पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२१२

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बेहला २५०५ यैकल बेहला-संशा पुं० [अ० वायोलिन ] सारंगी के आकार का एक जातियाँ है-एक वह जिसके पत्तों पर काँटे होते हैं। दूसरी प्रकार का अँगरेज़ी बात। वह जिसके पत्तों पर काँटे नहीं होते। इसके अतिरिक्त फल के बेहाना-क्रि० वि० दे. "बिहान"। आकार, छोटाई, कहाई और रंग के भेद ये अनेक जातियाँ है। बेहाल-वि. { फा +अहाल ] व्याकुल । बिकल । बेचैन । गोल फल वाले को मारता मानिक कहते हैं और लंबोतरे उ.--(क) राम राम रटि विकल भुशाला ज्नु बिनु पंव : फलबाले को अथिया । यद्यपि इम्पके फल प्रायः ललाई लिए विहंग बेहालू ।----तुलनी। (ख) आपु चढ़े ग्रज ऊपर : गहरे नीले रंग के होते हैं, पर हरे और सफेद रंग के फल काली । कहाँ निकसि जैये को राख नंद करत बेहाली ।- भी एक ह। पेड़ में लगते हैं। इसकी एक छोटी जाति भी सूर । (ग) लागत कुटिल कटाछ सर क्यों न होइ बेहाल ।। होती है जिसके फल छोटे, लंबे और पतले होते हैं। इस लगत जु हिये दुसारि करि तऊ रहत नट साल ।-विहारी।। बौधे की खेती केवल मैदानों में होती है। पर्वतों की अधिक बेहाली-संज्ञा स्त्री॰ [ फा० ] बेहाल होने का भाव । बैकली। ऊँचाई पर यह नहीं होता। इसके बीज पहले पनीरी में बेचैनी । व्याकुलता। बोए जाने हैं। फिर जब पौधा कुछ बड़ा होता है, तब क्यारियों बेहिसाब-कि. वि. [ फा बे+अ. हिसाब ] बहुत अधिक। में हाथ हाथ भर की दूरी पर पौधे रोपे जाते हैं। इसके बहुत ज़्यादा।बेहद। वीज की पनीरी साल में तीन बार बोई जाती है—एक बेहुनरा-वि० [हिं० ब+फा हुनर ] (1) जिसे कोई हुनर न : कार्तिक में, दूसरी माघ में और तीसरी जेठ असाढ़ में । आता हो। जो कुछ भी काम न कर सकता हो। मूर्व । पंचक में यह कटु, मधुर और रुचिकारक तथा पित्तनाशक, (२) वह भालू, या बंदर जो तमाशा करना न जानता हो। वणकारक, पुष्टिजनक, भारी और हृदय को हितकारक माना ( कलंदर) गया है। भा। बेहुरमत-वि० [ 10 ] जिसकी कोई प्रतिष्ठा न हो। बेइजत । पर्या०-वार्ताकी । वृताक । मांसफला , वृत्तफला। बेहूदगी-संज्ञा स्त्री० [फा० ] बेहूदा होने का भाव । असभ्यता ।। (२) एक प्रकार का चावल जो कनारा और बंबई प्रांत में अशिष्टता। होता है। बेहूदा-वि० [फा०] (1) जिसे तमीज़ न हो। जो शिष्टता या 'बैंगनी-वि० [हिं० बैंगन+ई (प्रत्य॰)] बैंगन के रंग का । जो सभ्यता न जानता हो। बदतमीज़ । (३) जो शिष्टता या. ललाई लिए नीले रंग का हो । बैंजनी। सभ्यता के विरुद्ध हो। अशिष्टतापूर्ण । योग-बैंगनी बूंद--एक प्रकार की छीट जिसमें मफेद तमीन बेहूदापन-संक्षा पुं० [फा० बेहूदा+पन (प्रत्य०)] बेहदा होने का , पर बैंगनी रंग की छोटी छोटा बूटियाँ होती है। भाव । बेहदगी । अशिष्टता । असभ्यता। बैंजनी-वि० [हिं० वैगनी ] जो ललाई लिए नाले रंग का हो। बहन-क्रि० वि० [सं० विहीन ] बिना। बगैर । रहित । बैंगनी। उ.-भई दुहेली टेक घेहनी। याँभ नाह उठ सके न बैंड-संज्ञा पुं० [अ० ] (१) अँड। (२) बाजा बजानेवालों का झुर थूनी। जायसी। जिसमें सब लोग मिलकर एक साध बाजा बजाते है। बेहत-वि० [फा० ] बेफ़िक्र । जिसे कोई चिंता न हो। चिंता- यौ०-बैंड मास्टर-बैंड का वह प्रधान निमके संकेत के रहित । उ.-भले छकाये नैन ये रूप सी के कैफ । देत अनुसार बाजा बजाया ॥ता है। न मृदु मुगक्यान की तजि आप बेहे ।-रसनिधि। बैंडा-त्रि० दे० "बड़ा"। उ.-मेढ़ा भंवर उछालन चकरा बेहोश-वि० [ फा ] मूर्छित । बेसुध । अत । समेटमाला । बैंडा गभीर तक्ता कपछार गर्रा। -नज़ीर । बेहोशी-संज्ञा स्त्री० [फा०] बेहोश होने का भाव । मूर्छा। बै-संज्ञा मी० [सं० बाय ] (१) बैसर । कंघी । (जुलाहे) (२) __ अचेतनता। दे. "वय"। बैंक-संशा पुं० [अ० ] वह स्थान या संस्था जहाँ लोग ज्याज पाने । संज्ञा स्त्री० [अ०] (1) रुपए पैसे आदि के बदले में कोई की इच्छा से रुपया जमा करते हों और ऋण भी लेते हों। वस्तु दूसरे को इस प्रकार दे देना कि उस पर अपना कोई रुपए के लेन-देन की बड़ी कोठी। अधिकार न रह जाय । वेचना । विक्री । बैंगन-संशा पुं० [सं० वंगण १] (1) एक वार्षिक पौधा जिसके फल क्रि० प्र०—करना ।—होना । की तरकारी बनाई जाती है। यह भटकटैया की जाति का है। यौ०-बैनामा । और अब तक कहीं कहीं जंगलों में आपमे आप उगा हुआ मुहा०— लेना या ख़रीदना जमीन आदि बैनामा लिखाकर मिलता है जिसे बन-भंटा कहते हैं। जंगली रूप में इसके मोल लेना। फल छोटे और कड़ए होते हैं। ग्राम्य रूप में इसकी दो मुख्य बैकला-वि० [सं० विकल, मि० फ्रा० बेकल ] पागल । उन्मत्त ।