पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२०९

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बेलनदार २५०२ बेवरेबाजी २. संज्ञा पुं० [देश॰] (1) एक प्रकार का जबहन धान । है। (२) मल्लिका । त्रिपुरा । (३) बेले के फूल के आकार (२) एक में मिलाई हुई वे दो नावें जिनकी सहायता से का एक प्रकार का गहना । इबी हुई नाव पानी में में निकाली जाती है। संशा पुं० [सं० वेला ] (1) लहर। उ०बेला सम बढ़ि बेलनदार-वि० [हिं० बेलन+फा० दार (प्रत्य॰)] बेलनवाला। सागर रण में। सब कह कूल सरिस तेहि क्षण मैं। जिसमें बेलन लगा हो। (२) चमदे की वनो हुई एक प्रकार की छोटी कुरिहण घेलना-संज्ञा पुं० [सं० वलन ] काठ का बना हुआ एक जिग्नमें एक लंधी लकदी लगी रहती है और जिसकी प्रकार का लंबा दस्ता जो बीच में मोटा और दोनों सहायता से तेल नापते या दूसरे पात्र में भरने हैं। और कुछ पतला होता है और जो प्रायः रोटी, पूरी, । (३) कटोरा । उ०-बेला भरि हलधर को दीन्हों। पीवत कचौरी आदि की लोई को चकले पर रखकर बेलने के पै बल अस्तुति कीन्हों। सूर । (४) समुद्र का किनारा । काम आता है। यह कभी कभी पीतल आदि का भी उ.-बरनि न जाइ कहाँ लौ बरनौं प्रेम जलधि बेला बनता है। बल बोरे -सूर। (५) समय । वक्त । (६) दे. क्रि० स० (1) रोटी, पी, कचौरी आदि को चकले पर "बेला"। रखकर वेलने की सहायता से दवाते हुए पकाकर बड़ा और ! बेलाग-वि० [फा. वे+हिं० लाग-लगायट ] (1) जिसमें किसी पतला करना । (२) चौपट करना । नष्ट करना। प्रकार की लगावट वा संबंध न हो। बिलकुल अलग। (२) मुहा०-पापड़ बेलना-काम बिगाड़ना। चौपट करना । माफ़ । खरा। (३) विनोद के लिये पानी के छोटे उदाना । उ-पानी बेलाडोना-संहा पुं० [अं०] मकोय का सत्त जो प्रायः अँगरेज़ी तीर जानि सब बेलें। फुम्लसहि करहिं कदाकी केलें।- दवाओं में खाने या पीवित स्थान पर लाने के काम में जायसी। आता है। बेलपत्ती-संज्ञा स्त्री० दे० "बेलपत्र"। बेलावल-संज्ञा पुं० दे० "दिलावल"। बेलपत्र-संज्ञा पुं० [सं० विल्वपत्र ] बेल के वृक्ष की पत्तियों को हर | बेलि-संज्ञा स्त्री० दे० "बेल"। एक सींक में ३-३ होती है और शिवजी पर चढ़ाई | बेलिया-संज्ञा स्त्री० [हिं० बेला का अल्पा०] छोटी कटोरी। जाती हैं। बेलौस-वि० [हिं० ने+का लोस ] (1) सच्चा। ग्वरा । जैसे, बेलपात-संशा ० दे० "बेलपत्र"। बेलौस आदमी। (२) बेमुरव्वत । (क०) बेलबागुग-संज्ञा पुं० [हिं०] हिरनों को पकड़ने का जाल । बेवका-वि० [फा०] जिसे किसी प्रकार का वकूफ या शऊर बेलबूटेदार-वि० [हिं० बलबूटा+फा० दार (प्रत्य॰)] जिसमें बेल | न हो। मूर्ख । निर्बुद्धि । नासमझ । बटे बने हों। बेल-बूटोंवाला। बेवकमी-संज्ञा स्त्री० [फा०] बेवकूफ होने का भाव । मूर्वता । घेलसना-क्रि० अ० [सं० विलाम+ना (प्रत्य॰)] भोग करना । | नादानी । नासमझी। सुख लूटना । आनंद काना। बेवक्त-क्रि० वि० [फा०] अनुपयुक्त समय पर । कुसमय में। थेलहगा-संज्ञा पुं० [हिं० बेल पान+हरा (प्रत्य॰)] [स्त्री. अल्पा० | बेवतन-वि० [फा०] (1) बिना घर द्वार का । जिसके रहने धेरी ] लगे हुए पान रखने के लिये एक लंबोतरी पिटारी आदि का कोई ठिकाना न हो। (२) परदेसी। जो बाम या धातुओं आदि की बनी होती है। बेवपार*1-संज्ञा पुं० दे० "न्यापार"। बेलहरी-संज्ञा पुं० [हिं० बेल+हरी (प्रत्य॰)] माँधी पान। षपारी*-संज्ञा पुं० दे० "व्यापारी"। बेलहाजी-संशा स्त्री० [हिं० बेल+हाजी ? धोती आदि के किनारों खेवना-वि० [फा० बे+अ० वफ़ा ] (1) जो मित्रता आदि का पर लहरिएवार वेल छापने का लकड़ी का मा। । निर्वाह न करे। (२) बेमुरम्मत । दु:शील । (३) किए हुए बेलहाशिया-संशा पुं० [हिं० बेल-+का. हाशिया ] धोती आदि उपकार को न माननेवाला । कृतन्न । के किनारों पर बेल छापने का ठप्या। बेवर-संज्ञा पुं० [ देश० ] एक प्रकार की घास जिसकी रस्सी खाट बेला-संज्ञा पुं० [सं० मल्लिका ? ] (1) चमेली आदि की जाति का चुनने के काम में आती है। एक प्रकार का छोटा पौधा जिसमें सफेद रंग के सुगंधित बेघरा -संजा पुं० [हिं० म्योरा] विवरण । म्योरा । उ०- फूल लाते हैं । ये फूल तीन प्रकार के होते हैं-(१) कपिल कहो तोहि भक्ति सुनाऊँ । अरु साको म्योरो मोतिया, जो मोती के समान गोल होता है; (२) मोगरा, समझाऊँ।-सूर । जो उससे बड़ा और प्रायः सुपारी के बराबर होता है और | बेवरेबाजी-संज्ञा स्त्री० [हिं० श्योरा+का. बासी ] बालाकी । (३) मदनवान, जिसकी कली प्रायः एकरच तक लंबी होती चालबाजी। (बाज़ारू)