पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१९

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फासला २३१२ फिटकिरी है और लहसुन की सी गंध भरी भाप छोड़ता है। अँधेरे फिकार-संचा पुं० [?] चेने की तरह का एक मोटा अन्न । फिकई। में देखने से उसमें सफेद लफ्ट दिखाई पड़ती है। यदि फिकिर-संञ्चा स्त्री० दे० "फिक"। गरमी अधिक न हो तो यह मोम की तरह जमा रहता है फिक्र-संज्ञा स्त्री० [अ०] (1) चिंता । सोच । खटका । दुःखपूर्ण और छुरी ये काटा या खुरचा जा सकता है। पर १०८ मात्रा ध्यान । उदास करनेवाली भावना। का ताप पाकर यह पिघलने लगता है और ५५० मात्रा के क्रि० प्र०—करना ।—होना । ताप में भाव होकर उड़ जाता है । यह बहुत सी धातुओं . (२) ध्यान । विचार । चित्त अस्थिर करनेवाली भावना। के साथ मिल जाता है और उनका रूपांतर करता है। इसे । जैसे,-काम के आगे उसे खाने पीने की भी फिक नहीं तेल या घरची में घोलने पर ऐसा तेल तैयार हो जाता है जो रहती। अँधेरे में चमकता है। दियासलाई बनाने में इसका बहुत मुहा०-फिक लगना ऐसा ध्यान बना रहना कि चित्त अस्थिर प्रयोग होता है। और भी कई चीजें बनाने में यह काम रह । ख्याल या खटका बना रहना । आता है। औषध के रूप में भी यह बहुत दिया जाता है (३) उपाय की उद्भावना । उपाय का विचार । यत्न । क्योंकि डाक्टर लोग इसे बुद्धि का उद्दीपक और पुष्ट मानते तदबीर । जैसे,—अब तुम अपनी फिक्र करो, हम तुम्हारी हैं। ताप के मात्राभेद से फासफरस का गहरा रूपांतर मदद नहीं कर सकते। भी हो जाता है। जैसे, बहुत देर तक २१२ मात्रा की गरमी फिक्रमंद-वि० [फा०] चिंताग्रस्त । से कुछ कम गरमी में रखने से यह लाल फासफरस के रूप फिवकुर-संज्ञा पुं० [सं० पिछः लार ] फेन जो मूर्छा या बेहोशी में हो जाता है। तब यह इतना ज्वलनशील और विषैला आने पर मुंह से निकलता है। नहीं रह जाता और हाथ में अच्छी तरह लिया जा सकता है। क्रि० प्र०-निकालना ।-बहना। फासला-संज्ञा पुं० { अ.] दूरी । अंतर। फिट-अन्य • [ अनु० ] धिक् । छी । थुड़ी। (धिक्कारने का शब्द) फास्ट-वि० 1 अं०] (१) तेज । (२) शीघ्र चलनेवाला । शीघ्र- यौ०-फिट फिट=धिकार है, धिक्कार।थुड़ी है । छी छी। लानत है। गामी । वयवान् । जैसे, फास्ट पैसिंजर । फिटकरी-मंज्ञा स्त्री० दे० "फिटकिरी"। विशेष-जब घई की चाल बहुत तेज होती है, तब उसे फिटकार-संज्ञा पुं० हिं० फिट+कार ] (1) धिक्कार । लानत । फास्ट कहते हैं। क्रि० प्र०--खाना ।—देना।। फाहा-संज्ञा पुं० [सं० फाल :रूई का का सं० पोत -कपड़ा, प्रा. पोय, मुहा०–मुई पर फिटकार बरसना-फिट्टा मुंह होना । चहरा हिं० फोया ] (1) तेल, घी आदि चिकनाई में तर की हुई फीका या उतरा हुआ होना । मुख मलिन होना । मुख की कपड़े की पट्टी वा रूई का लच्छा। फाया। पाया। (२) कांति न रहना । श्रीहत होना । मरहम से तर पट्टी जो घाव, फोड़े आदि पर रखी जाती है। (२) शाप । कोपमा । बद दुआ। फाहिशा--वि० [अ०] छिनाल । पुंश्चलं। मुहा०—फिटकार लगना शाप लगना । शाप ठीक उतरना । फिकरना-क्रि. अ. दे. "फैकरना"। (३) हलकी मिलावट । बास भावना । जैसे,—इसमें केवड़े फिकवाना-क्रि० स० [हिं० फेंकना ] फेंकने का प्रेरणार्थक रूप की फिटकार है। फेंकने का काम कराना। फिटकिरी-संज्ञा स्त्री० [स० स्फटिका, स्फटिकारि, फाटकी] एक मिश्र फिगक-संशा पु० [सं०] फिंगा नामक पक्षा। खनिज पदार्थ जो सल्फेट आफ पोटाश और सलाट आफ़ फिंगा-संज्ञा पुं० [सं० फिंगक ] एक प्रकार का पक्षी जिसके पर अलमीनियम के मिलकर पानी में जमने से बनता है। यह भूरे, चोंच पीली और पंजे लाल होते हैं। यह सिंध से ! स्वच्छ दशा में स्फटिक के समान श्वेत होता है, इसीसे इमे आसाम तक ऐसे घड़े बड़े मैदानों में जहाँ हरी घास स्फटिका या फिटकिरी कहते हैं।मैल के योग से फिटकिरी अधिकता से होती है, छोटे छोटे झंडों में पाया जाता है। लाल, पीली और काली भी होती है। यह पानी में इसके झुंड में से जहाँ एक पक्षी उड़ता है, वहाँ बाकी सत्र धुल जाती है और इसका स्वाद मिठाई लिए हुए बहुत भी उसीका अनुकरण करते हैं। इसकी लयाई प्रायढेर ही कसैला होता है। हिंदुस्तान में बिहार, सिंध, कच्छ, बालिक्त होती है और यह वर्षा ऋतु में तीन अंडे देता और पंजाब में फिटकिरी पाई जाती है। सिंधु नद के किनारे कालाबाग और पिछली घाटी के पास कोटकिल फिटकिरी फिकई-संशा स्त्री० [ ? ने की तरह का एक मोरा अन्न जो निकलने के प्रसिद्ध स्थान हैं। फिटकिरी मिट्टी के साथ मिली बुंदेलखंड में होता है। रहती है। मिट्टी को लाकर छिछले हौज़ों में बिछा देते है फिकर-संज्ञा स्त्री० दे."फिक"। और ऊपर से पानी डाल देते हैं । अरूमीनियम सलफेट पानी