पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२८

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फुलझरी २३२१ फुलुरिया आतशबाजी जिससे फूल की सी चिनगारियाँ निकलती है। फुलाना-क्रि० स० [हिं० फूलना ] (1) किसी वस्तु के विस्तार उ.-बिहंसी शशि तराई जनु फरी । कैयौ रैन छुट फुल या फैलाव को उसके भीतर वायु आदि का दबाव पहुंचा झरी।-जायसी। कर बढ़ाना । भीतर के दवाव से बाहर की ओर फैलाना। क्रि० प्र०-छोड़ना। उ०-(क) हरखित रूगाति पंख फुलाए।-तुलसी। (२) कही हुई कोई ऐसी बात जिससे कुछ आदमियों में | मुहा०-~-मुँह फुलाना वा गाल फुलाना-मान करना। रिसाना । झगदा विवाद या और कोई उपद्रव हो जाय। आग लगाने- रूठना । वाली बात। (२) किसी को पुलकित बा आनंदित कर देना । किपी में क्रि० प्र०-छूटना । छोड़ना । इतना आनंद उत्पन्न करना कि वह आपे के बाहर हो जाय । फुलझरी-संज्ञा स्त्री० दे० "फुलझड़ी"। उ.-सुलसी भनित भली भामिनि उर सों पहिराइ फलनी-संशा पी.[हिं० फलना ] एक बारहमासी धास जो प्राय: फुलावों। तुलसी । (३) किसी में गर्व उत्पन्न करना । ऊसर भमि में होती है। गर्वित करना । घमंड बढ़ाना । जैसे,—तुम्हीं ने तो फुलग-संज्ञा पुं० [हिं० फल ] फुदना। तारीफ़ कर करके उसे और कुल्ला दिया है। (५) कुसुमित फुलवर-संज्ञा पुं० [हिं० फल+वार ] एक कपड़ा जिसपर रेशम करना। फूलों से युक्त करना । उ०-चावर गेहूँ रहे के बेल बूटे बुने या कढ़े होते हैं। की उरद है आय । कबहूँ मुदगर चिबुक तिल परसों देत फुलवाई-संज्ञा स्त्री० दे. "फुलवाड़ी"। उ०(क) एक सम्बी फुलाय।-मुबारक। सिय संग बिहाई गई रही देखन फुलवाई।-सुलसी। क्रि० अ० दे० "फूलना"। (ख) इक दिन शुक्रसुता मन आई। देखी जाय फूल फुल- फुलायल-संश्वा पुं० दे. "फुलेल."। वाई।-सूर। फुलाव-संशा पुं० [हिं० लना ] फूलने की क्रिया या भाव । फुलवाड़ी-संज्ञा स्त्री. दे. "फुलवारी"। फूलने की अवस्था । उभार या सूजन । फुलवारी-संशा मी० [हिं० फल+वारी ] (1) पुष्पवाटिका । फुलावट-संज्ञा स्त्री० [हिं० फूलना ] फूलने की क्रिया या भाव। उद्यान । बगीचा । उ.---(क) आपुष्टि भूल फूल फुलवाती उभार या सूजन । आपुहि चुनि धुनि खाई । कहें कबीर तेई जन उपरे जेहि | फुलावा-संशा पुं० [हिं० फल ] स्त्रियों के सिर के बालों को गूंथने गुरु लियो जगाई।-कीर । (ख) पुनि फुलवारि लागि की डोरी जिसमें फूल वा फुदने लगे रहते हैं। खजुरा । बहु पासा वृक्ष वेधि चंदन भर बासा-जायसी। फुलिंग*-संज्ञा पुं० [सं० स्फुलिंग, प्रा. फलिग] चिनगारी। 30- (२) काग़ज़ के बने हुए फूल और वृक्षादि जो ठाट पर लगा। जोन्ह लगै अब पावक पुंज औ कुज के फूल फुलिंग कर विवाह में बरात के साथ निकाले जाते है। ज्यों लागे। फूलसरा-संज्ञा पुं० [हिं . फल+सार ] काले रंग की एक चिड़िया | फुलिया-संशा स्त्री० [हिं० फल ] (१) किमी कील या छह के जिसके सिर पर सफेद छीटे होते हैं। आकार की वस्तु का फूल की तरह उभरा और फैला हुआ फुटसुधी-संज्ञा स्त्री० [हिं० फूल+सँधना ] एक चिदिया। फुलही।। गोल सिरा । (२) कील या कौटा जिसका खिरा फूल की फुलहारा-संशा पुं० [हिं० फल+हारा ] [ सी. फुलहारी माली।। तरह फैला हुआ, गोल और मोटा हो। (३) एक प्रकार उ.-लेके फूल बैठ फुलहारी । पान अपव धरे। की लौंग (गहना) जो कान में पहनी जाती है। सवारी।—जायसी। लिसकेप-संशा पुं० [ अं० फल्सकैप ] एक प्रकार का चिकना फुलांग-संज्ञा पुं० [हिं० फूल+अंग ] एक प्रकार की भांग। सफेद कागज़ जिसके भीतर हलकी लकीरें पड़ी रहती हैं। फुलाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० फलना ] (1) दे. "सरफुलाई"। (२) विशेष-पहले इसके हस्ते में मनुष्य के सिर का चित्र बना खुखंडी। (३) एक प्रकार का बबुल जो पंजाब में सिंधु रहता था जिस पर नोकदार टोपी होती थी। इसी कारण और सतलज नदियों के बीच की पहाड़ियों पर होता है। इसे 'फूलस कैप' कहने लगे जिसका अर्थ बेवकूफ की इसके पेग बहुत ऊँचे नहीं होते और विशेष कर खेतों की टोपी होता है। अब इस कागज में अनेक चिह्न बनाए बाहों पर लगाए जाते हैं। इसकी लकड़ी मज़बूत और जाते हैं। इस कागज की माप १२४१५ वा १२१४१६ ठोप होती है और कोल्हू की जाठ और गाड़ियों के पहिये इंच होती है। आदि बनाने के काम में आती है। इससे एक प्रकार का फुलरिया-संज्ञा स्त्री० [देश॰] कपड़े का एक टुकड़ा जो छोटे गोंद निकलता है जो औषध में काम आता है और अमृत बों के चूतड़ के नीचे इसलिए बिछाया वा रखा जाता है सर का गोंद कहलाता है। फुलाह। कि उनका मल दूसरी जगह न लगे। गवतरा। .