पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२५८

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भसान २५५१ भांग भसाना-संज्ञा पुं० [ नं० भसाना ] पूजा के उपरांत काली या सर- , भस्ममेह-संज्ञा पुं० [सं० ] सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार का स्वती आदि की मूर्ति को किसी नदी में प्रवाहित करना। अश्मरी रोग जो मेह के कारण होता है। भसाना-क्रि० स० [40] (1) किसी चीज़ को पानी में तैरने भस्मवेधक-संशा पुं० [सं०] कपूर । के लिये छोड़ना । जैसे, जहाज़ भसाना । (लश.) मूर्ति भस्मान-संज्ञा पुं० [सं०] राख से नहाना। सारे शरीर में भसाना । (२) किसी चीज़ को पानी में डालना। राख मलना। भसिंड, भसीउ-संज्ञा स्त्री० [ देश. ] कमलनाल । मुरार । कमल भस्माग्नि-संज्ञा स्त्री० [सं० ] भस्मक रोग । को जड़। भस्माकार-संज्ञा पुं० [सं०] धोबी। भसंड-संशा पुं० [सं० भुशुण्ड ] हाथी। गज । उ० लाखन भस्माकूट-संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार कामरूप का एक पर्वत चले भसु सुड सों नभतल परसत ।-गोपाल । जिस पर शिव जी का वास माना जाता है। भसुर-संज्ञा पुं० [हिं० ससुर का अनु.] पति का घड़ा भाई। भस्माचल-संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार कामरूप के एक पर्वत जेठ का नाम । भसू-संशा पुं० [सं० भुशुड ] हाथी की सूस। (महावत)। भस्मासुर-संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार एक प्रसिद्ध दैत्य जिसने भना-संज्ञा स्त्री० [सं० ] आग सुलगाने की माथी । तप करके शिवजी से बर पाया था कि तुम जिसके सिर पर भस्म-संज्ञा पुं० [सं० भस्मन् ] (1) लकड़ी आदि के जलने पर हाथ रखोगे, वह भस्म हो जायगा। पीछे से यह पार्वती बची हुई राख । (२) चिता की राख जिसे पुराणानुसार पर मोहित होकर शिव को ही जलाने पर उद्यत हुआ। शिव जी अपने सारे शरीर में लगाते थे। (३) विशेष प्रकार तय शिवजी भागे। यह देखकर श्रीकृष्ण ने बटु का रूप से तैयार की हुई अथवा अग्निहोत्र में की राख जो पवित्र धरकर छल से इसी के सिर पर इपका हाथ रखवा दिया मानी जाती है और जिसे शिव के भक्त मस्तक तथा शरीर जिससे यह स्वयं भस्म हो गया। शिव से वर प्राप्त करने से में लगाते अथवा साधु लोग सारे शरीर में लगाते हैं। पहले इसका नाम 'वृकासुर' था। क्रि० प्र०-रमाना ।—लगाना । भस्माहव्य-संशा पुं० [सं०] कपूर । (५) एक प्रकार का पथरी रोग। भरिमत-वि० [सं० ] (1) जलाया हुआ। (२) जला हुआ। वि. जो जलकर राख हो गया हो । जला हुआ भस्मीभूत-वि० [सं०] जो जलकर राग्व हो गया हो। बिलकुल भस्मक-संज्ञा पुं० सं०] (1) भावप्रकाश के अनुसार एक रोग जला हुआ। जिसमें भोजन तुरंत पच जाता है। कहते हैं कि यहुत महगना-क्रि० अ० [ अनु०] (1) टूट पहना । (२) झोंक से अधिक और रूखा भोजन करने से मनुष्य का कफ क्षीण हो गिर पड़ना । एकाएक गिरना । (३) फिसल पवना । (१) जाता है और वायु तथा पित्त बढ़कर उठराग्नि को बहुत किसी काम में जोरों से लग जाना। (व्यंग्य)। तीव्र कर देता है। और तब जो कुछ स्वाया जाता है, वह भ?-संगा स्त्री० दे० "भौंह"। तुरंत भस्म हो जाता है, परंतु शौच बिल्कुल नहीं होता। भाई-मंशा पुं० [हिं० भाना-माना ] खरादनेवाला । स्वरादी। इसमें रोगी को प्यास, पसीना, दाह और मूर्छा होती है. कूनी। और वह शीब मर जाता है। इस रोग को भस्मकीट भी भाउँ*-संज्ञा पुं० [सं० भाव ] अभिप्राय । उ०—जहाँ ठाँव होवे कहते हैं। (२) बहुत अधिक भख । (३) सोना । (४) करहँसा सो कह केहि भौउँ।—जायसी। विडंग। भौउर-संज्ञा स्त्री० दे० "भाँवर" । भस्मकारी-वि० [सं० भस्मकारिन् ] भस्म करनेवाला । जलाने- : भाँउरि-संज्ञा स्त्री० दे० "भाँवर"। वाला। भाँगड़ी-संज्ञा पुं० [ देश. ] एक जंगली झाद जिये हमद सिंधावा भस्मगंधा-संज्ञा स्त्री० [सं० ] रेणुका नामक गंधद्रव्य । भी कहते हैं । यह गोखरू से मिलता जुलता होता है। भस्मगर्भ-संशा पुं० [सं० ] तिनिश नामक वृक्ष । भौग-संज्ञा स्त्री० [सं० /गा या भुंगी ] गाँजे की जाति का एक भस्मगर्भा-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) रेगुका नामक गंध-द्रव्य ।। प्रसिद्ध पौधा जिसकी पत्तियाँ मादक होती हैं और जिन्हें (२) शशिम । पीसकर लोग नशे के लिये पीते हैं। भंग । विजया बूटी। भस्मजावाल-संज्ञा पुं० [सं०] एक उपनिषद् का नाम । पत्ती भस्मता-संज्ञा स्त्री० [सं०] भस्म होने का कर्म । विशेष-यह पौधा भारत के प्राय: सभी स्थानों में और भस्मतूल-संज्ञा पुं० [सं० ] तुषार । हिम । विशेषतः उत्तर भारत में, इन्हीं पत्तियों के लिये धोया जाता भस्मप्रिय-संशा पुं० [सं०] शिव । महादेव । है। नेपाल की तराई में कहीं कहीं यह आप से आप और