पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१९३

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खुरापन २४८६ चीरने पर उसमें से निकलता है। एकड़ी का चूरा । कुनाई। बादशाह रह जाता है। उस समय बाज़ी 'पुर्व' कहलाती (२) चूर्ण । चूरा । (20) और आधी मास समझी जाती है। धुगपन-संज्ञा पुं० दे० "बुराई"। | बुरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बुरकना ] बोने का वह दंग जिसमें बीज बुरुड-संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक जाति जिसकी गणना अत्यजों में | हल की जोत में डाल दिए जाते हैं और उसमें से भाप से आप गिरते चलते हैं। बुरुश-संज्ञा पुं० [ अं० ब्रश ] अंगरेज़ी ढंग की बनी हुई किसी बर्श-संशा पुं० ० "बुरुश"। प्रकार की कूची जो चीज़ों को रंगने, साफ करने या पालिश 'बुलंद-वि० [फा० बलंद] (1) भारी । उसंग। जैसे, बुलंद भादि करने के काम में आती है। भावाज़, बुलंद हौसला। (२) जिसकी ऊँचाई अधिक विशेष-बुरुश प्राय: कूटी हुई मूंज या कुछ विशेष पशुओं के हो। बहुत ऊँचा । बालों से बनाए जाते और भित्र भित्र कार्यों के लिये बुलंदी-संज्ञा स्त्री० [फा० बलंदी ] (1) बुलंद होने का भाव । भित्र भिन्न आकार प्रकार के होते हैं। रंग भरने या पालिश (२) ऊँचाई। श्रादि करने के लिए जो बुरुश बनते हैं, उनमें प्राय: मूंज बुलडाग-संज्ञा पुं० [अ० ] मझोले आकार का एक प्रकार का या बालों का एक गुच्या किसी लंबी लकदी या दस्ते के! विलापती कुत्ता जो बहुत बलवान, पुष्ट और देखने में एक सिरे पर लगा रहता है। चीजों को साफ करने के भयंकर होता है। लिए जो बुरुश बनाए जाते हैं, उनमें प्रायः काठ के एक बुलबुल-संज्ञा स्त्री० [अ०, का0 ] एक प्रसिद्ध गानेवाली छोटी चौड़े टुकड़े में छोटे छोटे बहुत से छेद करके उनमें एक चिड़िया जो कई प्रकार की होती और एशिया, पूरोप तथा विशेष क्रिया और प्रकार से मूंज या बालों के छोटे छोटे अमेरिका में पाई जाती है। ऊपर की ओर इसका रंग गुच्छे भर देते हैं। कभी कभी ऐसे काठ के टुकड़ों में एक काला, पेट के पास भूरा और गले के पास कुछ सफेद दस्ता भी लगा दिया जाता है। बुरुश प्रायः मूंज या . होता है। जब इसकी दुम कुछ लाल रंग की होती है तब नारियल, बेंत आदि के रेशों से अभषा चोदे, गिलहरी, .. इसे गुलछुम कहते हैं। यह प्रायः एक बालिश्त लंबी ऊँट, सूअर, भालू, बकरी आदि पशुओं के बालों से बनाए : होती है और झादियों या जंगलों आदि में ज़मीन पर या माते हैं। साधारणतः बुरुश का उपयोग कपड़े, टोपियाँ, उससे कुछ ही ऊँचाई पर घोंसला बना कर रहती है और चिमनियाँ, तरह तरह के दूसरे सामान, बाल, दाँत आदि ४-५ अंडे देती है। यह ऋतु के अनुसार स्थान का साफ़ करने अथवा किसी चीज़ पर रंग आदि चढ़ाने में परिवर्तन करती है। इसका स्वर बहुत ही मधुर होता है होता है। और इसी लिये लोग इसे पालते हैं। कहीं कहीं लोग बुरुल-संज्ञा पुं० 1 देश० ] एक प्रकार का बहुत बड़ा वृक्ष जो . इसको लड़ाते भी हैं। जंगलों आदि में यह दिखाई तो हिमालय में १३००० फुट की ऊँचाई तक होता है। इसको , बहुत कम पड़ती है, पर इसका मनोहर शब्द प्रायः सुनाई छाल बहुत सफेद और चमकीली होती है, जिससे पहाडी पड़ता है। फारसी और उर्दू के कवि इसे फूलों के प्रेमी लोग झोपड़े बनाते हैं। इसकी लकड़ी छत पाटने और पत्ते नायक के स्थान में मानते हैं। (उवाले इस शब्द को चारे के काम में आती है। पुल्लिंग मानते हैं।) बर्ज-संशा पुं० [अ०] (1) किले आदि की दीवारों में, बुलबुलचश्म-संशा स्त्री० [फा०] एक प्रकार की सहिली (पक्षी)। कोनों पर आगे की ओर निकला अथवा आस पास : बुलबुलवाज-संज्ञा पुं० [फा०] वह जो बुलबुल पालता या की इमारत से ऊपर की ओर उठा हुआ गोल या लदाता हो । बुलबुल का खिलाड़ी या शौकीन । पहलदार भाग जिसके बीच में बैठने आदि के लिए बुलबुलबाजी-संज्ञा स्त्री॰ [फा०] बुलबुल पालने या लगाने का मोबा सा स्थान होता है। प्राचीन काल में प्रायः इस काम । बुलबुलबाज़ का काम । पर रखकर तो चलाई जाती थीं। गरगज । (२) मीनार बुलबुला-संशा पुं० [सं० बुबुद ] पानी का बुल्ला । बुदबुदा । का उपरी भाग, अथवा उसके आकार का इमारत का बुलवाना-क्रि० स० [हिं० बुलाना का प्रे० रूप] बुलाने का कोई अंग। (३) गुंबद । (४) गुब्बारा। (५)राशि- : काम दूसरे से कराना । दूसरे को बुलाने में प्रवृत्त चक्र। (ज्यो.) करना। धुर्व-संवा स्त्री० [फा०] (1) उपरी आमदनी । उपरी लाभ । ' बुलाक-संज्ञा पुं० [ तु.] वह लंबोतरा या सुराहीदार मोती जिसे नफा । (२) शर्त । हो। बाज़ी। (३) शतरंज खेल चियाँ प्रायः नय में या दोनों नयनों के बीच के परदे में में वह अवस्था जब सब मोहरे मर जाते है और केवल ] पहनती हैं।