पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२१९

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बांझाई २५१२ योना बोझाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० बोझना+आई (प्रत्य॰)] (१) बीनने या आदमी इधर उधर खड़े होकर टोकरे आदि से उसी चकर लादने का काम । (२) बोझने की मजदूरी । पानी ऊपर गिराते रहते हैं। बोट-संा सी० [ अं0 (1) नाव । नौका। (२) स्टीमर । योदा-वि० [सं० अबोध ] (१) जिपकी बुद्धि तीब न हो। मूर्ख । अगिन कोट । जहाज़ । गावदी। (२) जो तयर बुद्धि का न हो। (३) सुस्त । बोटा-संशा पु[सं० वृत, व-=-डाल, लट्ठा ] (1) लकड़ी का मट्ठर । (४) जो दृढ़ या कड़ा न हो। फुपफुया ।। काटा हुआ मोटा टुकड़ा जो लंबाई में हाथ दो हाथ बांदापन-संज्ञा पुं० [हिं० बादा+पन (प्रत्य॰) 1(1) बुद्धि की अ- के लगभग हो, दड़ा न हो। कुदा। (२) काटा हुआ तत्परता। आल का तेज़ न होना। (२) मूर्खता । नासमझी। बोध-संहा पुं० [सं० ] (१) भ्रम वा अज्ञान का अभाव । ज्ञान | वोटी-सझा स्त्री० [हि. बोटा ] मांस का छोटा टुकड़ा। जानकारी । जानने का भाव । (२) तसली। धीरज । संतोष। मुहा०—बोटी बोटी काटना तलवार, छुरी आदि में शरीर को क्रि० प्र०-देना।—होना । काटकर खंड खंड करना। बोधक-संज्ञा पुं० [सं० ] (१) ज्ञान करानेवाला । ज्ञापक । जताने- बोह-संज्ञा to [ देश ] सिर पर पहनने का एक आभूषण । वाला । (२) श्रृंगार रस के हार्यों में से एक हाव जिसमें संज्ञा स्त्री० दे० 'बौर", "वल्ली"। किसी संकेत वा क्रिया द्वारा एक दूसरे को अपना मनोगत योड़री -संज्ञा स्त्री० [हिं० वीड़ी ) तोंदी। नाभि ।सुंदकृपिका । भाव जताता है । उ.--निरखि रहे निधि बन तरफ नागर घोडल-संज्ञा स्त्री० [ देश० ] एक पक्षी जिसे 'जेषर' भी कहते हैं। नंदकुमार । तोरि हर को हार तिय लगी अणारन थार।- इसकी चोंच पर एक सींग सा होता है। यह एक प्रकार पभाकर। का पहादी महोख है। बोधगम्य-वि० [सं०] समझ में आने योग्य । बोड़ा-संज्ञा पुं० [देश॰] अजगर । बड़ा साँप । बोधन-संझ पुं० [सं०] [वि. बोधनीय, बोध्य, बोधित ] (1) संश। पु० [देश॰] एक प्रकार की पतली लंबी फली जिसकी वेदन । ज्ञापन । जताना । सूचित करना । (२) जगाना । तरकारी होती है। लोबिया। बजरबटटू । (३) उपन। अग्नि या दीपक को प्रज्वलित करना । बोड़ी-संशा स्त्री० [?] (१) दमदी। दमड़ी कौड़ी। (२) असि (दिया) जगाना। (५) गंध दीप देना । दीपदान । (५) अल्प धन । उ.-जाँचे को नरेस देस देस को कलेस करे, मंत्र जगाना । देहे तो प्रसन्न है बड़ी बड़ाई थोषिय।--तुलसी। . बोधना-क्रि० स० [सं० बोधन ] (1) बोध देना । समझाना संज्ञा स्त्री० दे० "वोंडी" "बौंडी" खुमाना । कुछ कह सुनकर संतुष्ट या शांत करना । उ०- बोत-संहा पुं० [देश॰] घोड़ों की एक जाति । उ.-कोर अरबी सुरश्याम को जसुदा बोधति गगन चिरैयाँ उड़त दिखावति। जंगली पहारी। चिरचक चंपा कंधारी। कोह काबुली -सूर । (२) ज्ञान देना । जताना । कॅबोज कोइ कच्छी । बोत नेमना मुंजी लच्छी।-विश्राम। बोधनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) प्रबोधनी एकादशी। (२) पिप्पली। बोतक-संवा पु. [ देश० ] पान की पहले वर्ष की हे.ती। बोधि-संज्ञा पुं॰ [सं०] (१) समाधिभेद । (२) पीपल का पेड़। धोतल-संशा श्री० [ अंक बॉटल ] कांच का एक लंबी गरदन बांधितरु, चोधिद्रम-संज्ञा पुं० [सं०] गया में स्थित पीपल का का गहरा रतभ जिममें व पदार्थ रग्बा जाता है। वह पेड़ जिसके नीचे बुद्ध भगवान् ने संबोधि (बुद्धत्व) मुहा०-बोतल चढ़ाना--मच पाना। बोतल पर बोतल चढ़ाना प्राप्त की थी। बहुत मच पाना। विशेष-चोरों के धर्मग्रंथों के अनुसार इस वृक्ष का कल्पांत बातलिया, बोतली-वि० [हिं० बोतल ] बोतल के रंग का सा । में भी नाश नहीं होता और इसी के नीचे बुद्ध गण सदा कालापन लिए हरा। संबोधि प्राप्त करते है। घांता-संज्ञा पुं० [सं० पात ] ऊँट का बच्चा जिस पर अभी सवारी बोधिसत्त्व-संज्ञा पुं० [सं०] वह जो युद्धस्त्र प्राप्त करने का अधि- न होती हो। कारी हो, पर बुद्ध न हो पाया हो। बोधिसस्त्र की तीन बांदी -सहा मी० [ देश०] कुसुम या यर की एक जाति जिसमें अवस्थाएँ होती है, जिन्हें पार करने पर बुद्धस्व की प्राप्ति काटे नहीं होते और जिसके केवल फूल रंगाई के काम में आते हैं। धीजों से तेल नहीं निकाला जाता। बोना-क्रि० स० [सं० वपन ] (१) बीज को जमने के लिये जुते बोद-संज्ञा स्त्री० [ देश० ] लचीली रही। रहेत या भुरभुरी की हुई ज़मीन में छिसराना । किसी दाने संज्ञा पुं० [ देश० ] ताल या जलाशय के किनारे सिंचाई का या फल के बीज को इसलिये मिट्टी में गलना जिसमें उसमें पानी चढ़ाने के लिये बना हुआ स्थान जिसके कुछ नीचे दो। से अंकुर फूटे और पौधा उत्पन्न हो।