पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२५१

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भरतखंड २५४४ भरद्वाज राजसूय यज्ञ किए थे। इस देश का "भारतवर्ष" नाम | भरतिया-वि० [हिं० भरत+श्या (प्रत्य॰)] भरत अर्थात् कसकुट इन्हीं के नाम में पड़ा है (४) एक प्रसिद्ध मुनि जो . धातु का बना हुआ। नाट्य शास्त्र के प्रधान आचार्य माने जाते हैं। संभवतः संज्ञा पुं० कसकुट के बर्तन या घंटे आदि ढालनेवाला । भरत ये पाणिनि के बाद हुए थे, क्योंकि पाणिनि के सूत्रों में धातु मे चीजें बनानेवाला। नाट्य शास्त्र के शिलालिन और कृशाश्व दो आचार्यों का . भरती-संज्ञा स्त्री० [हिं० भरना ] (१) किसी चीज़ में भरे जाने तो उल्लेग्व है, पर इनका नाम नहीं आया है । इनका का भाव । भरा जाना। लिखा हुआ नाट्य शास्त्र नामक ग्रंथ बहुत प्रसिद्ध और मुहा०-भरती करना=किसी के बीच में रखना, लगाना या प्रामाणिक माना जाता है। कहा जाता है कि इन्होंने नाव्य बैठान। । जैसे,—(क) का भरती करना। (ख) इसमें ५) कला ब्रह्मा मे और नृत्य कला शिव से सीखी थी । (५) की और भरती करो। भरती काजो केवल रथान पूरा संगीत शास्त्र के एक आचार्य का नाम । (६) वह जो नाटकों करने के लिये रक्खा जाय । बहुत ही साधारण या रही। में अभिनय करता हो । नट । (७) शवर । (८) तंतुवाय । (२) नकाशी, चित्रकारी या कशीदे आदि में वीच का खाली जुलाहा । (९) क्षेत्र । ग्वत । (१०) प्राचीन काल का उत्तर स्थान इस प्रकार भरना जिसमें उसका सौंदर्य बढ़ जाय । भारत का एक देश जिसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण में है। जैसे, कशीदे के बुटों में की भरती। नैचे में की भरती । सशा पु० [ स० अरद्वाज ] लवा पक्षी का एक भेद जो प्रायः (३) दाखिल या प्रविष्ट होने का भाव । प्रवेश होना। सारे भारत में पाया जाता है। यह लंबा होता है और जैसे, लड़कों का स्कूल में भरती होना, फ़ौज में भरती झुंड में रहता है। जाड़े के दिनों में स्वेतों और खुले मैदानों होना । (४) वह नाव जिसमें माल लादा जाता हो। में इसके झुंड बहुत पाए जाते हैं। इसका शब्द बहुत मधुर (लश.) (५) वह माल जो ऐसी नाव में भरा या लावा होता है और यह बहुत ऊँचाई तक उद सकता है। यह जाय । (लश०) (१) जहाज़ पर माल लादने की क्रिया । प्रायः अंडे देने के समय ज़मीन पर घास से घोसला बनाता (लश०)। (७) समुद्र के पानी का चढ़ाव । ज्वार । (लश.) है और एक बार में ४-५ अंडे देता है। यह अनाज के दाने । (4) नदी के पानी की बाढ़ । (लश.) या की मकाहे खाकर अपना निर्वाह करता है। संज्ञा स्त्री० [ देश० ] (१) साँवा नामक कदन्न । (२) एक संज्ञा पुं॰ [देश०] (१) काँसा नामक धातु । कसकुट वि. प्रकार की धाम जो पशुओं के चारे के काम में आती है। दे. "कॉप्पा"(२) काँस के बरतन बनानेवाला। भरतोद्धता-संशा पुं० [सं० ] केशव के अनुसार एक प्रकार के ठठेरा। छंद का नाम । संशा स्त्री० [हिं० भरना ] मालगुजारी। (दिल्ली) भरत्थ -संशा पुं० दे० "भरत"। भरतखंड-संशा पुं० [सं०] (9) राजा भरत के किए हुए पृथ्वी | भरथा-संज्ञा पुं० दे० "भरत"। के ना खंडों में से एक खंड । भारतवर्ष । हिदुस्तान । (२) भरथरी-संज्ञा पुं० दे० "भर्तृहरि"। भारतवर्ष के अंतर्गत कुमारिका खंड। भरदूल-संज्ञा पुं० दे० "भरत" (पक्षी)। भरतपुत्रक-सज्ञा पुं० [सं०] नाटक में नाव्य करनेवाला पुरुष। भरद्वाज-संज्ञा पुं० [सं०] (1) अगिरस गोत्र के उतथ्य ऋषि की नट। स्त्री ममता के गर्भ में से उतथ्य के भाई बृहस्पति के वीर्य भरतरी-संवा स्त्री० [डि.] पृथ्वी। से उत्पन्न एक वैदिक ऋपि ओ गोत्र-प्रवर्तक और मंत्रकार भरतवर्ष-संशा पु० दे० "भारतवर्ष"। थे। कहते हैं कि एक बार उतथ्य की अनुपस्थिति में उनके भरतवीणा-संशा खा० [सं०] एक प्रकार की बीणा जो कच्छपी भाई वृहस्पति ने उनकी श्री ममता के साथ संसर्ग किया वीणा से बहुत कुछ मिलती जुलती होती है। यह बजाई था जिससे भरद्वाज का जन्म हुआ। अपना व्यभिचार भी कच्छपा वीणा की तरह ही जाती है। छिपाने के लिये ममता ने भरद्वाज का त्याग करना चाहा भरता-संश। पु० [ देश० ) एक प्रकार का सालन जो बैंगन, आलू था, पर बृहस्पति ने उरूको ऐसा करने से मना किया। या अरुई आदि को भूनकर, उसमें नमक मिर्च आदि । दोनों में कुछ विवाद भी हुआ, पर अंत में दोनों ही नवजात मिलाकर और कभी कभी उम्मे घी या तेल आदि में छौंक । बालक को छोड़कर चले गए। उनके चले जाने पर मरू- कर तैयार किया जाता है । चोखा । गण इनको उठा ले गए और उन्होंने इनका पालन किया। संज्ञा पुं० दे. "भो"। जब भरत ने पुत्र-कामना से महस्सोम यज्ञ किया, तब भरतार-संज्ञा पुं० सं० मर्ता] (1) पति । खसम । खाविंद ।। मरुद्गण ने प्रसन्न होकर भरद्वाज को उनके सुपुर्द कर (२) स्वामी मालिक। दिया । महाभारत में लिखा है कि एक बार ये हिमालय में