पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१७

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फाफर २३१० फालकृष्ट (२) शीशे की मृदंगी, कमल वा गिलास आदि जिसमें : नमूने जिनमें यह दिखाया रहता है कि कहाँ क्या क्या बत्तियाँ जलाई जाती हैं। (३) समुद्र के किनारे का वह दात लिखनी चाहिए । (२) छपाई में एक पूरा तम्ता जो ऊँचा स्थान जहाँ रात को इसलिये प्रकाश जलाया जाता एक बार एक साथ छापा जाता हो। (३) छापने के लिए है कि जहाज़ उसे देखकर अंदर जान जाय । दीलिया। बैठाए हुए उतने अक्षर जिसने एक तख्ता छापने के लिए (४) [अं० फरनेस ] ईटों आदि की भट्टी जिसमें आग पूरे हों। सुलगाई जाती है और जिस के ताप से अनेक प्रकार के काम फारस-संज्ञा पुं० दे. “पारस"। लिए जाते हैं। जैसे, लोहा, ताँबा, गंधक आदि गलाना। फारसी-संज्ञा स्त्री० [फा०] फारस देश की भाषा । फाफर-संथा पुं० [सं० पर्पट ] कूटू । कूल । दे. "कुटू"। । फारा-संज्ञा पुं० [सं० फाल ] (१) फाल । कतरा । कटी हुई फाफा-संशा स्त्री॰ [ अनु० ] दाँत गिर जाने से 'फा फा' करके फॉक । उ.-धे ठाढ़ सेष के फारे। छौंकि साग पुनि बोलनेवाली बुढ़िया । पोपली बुदिया। सौधि उतारे।-जायसी । (२) दे. "फाल"। (३) मुहा०—फाफा कुटनी-इधर उधर करनेवाली स्त्री । मुदिया जो कुटनपन करती वा इधर उधर करती हो। फार्म-संज्ञा पुं० दे० "फारम"। फाय*-संज्ञा स्त्री० [सं० प्रभा, प्रा. पभा विपर्याय शोभा । फबन । फाल-संज्ञा स्त्री० [सं०] लोहे की चौकोर लंबी छब जिसका सिरा छथि । उ०-कहै पदमाकर फराफत फरसबंद, फहरि नुकीला और पैना होता है और जो हल की कड़ी के नीचे फुहारन की फरस फनी है फाय।-पनाकर । लगा रहता है। जमीन इसी से खुदती है । कुस । कुसी। फाबना*1-क्रि० अ० दे० "फवना"। विशेष-सं. में यह शब्द है। फायदा-संज्ञा पुं० [अ० ] (1) लाम । नफा । प्राप्ति । आय। संज्ञा पुं० [सं०] (१) महादेव । (२) बलदेव । (३) जैन्पे, इस शेज़गार में बड़ा फायदा है। (२) प्रयोजन फावड़ा । (४) नौ प्रकार की देवी परीक्षाओं या दिव्यों में सिसि । मतलब पूरा होना । जैसे, उससे पूछने से कुछ से एक जिसमें लोहे की तपाई हुई फाल अपराधी को चटाते फायदा नहीं, वह न बतायेगा। (३) अच्छा फल । अच्छा थे और जीभ के जलने पर उसे दोषी और न जलने पर नतीजा । भला परिणाम । जैसे, महात्माओं का उपदेश निर्दोष समझते थे। सुनने से बहुत फायदा होता है। (४) उत्तम प्रभाव । संज्ञा स्त्री० [सं० फलक वा हिं० फाडना ] (१) किसी ठोस अच्छा असर । पुरी से अच्छी दशा में लाने का गुण । चीज़ का फाटा या कतरा हुआ पतले दल का टुकड़ा । जैसे, जैसे, इस दवा ने बहुत फायदा किया। सुपारी की फाल । (२) कटी सुपारी । छालिया। क्रि० प्र०—करना ।—होना । संज्ञा पुं० [सं० प्लव ] (1) चलने या कूदने में एक स्थान मुहार-फायदे का फायदा पहुंचानेवाला । लाभदायक । से उठाकर आगे के स्थान में पैर जालना । । फलांग। फायदेमंद-वि० [फा०] लाभदायक । उपकारक । उ.-धनि बाल सुचाल सों फाल भरे लौ मही रंग लाल फायर-संज्ञा पुं॰ [अं०] (1) आग। (२) दे. "र"। में बोरति है।-सेवक। फायरमैन-संवा पुं० [अ०] वह कर्मचारी जोन में कोयला | मुहा०-फाल भरना-कदम रखना । डग भरना । फाल झोंकने का काम करता है। बाँधना-फलाँग मारना । कूदकर एक स्थान से दूसरे स्थान फाया-संशा पुं० दे० "फाहा"। पर जाना । उछलकर लाँघना । उ.-कहै पदमाकर त्यो फार*-संहा पुं० [हिं० फारना ] (१) फार । फाल । खंर। हुँकरत, फुकरत, फैलत फलात, फाल बाँधत फलका उ.-धमकहि चीज होड़ उजियारा । जेहि सिर पर हो में -पनाकर। दुइ फारा।—जायसी। (२) दे. "फाल"। (२) स्खलने या कूदने में उस स्थान से लेकर जहाँ से पैर फारखती-संज्ञा स्त्री० [अ० फारिग+खती ] वह लेख या कागज उठाया जाय उस स्थान तक का अंतर जहाँ पैर पदे । कदम जिसके द्वारा किसी मनुष्य को उसके दायित्व से मुक्त किया भर का फासला । पैं। उ.-(क) तीन फाल वसुधा सब जाय । वह कागज या लेख जो इस बात का सबूत हो कि कीनी सोह वामन भगवान -सूर । (ख) धरती करते एक किसी के जिम्मे जो कुछ था, वह अदा हो गया। पग, दरिया करते फाल। हाथन परबत तोलते तेऊ खाये चुकती । बेबाकी । काल । -कबीर। क्रि०प्र०-लिखना। | फालकृष्ट-वि० [सं०] (1) हल से जोता हुआ । जैसे, फालकृष्ट फारना*-क्रि० स० दे. "फादना"। भूमि । (२) जो हल से जोते हुए खेत में उत्पन्न हो। फारम-संज्ञा पुं० [अं०] (1) दरखास्त, बहीखाते, रसीद आदि के विशेष-बहुत से व्रतों में फालकृष्ट पदार्थ नहीं खाए जाते ।