पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२१४

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बैठन २५०७ बैठना कर कर प्रति पद प्रति मणि वसुधा कपल बैटकी साजत।-: सूर । (३) दे. "बैठक २, ४, "। बैठन-संज्ञा स्त्री० [हिं० बैठना ] (1) बैठने की क्रिया । (२) बैठने का भाव । (३) बैठने का दंग वा दशा । उ०-धन्य कान्ह धनि राधा गोरी । धनि वह भाग सुहाग धन्य वह धन्य नवल नवला नव जोरी । धनि यह मिलन धन्य यह बैठन धनि अनुराग नहीं रुचि थोरी । धनि यह अरस परस छवि लूटन महा चतुर मुख भोरे भोरी ।-सूर । (४) बैठक । आसन। बैठना-क्रि० अ० [सं० वेशन, विष्ठ, प्रा. बिह+ना वा सं० वितिष्ठति प्रा. वह ] (१) पुढे के बल किसी स्थान पर इस प्रकार जमना कि धद ऊपर को मीधा रहे और पैर छुटने पर से मुड़कर दोहरे हो जायें । किसी जगह पर इस प्रकार टिकना कि कम से कम शरीर का आधा निचला भाग उस जगह से लगा रहे । स्थित होना । आसीन होना । आसन जमाना। उ०—(क) बैठो कोई राज औ पाया । अंत सबै बैग पुनि घाटा ।जायसी । (ख) बैठे बरासन राम जानकि मुदित मन दसरथ भये । तुलसी। (ग) बैठे सोह काम रिषु कैसे । धरे शरीर शांत रस जैसे-तुलसी । (घ) शोभित बैठे तेहि सभा, सात द्वीप के भूप । तहँ राजा दशरथ लसै देवदेव अनुरूप। केशव। संयो० कि०-जाना। मुहा०-कहीं वा किसी के साथ बैठना उठना-(१) संग में समय बिताना । कालक्षेप करना । 30-जाइ आइ जहाँ तहाँ बैठि उठि जैसे तैसे, दिन तो बितायो बधू बीतति है कैसे राति । -पनाकर । (२) रहना । संग में रहना । संगत में रहकर बातचीत करना या सुनना । बैठे बिठाए-(१) अकारण । निरर्थक । जैसे-बैठे बिठाए यह झगड़ा मोल लिया। (२) अचानक । एकाएक । जैसे,—बैठे बिठाए यह अाफ़त कहाँ से आ पड़ी। बैठे बैठे-(१) निष्प्रयोजन । (२) अचानक । ! (३) अकारण । बैठे रहो-(१) अलग रहो । हाथ मत : लगाओ । दखल मत दो। तुम्हारी ज़रूरत नहीं । (२) चुप : रहो । कुछ मत बोलो । बैठे दंड-एक कसरत जिसमे दंड करके बैठ जाते है और बैठते समय हाथों को कुहनी पर रखकर उक. बैठते हैं । इसके अनंतर फिर दंड करने लगते हैं । उठ बैठना=(१) लेटा न रहना । (२) जाग पड़ना । जैसे,- खटका सुनते ही वह उठ बैठा। बैठते उठते सदा । सब अवस्था में। हरदम । जैसे,—बैठते उठते राम राम जपना । बैठ रहना=(१) देर लगाना । वहीं का हो रहना । जैसे,- बाज़ार जाकर बैठे रहे। (१) साहस त्यागना या निराश होना। हारकर उद्योग छोर देना। (२) किसी स्थान वा अवकाश में जैक रूप से जमना।। ठीक स्थित होना । जैसे, चूल का बैठना, अंगूठी के प्याले में नग का बैठना, खिर पर टोपी बैठना, छेद में पेच या कील बैठना। मुहा०-नप बैठना=सरकी हुई नम का टाक जगह पर आ जाना । मच दूर होना । हाथ या पैर बैठना-ट्रटा या उखड़ा हुआ हाथ पैर ठाक होना। (३) कैंडे पर आना । ठीक होरा । अभ्यस्त होना । जैसे,- किसी काम में हाथ बैठना। (४) पानी या अन्य व पदार्थों में मिली हुई चीजों का नीचे तह में जम जाना । ल आदि के स्थिर होने पर उसमें घुली वस्तु का नीचे आधार में जा लगना । (५) पानी वा भूमि में किसी भारी चीज़ का दाय आदि पाकर नीचे जाना वा फँसना । दबना या इवना । जैसे, नाव का बैठना, मकान का बैठना इत्यादि। (६) सूजा या उभरा हुभा न रहना । दबकर बराबर या गहरा हो जाना। पचक जाना। सना । जैसे,-आंग्व बैठना, फोदा बैठना । (७) (कारबार) चलता न रहना । विगहना । जैसे, कोठी बैठना, कारबार बैठना इत्यादि। (८) तौल में ठहरना वा परता पड़ना । जैसे,- (क) दस मन गेहूँ का नौ मन बैठा । (ख) रुपए का मेर भर घी बैठता है। संयोगक्रि०-जाना। (९) लागत लगना । खर्च होना । जैसे,—घोड़े की खरीद में सौ रुपए बैठे। (१०) गुव का वह जाना या पिघल जाना। (११) चावल का पकाने में गीला हो जाना । (१२) क्षिस वस्तु का निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचना । फेंकी या चलाई हुई चीज़ का ठीक जगह पर जा रहना । लक्ष्य पर पड़ना । निशाने पर लगना । जैसे, गोली बैठना, डंडा बैठना । (१३) घोड़े आदि पर सवार होना । जैसे, घोड़े पर बैठना, हाथी पर बैठना । (१४) पोधे का ज़मीन में गाड़ा जाना लगना। जैसे, जड़हन बैठना । (१५) किसी पद पर स्थित होना या नियत होना। जमना । जैसे,--जय सुम उस पद पर एक बार बैठ जाओगे, तब फिर जल्दी नहीं हटाए जा सकोगे। (१६) एक स्थान पर स्थिर होकर रहना । जमना । (१७) (किसी वस्तु में) समाना । अॅटना । आना। (16) किसी खी का किसी पुरुष के यहाँ सी के समान रहना । घर में पड़ना । जैसे,—वह खी एक सोनार के घर बैठ गई। (१९) पक्षियों का अंडे सेना । जैसे, मुर्गी का बैठना । (२०) जोड़ा खाना । भोग करना। (बाज़ारी)। (२१) बेकाम रहना । काम छोड़कर खाली रहना। निरुयोग रहना। निठला रहना। बेरोज़गार रहना । जैसे,—वह आज ६ महीने से बैठा है; कैसे खर्च चले ! (२२) अस्त होना। जैसे, सूर्य का बैठना, दिन बैठना, !