पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२४९

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भयकर २५४२ भर - अनिष्ट या विपत्ति की संभावना से मन में होनेवाला | जो युद्ध-काल में इसलिये रचा जाता था जिसमें भय क्षोभ । डर । भीति । खौफ। उपस्थित होने पर राजा उसमें आश्रय लेकर अपनी रक्षा विशेष-यदि यह विकार सहसा और अधिक मान में उत्पन्न । करे। हो तो शरीर काँपने लगता है, चेहरा पीला पड़ जाता है, भयहरण-वि० [सं०] भय का नाश करनेवाला । भय दूर मुँह मे शन्न नहीं निकलता और कभी कभी हिलने डुलने ! करनेवाला। तक की शक्ति भी जाती रहती है। भयहारी-वि० [सं० भयहारिन् ] पर छुदानेवाला । भयहरण । मुहा०*-भय खाना-डरना । भयभीत होना। र दूर करनेवाला। यौ०--भयभीत । भयानक । भयंकर । भया-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक राक्षसी जो काल की बहन और हेति (२) बालकों का वह रोग जो उनके कहीं जाने के कारण की स्त्री थी। वियु स्केश इसी के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। होता है। (३) निऋति के एक पुत्र का नाम । (४) द्रोण * वि० दे० "हुआ" । उ.---जहँ भए शाक्य हरिचंद के एक पुत्र का नाम जो उसकी अभिमति नामक स्त्री के अरु नहुष ययाती।-हरिश्चंद्र। गर्भ से उत्पन्न हुआ था। (५) कुब्जक पुष्प । मालती। भयाकुल-वि० [सं०] भय से प्याकुल । डर से घबराया हुआ । वि० दे० "भया" या "हुआ" उ०-भय इस मास पूरि भयभीत। भन घरी । पद्मावत कन्या अवतरी ।-जायसी। भयातिसार-संज्ञा पुं० [सं०] अतिसार का एक भेद जिसमें केवल भयकर-वि० [सं०] जिसे देखकर भय लगे। भय उत्पन्न करने | भय के कारण दम्त आने लगते हैं। वाला । भयानक । भयातुर-वि० [सं०] डर से घबराया हुआ। भयभीत । भयचक-वि० दे. "भौचक"। भयान -वि० [सं० भयानक ] डरावना । भयानक । उ०- भयडिडिम--संशा पुं० [सं०] प्राचीन काल का एक प्रकार का तुम बिना सोभा न ज्यों गृह बिना दीप भयान । आस लबाई का बाजा। स्वास उम्पास घट में अवध आशा प्रान।-सूर । भयत-संज्ञा पुं० [हिं०] चंद्रमा । भयानक-वि० [सं०] जिसे देखने से भय लगता हो। भीषण । भयद-वि० सं०] भय उत्पन्न करनेवाला । भयानक । डरावना। भयंकर । डरावना। खौफ़नाक। संशा पुं० (1) बाघ । (२) राहु । (३) साहित्य में नौ रसों भयदोष-संज्ञा पुं० [सं०] जैनों के अनुसार एक प्रकार का दोष के अंतर्गत छठा रस जिसमें भीषण दृश्यों ( जैसे, पृथ्वी के जो उस समय होता है जब मनुष्य अपनी इच्छा से नहीं हिलने या फटने, समुद्र में तूफान आने आदि ) का वर्णन बल्कि केवल लोकापवाद के भय से सामयिक कर्म आदि होता है। इसका वर्ण श्याम, अधिष्ठाता देवता यम, आलं- करता है। बन भयंकर दर्शन, उद्दीपन उसके घोर कर्म और अनुभाव भयनाशन-संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु । कंप, स्वेद, रोमांच आदि माने गए हैं। भयनाशिनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] त्रायमाणा लता। भयाना* कि० अ० [सं० भय+आना (प्रत्य॰)] डरना । भय- भयपद-वि० [सं०] जिसे देखकर भय उत्पन्न हो। भय उत्पन्न भीत होना । उ०—जो अहि कबहुँ न देखिया रज्जु में नहि करनेवाला । भयानक । खौफनाक । दरसाय । सर्प ज्ञान जाको भया सो जहूँ तह देखि भयभीत-वि० [सं०] जिसके मन में भय उत्पन्न हो गया भयाय । -कबीर। ___हो । डरा हुआ। कि० स० भयभीत करना । बराना । भयमोचन-वि० [सं० ] भय छुपानेवाला ।बर दूर करनेवाला। भयावन* -वि० [हिं० भय+आवन (प्रत्य०)] रावना । भया- निर्भय करनेवाला। नक । भयंकर । भयबर्जिता-संज्ञा स्त्री० [सं०] व्यवहार में दो गाँवों के बीच की भयावह-वि० [सं०] भयंकर । रावना । खौफनाक । वह सीमा जिसे वादी और प्रतिवादी आपस में मिलकर ही | भय्या-संज्ञा पुं० दे० "भैया"। मान में और जिसका निर्णय किसी दूसरे को न करना | भरत*-संज्ञा स्त्री० [सं० प्रांति ] भ्रम । संदेह । शक । उ.- पहा हो। लीला राजा राम की खेलहि सवही संत । आपा पर एका भयवाद-संज्ञा पुं० [हिं० भाई+आद (प्रत्य॰)] (1) एक ही गोत्र भये छूटी सबइ भरत ।-दादू ।। या वंश के लोग । भाई-बंद । (२) बिरादरी का आदमी। भर-वि० [हिं० भरना ] कुल । पूरा । सब । तमाम । जैसे, सेर सजासीय। भर, जारे भर, बाहर भर । उ.-(क) अति करुणा रघुनाथ भयम्यूह-संशा पुं० [सं०] प्राचीन काल का एक प्रकार का म्यूह गुसाई युग भर जात पड़ी।-सूर । (ख) रहै तो करी