पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२६५

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भादों २५५८ भाना जब इसमें वायु भरना होता है, तो इसे ग्वींचकर फैलाते यत्र के कति संभु धनु भानी।-तुलस । (ख) आपुहि है और फिर दबा कर इसमें में वायु निकालत है । वायु करता आपुहि रता पु बनावत आपुहि भाने । ऐसा एक छोटे छेद वा नली में होकर भट्ठी में पहुंचती है जिसस सूरदाय के स्वामी ते गोपिन के हाय पिकाने ।---सूर । आग सुलगती है।) उ०-परम प्रभाती पर लाह द भार्थी (ग) सहल वाहु अति बली बग्वान्यो। परशुराम ताको सम, पहो बने हाथी साथी उग्रपन सेन के ।-गोशल। बल भान्यो।-लल्ल। (२) नष्ट करना । नाश करना। भादों-संज्ञा ५ । सं० भाद्र, पा० भदौ । एक महीने का नाम मिटाना । ध्वंस करना । उ.--(क) आपनो कबहुँ करि जो वर्षा ऋतु में पड़ता है। इस महीने की पूर्णमासी के जानिही । राम गरीब-नेवाज राजमान विरद लाज उर दिन चंद्रमा भाद्रपदा नक्षत्र में रहता है। सावन के बाद आनिहीं।... ..... ..."आस्त दीन अनाथन को हित मानत और कार के पहले का महीना । उ०-वरषा ऋतु रघुपति लौकिक कानि हो। है परिनाम भलो तुलसी को मरनागत भगति तुलसी शालि सुदास । राम नाम वर बरन जुग' भय भानिहो ।---तुलना । (ग्व) भाने म8 कूप बाय परवर मावन भादों माप ।-तुली । को पानी । गोरीकत पूजत जहँ नव तन दल आनी ।- पर्या-भाद्र । भाद्रपद । प्रोष्टपद । नभस्य । तुलमी । (३) हटाना । दूर करना । उ०—(क) ऐमी रिसि भादों*-संज्ञा पुं० दे. "भादों"। तोको नँदरानी । भली बुद्धि तेरे जिय उपजी बड़ी बैंप अब भाद्र-संगर पु० सं० एक महीने का नाम जो वर्षा ऋतु में भई सयानी । ढोटा एक भए कैसंह करि कौन कौन करवर पसावन और कुमार के बीच में पड़ता है। इस महीने की विधि भानी। कर्म कर्म करि अबलो उपन्यो ताको मारि पूर्णमासी के दिन चंद्रमा भाद्रपदा नक्षत्र में रहता है। पितर दे पानी।-सूर । (ख) नाक में पिनाक मिपि बामता वैदिक काल में इस महीने का नाम नभय था। इसे बिलोकि राग रोको परलोक लोक भारी भ्रम भानिक ।- प्रोष्टपद भी कहते है । भाद्रपद । भादों । तुलसी । (ग) मोंगा मिलबति चातुरी तू नहि भारत भेद । भाद्रपद-स.|पु[ सं० } (१) भाद्र । भादों । (२) बृहस्पति के कहे देत यह प्रगट ही प्रगट्या पूस प्रस्वंद ।—बिहारी । (४) एक वर्ष का नाम जब वह पूर्व भाद्रपदा वा उत्तर भारपदा काटना । उ.--(क) अति ही भई अवज्ञा जानी चक्र सुद- में उदय होता है। र्शन मान्यो। करि निज भाव एक कुश तनु में क्षणक दुष्ट. भाद्रपदा-मशा ना ७ | H० ] एक नक्षत्र पुंज का नाम । इसके शिर भान्यो।-मूर । (ग्व) अन्हूँ पिय माँपु ननरु धीम्य दा भाग किए गए है-पूर्वा भाद्रपदा और उत्तरा भाद्रपदा। भुजा भान । रघुपति यह पैज करीभृतल धरि प्रान।—सूर । पूर्वा भादपक्ष यमल आकृति का है। यह उत्तर और अक्षांश क्रि० ० [हिं० नान] समझना । अनुमान करना । जानना । से २४° पर है और इसमें दो तार है। उत्तरा भाद्रपदा की उ.-भत अपंची कृत ओ कारज, इतनी सूरम सृष्टि आकृति शय्या के आकार की है और यह अक्षांश से ३६° पठान । पंचीकृत भतन ते उपजेउ थूल पसारी सारी मान । उत्तर ओर है। इसमें भी दो तारे हैं। पूर्वा भाद्रपदा का कारण सूरम थूल देह अरु, पंचकोस इनहीं में जान । करि देवता अजएकपात् और उत्तरा भाद्रपदा का अहियुध्न्स विवेक लखि आतम न्यारो, मूंज हया काते ज्यों भान।- है। पहली कुंभ राशि में और दूसरी मीन में मानी निश्चलदास । जाती है। भानमती-संशा बी० [सं० भानुमती ] वह नरी जो जादू का खेल भाद्रमातुर--(व० [सं०मती का पुत्र । जिसकी माता सती हो। करती हो। लाग का खेल करनेवाली खी। जादूगरनी। भान--संज्ञा पु. [सं०] (1) प्रकाश । रोशनी (२) दीप्ति । भानवी-संवा स्त्री० [सं० भानाया ] जमुना । उ०-देवी कोउ चमक। (३) शान। (४) प्रतीति । आभाय। उक- दानवी न मान हान होइ ऐसी, भानवी नहाव भाव भारती बाटिका उजारि अक्षधारि मारि जारि गढ़ भानुकूल भानु पठाई है। केशव । को प्रताप भानु भानु मो।-तुलसी। भानवीय-वि० [सं०] भानु संबंधी। मशा पं० दे० "भानु"। संज्ञा पुं० दाहिनी आँख । संक्षा पु० [स तुंग नामक वृक्ष । दे. "तुंग"। भाना-क्रि० अ० [सं० भान गान (1) जान पदना । मालूम भानजा-संगा है. बहिन+II] [पा, भानी बहिन होना । ज० मैं घर को ठाढ़ी हौं तिहारो को मों सर कर का लड़का । उ०—यह कन्या तरी भानजी है। ये मत आन । सोई लेहों जो मो मन भावे नंद महर की आना। मार |--लल्लू। धन्य नंद धनि धन्य यशोदा धनि धनि आयो पूत । धन्य भानना* -क्रि० स० [सं० भजन, मि० पं० भन्नना ] (१) तोड़ना। भूमि ब्रजवासी धनि धनि आनंद करत अकूत । घर घर भंग करना । उ०—(क) तीन लोक महँ जे भट मानी। । होत अनंद बधाई जहं तहँ मागध सूत। मणि माणिक