: प्रकार की होती है-अनशन, जो युद्ध में हाथों की रक्षा के लिये पहना जाता है। औनोदर्य, वृत्तिसंक्षेप, रसत्याग, कायक्लेश और लीनता । बाहुदंती-रांशा . [ मं० बादनिन् ] इंद्र। • बाह्यद्रगति-संज्ञा पुं० [सं०] पारे का एक संस्कार । (वैद्यक) बाहुदा-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) महाभारत के अनुसार एक नदी बाहापटी-संज्ञा बी० [सं०] जवनिका । नाटक का परदा । का नाम । (२) राजा परीक्षित की पत्नी का नाम । बाह्यभ्यंतर-संशा पु० [सं०] प्राणायाम का एक भेद जिसमें बाहुप्रलंब-वि० [सं०] जिसकी बाँहें बहुत लंबी हों। आजानु आते और जाते हुए श्वास को कुछ कुछ रोकते रहते हैं। बाहु । (ऐसा व्यक्ति बहुत वीर माना जाता है।) बाह्यभ्यंतराक्षेपी-संभा पुं० [सं०] प्राणायाम का एक भेद । बाहुबल-मंशा पुं० [सं० । पराक्रम । बहादुरी । उ.-श्री हरि-: जव प्राण भीतर से बाहर निकलने लगे, तब उसे निकलने दास के स्वामी शाम कुंजविहारी कहत राखि लै बाहुबल न देकर उलटे लौटाना; और जब भीतर जाने लगे तब ही बपुरा काम दहा ।-स्वा. हरिदास । उसको बाहर रोकना। बाहुभेदी-संज्ञा पुं० [सं० बाहुभदिन् । विष्णु । । वाह्यविधि-संगा भी० [सं० ] एक प्रकार का रोग जिसमें शरीर बाहुमूल-संज्ञा पुं० [सं० ] कंधे और बांह का जोड़। के किसी स्थान में सूजन और फोड़े की सी पीड़ा होती बाहुयुद्ध-संज्ञा पुं० [सं०] कुश्ती । है। इस रोग में रोगी के मुँह अथवा गुदा से मवाद बाहुरना -कि० अ० दे० "बहुरना"। निकलता है। यदि मवाद गुदा से निकले तब तो रोगी साध्य बाहुल-संज्ञा पुं० [सं०] (1) युद्ध के समय हाथ में पहनने की माना जाता है। पर यदि मवाद मुंह से निकले तो वह एक वस्तु जिससे हाथ की रक्षा होती थी। दस्ताना । (२) असाध्य समझा जाता है। कार्तिक मास । (३) अग्नि । आग। 'बाह्यविषय-संज्ञा पुं० [सं०] प्राण को बाहर अधिक रोकना। बाहुलप्रीव-संशा पुं० [सं०] मोर । बाह्यवृत्ति-संज्ञा स्त्री० [सं०] प्राणायाम का एक भेद जिसमें बाहुल्य-संज्ञा पुं० [सं० । बहुतायत । अधिकता । ज्यादती। भीतर से निकलते हुए श्वास को धीरे धीरे रोकते हैं। बाहुविस्फोट-संज्ञा पुं० [सं०] ताल ठोंकना । बाह्याचरण-संज्ञा पुं० [सं०] केवल दिखौआ आचरण । आडंबर। बाहुशाली-संज्ञा पुं० [सं० बाहुशालिन् ] (१) शिव। (२) भीम। ढकोसला । (३) एतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम । (४) एक दानव का बाह्यायाम-संज्ञा पुं० [सं० ] वायु संबंधी एक रोग जिसमें रोगी नाम । की पीठ की नसें खिंचने लगती है और उसका शरीर पीछे बाहुशोष-संज्ञा पुं० [सं०] बाँह में होनेवाला एक प्रकार का की और को झुकने लाता है। धनुस्तंभ। वायु रोग जिसमें बहुत पीड़ा होती है। बाहीक-संज्ञा पुं० [सं०] कांयोज के उत्तर प्रदेश का प्राचीन बाहुश्रुत्य-संशा पुं० [सं.] बहुश्रुत होने का भाव । बहुत सी ' नाम जहाँ आज कल बलख है। यह स्थान काबुल से बातों की, सुन कर, प्राप्त की हुई जानकारी। उसर की ओर पड़ता है। इसका प्राचीन पारसी नाम बाहुसंभव-संशा पुं० [सं०] क्षत्रिय, जिनकी उत्पत्ति ब्रह्माकी अक्कर है जिससे यूनानी शब्द बैक्ट्रिया बना है। बाँह से मानी जाती है। | थिंग*-संज्ञा पुं० [सं० व्यंग्य ] (1) वह चुभती हुई बात बाहुहजार-संशा पु. दे. "सहस्रबाहु"। जिसका कुछ गूढ अर्थ हो । व्यंग्य । काकोक्किा विशेष-- बाहू-संज्ञा स्त्री० दे० "बाहु"। दे. "व्यंग्य"। उ-(क) करत बिंग ते बिंग दूसरी बाहेर-क्रि० वि० [हिं० बाहर ] अपने स्थान से या पद आदि से | जुक्त अलंकृत माही। सूरदास ग्वालिन की बातें