पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२६७

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भानुमित्र २५६० भाय मा पु. [सं-1 (9) कोशल देश के एक राजा का नाम | . होता है और रसबा बनाने के काम आती है। अगिया । याह दशरथ के श्वसुर थे। (२) दे० "भानुमत्"। बनकर । भानुमित्र-संथा [ सं० ] (1) विपुराण के अनुसार चंद्र- : भाभर-श ५० [सं० वप्र ] (१) वह जंगल जो पहाड़ों के नीचे गिरि के राजा के एक पुत्र का नाम । (२) एक प्राचीन : और तराई के पांच में होते है। यह प्रायः माग्वू आदि के राजा का नाम । यह पुष्यमित्र के बाद गद्दी पर बैठा था। . होते हैं। (२) एक प्रकार की घास जिसकी रस्पी बटी भानुमुखी-संशा पं. [ मं० मूर्यमुग्धी। जाती है। यह पर्वतों पर होती है। इसे बनकप, बभनी, भानुवार-संज्ञा पुं० [सं०] रविवार । एनवार । बबस, बबई आदि कहते हैं। भानुसुत-संज्ञा पु० [सं०] (1) यम । (२) मनु । (३) 'भाभरा -वि० [हिं० मा+भरन्दा ] लाल । रक्ताम । उ०- शनिश्चर । (४) कर्ण। जाहस जवारे जूमा भाभरे भरत भार, धाकरे धधल धाये भानुसुता-संज्ञा स्त्री० [सं०] यमुना । मानत अमान को।-सूदन । भानुसेन-संज्ञा पुं० [सं०] कर्ण के एक पुत्र का नाम । भाभरी-संज्ञा स्त्री० [अनु०] (१) गरम राग्य । पलका । (२) कहारों भानेमि-सज्ञा पुं० [सं०] सूर्य । की बोली में धूल जो राह में होती है। (जब राह में इतनी भाप-संशा मा० [सं० वाप, पा०वप्प | (१) पानी के बहुत छोटे धूल होता है कि उसमें पैर फंस जाय, तो कहार अपने छोटे कण जो उपके खालने की दशा में ऊपर को उठते । साथियों को "भाभरी" कहकर सचेत करते हैं।) दिखाई पड़ते हैं और टंक पाकर कुहरे आदि का रूप भाभी-शा या हिं० माई] बड़े भाई की स्त्री । भौजाई । उ०- धारण करते हैं। वाय। (क) ग्वये को कछु भाभी दीन्हीं श्रीपति श्रीमुख बोले। फंट क्रि० प्र०-उठना ।-निकलना । ऊपर ते अंजुल नंदुल बल करि हरिजू खोले ।-सर । मुहा०-भाष लेना औषधोपचार के लिय पानी में कार पध (ग्व) द ही सको सिर तो है भाभी 4 अग्व के वेतन आदि उबालकर उनकी वापस किग्मा पारित अग को सकना । देखन जैहौं। बफग लेना। भाम-संज्ञा पुं० [सं० (१) कोध । (२) प्रकाश । दीप्ति । (३) (२) भोतिक शास्त्रानुसार घनीभूत वा द्वीभत पदार्थों की सूर्य । (४) बहनोई। (५) एक वर्ण वृत्त का नाम जिसके वह अवस्था जो उनके पर्याप्त ताप पाने पर प्राप्त होती है । प्रत्येक चरण में भगण, मगण और अंत में तीन संगण होते नाप के कारण ही घनीभत वा ठोस पदार्थ द्रव होता तथा है ( भ म य य य) द्रय पदार्थ भाप का रूप धारण करता है। यों तो भाप *संका बी० [ ५० भामा | स्त्री। उ.-आनि पर भाम और वायुभन वा अतिवाध (गैस) एक ही प्रकार के होते विधि वाम तेहि राम मां रकन संग्राम दमकंध काँधो। है, पर भार सामान्य सी और दवाव पाकर द्रव तथा टोप -तुलसी। हो जाता है और प्रायः वे पदार्थ जिनकी वह भार है, ब भामक-संा पुं० [सं० ] बहनोई । वा रोस रूप में उपलब्ध होने हैं। पर गैस साधारण सर्दी भामतीय-संज्ञा पुं० [हिं० भ्रमना ] एक जाति का नाम । इस और दबाव पाने पर भी अपनी अवस्था नहीं बदलती । भाष जाति के लोग दक्षिण भारत में घूमा करते है और चोरी दो प्रकार की होती है-एक आर्द्र, दृमरी अनाई। आई और ठगी से जीविका निर्वाह करते हैं। भाप वह है जो अधिक दंढक पाकर गाढ़ी हो गई हो और भामनी-वि० [सं०] (१) प्रकाशक । (२) मालिक । अति सूक्ष्म ब दों के रूप में, कहीं कहरे, कहीं बादल आदि के संभा पुं० परमेश्वर । रूप में दिग्वाई पड़े। अनाई भाप अत्यंत सक्ष्म और गैन्य भामा-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) स्त्री। उ.---वह सुधि आवत के समान अगोचर पदार्थ है जो वायुमंडल में सब जगह तोहि सुदामा । जय हम तुम बन गए, करियन पढए गुरु अंशांशि रूप में न्यूनाधिक फैली हुई है। यही जब अधिक की भामा।-सूर । (२) क्रुद्ध स्त्री। दबाव वा टंडक पाती है, तब आई भाप बन जाती है। भामिन-संशा मंत्री दे० "भामिनी"। मुहा०–भाप भरना-चिड़िया का अपन बचा के मुंह में मु भामिनि*-संशा सी० दे० 'भामिनी"। डालकर फूकना । (चिदियां अपने बच्चों को अंडे से निकलने भामिनी-संशा मी० [सं० ] (१) क्रोध करनेवाली स्त्री। (२) पर दो तीन दिन तक उनके मुंह में दाना देने के पहले फूकती है।) खी। औरत । भापना-क्रि० स० दे० "भाँपना" । भामी-वि० [सं० भामिन् ] कुद्ध । नाराज़ । भाबर-मंशा पुं० [सं० वप्र ] एक धाम का नाम जो हिमालय, संज्ञा स्त्री० [सं०] तेज़ स्त्री। राजपूताने, मध्य भारत दक्षिण आदि में पहाडी प्रदेशों में भाय -संज्ञा पुं० [हिं० भाई ] भाई । उ०—सेमर केरा तूमस . आर्ट