पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३०९

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भोम्यमान २६०० भोजपत्र भोग्यमान-वि० [सं०] जो भोगा जाने को हो, अभी भोगा न कंठाभरण, शृंगारमंजरी, चपामायण, चारुचा , तरव- गया हो। जैसे, भोग्यमान नक्षत्र । प्रकाश, व्यवहार समुख्य आदि अनेक ग्रंथ इनके लिखे हुए भोम्या-संशा स्त्री० [सं०] वेश्या । रंजी। बतलाए जाते है। इनकी सभा सदा बड़े बड़े पंडितों मे भोज-संज्ञा पुं० [सं० भाजन या भाज्य ] (1) बहुत से लोगों का । सुशोभित रहती थी। इनकी त्री का नाम लीलावती या जो एक पाथ बैठफर खाना पीना । जेवनार । दावत । (२) बहुत बड़ी विदुषी थी। भोज्य पदार्थ । खाने की चीज़ । (३) ज्वार और भांग के | भोजक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) भोग करनेवाला। भोगी। (२) योग से बनी हुई एक प्रकार की शराब जो पूने की ओर ! ऐयाश । विलासी । उ.--तुम बारी पिय भोजक राजा । मिलती है। गर्व करोध वही पै छाजा ।—जायसी । संज्ञा पुं॰ [सं०] (१) भोरकट नामक देश जिसे आजकल | भोजदेव-संज्ञा पुं० [सं०] कान्यकुज के महाराज भोज । वि. भोजपुर कहते है। (२) चंद्रवंशियों के एक बंश का नाम । दे. "भोज (७)"। (३) पुराणानुसार शांति देवी के गर्भ से उत्पन्न वसुदेव के भोजन-संज्ञा पुं० [सं०] (8) आहार को मुंह में रखकर चबाना। एक पुत्र का नाम । (४) महाभारत के अनुसार राजा दुइयु। भक्षण करना । खाना । (२) वह जो कुछ भक्षण किया के एक पुत्र का नाम । (५) श्रीकृष्ण के सवा एक ग्वाल का जाता हो। खाने की सामग्री । खाने का पदार्थ । नाम । उ०-अर्जुन, भोज भरु सुबल श्रीदामा मधुमंगल क्रि० प्र०-करना।-पाना । इक ताफ । —सूर । (६) कान्यकुछज के एक प्रसिद्ध राजा मुहा०-भोजन पेट में पढ़ना-भोजन होना । खाया जाना । जो महाराज रामभद्र देव के पुत्र थे। इन्होंने काश्मीर तक | भोजनखानी*-संशा स्त्री० [सं० भोजन+हि. खान ] पाकशाला । पर अधिकार किया था। ये नवीं शताब्दी में हुए थे। (७) रसोईघर । उ०-चकित विप्र सब सुनि नभ-बानी । भूप मालवे के परमारवंशी एक प्रसिद्ध राजा जोसंस्कृत के बहुत ! गयउ जा भोजनखानी-तुलसी। बड़े विद्वान् कवि और विद्याप्रेमी थे। भोजनभट्ट-संशा पुं० [हिं० भोजन+सं० भट ] वह जो बहुत अधिक विशेष-ये धारा नगरी के सिंधुल नामक राजा के लड़के थे खाता हो । पेटू। और इनकी माता का नाम सावित्री था। जब ये पाँच वर्ष भोजनशाला-संज्ञा स्त्री० [सं०] रसोईघर । पाकशाला । के थे, तभी इनके पिता अपना राज्य और इनके पालन | भोजनाच्छादन-संज्ञा पुं० [सं०] खाना कपड़ा । अन्न वस्त्र। पोषण का भार अपने भाई मुंज पर छोड़कर स्वर्गवासी हुए खाने और पहनने की सामग्री। थे। मुंज इनकी हत्या करना चाहता था, इसलिये उसने भोजनालय-संशा पुं० [सं० ] पाकशाला । रसोईघर । बंगाल के राजा वत्सराज को बुलाकर उसको इनकी हत्या ; भोजनीय-वि० [सं०] भोजन करने योग्य । खाने योग्य । जो का भार सौंपा । वस्पराज इन्हें बहाने से देवी के सामने खाया जा सके। बलि देने के लिये ले गया। वहाँ पहुँचने पर जब भोज को भोजपति-संज्ञा पुं० [सं०] (१) कंसराज । (२) राजा भोज । मालूम हुआ कि यहाँ में बलि चढ़ाया जाऊँगा, तब उन्होंने धि० दे. "भोज ()"। अपनी जांच पीरफर उसके रक्त से बद के एक पत्ते पर दो भोजपत्र-संज्ञा पुं० [सं० भूर्जपत्र ] एक प्रकार का मझोले आकार श्लोक लिखकर वत्सराज को दिए और कहा कि ये मुंज को का वृक्ष जो हिमालय पर १४.०० फुट की ऊँचाई तक दे देना । उस समय वत्सराज को इनकी हत्या करने का । होता है। इसकी लकड़ी बहुत लचीली होती है और जल्दी साहस न हुआ और उसने इन्हें अपने यहाँ ले जाकर छिपा : खराब नहीं होती; इसलिये पहाबों में यह मकान आदि रखा। जब वत्सराज भोज का कृत्रिम कटा हुआ सिर लेकर । बनाने के काम में आती है। इसकी पत्तियां प्राय: चारे के काम मुंजके पास गया, और भोज के श्लोक उसने उन्हें दिए, में आती है। इसकी छाल कागज़ के समान पतली होती है तब मुंज को बहुत पश्चात्ताप हुआ। मुंज को बहुत विलाप और कई परतों में होती है। यह छाल प्राचीन काल में प्रथ करते देखकर वत्सराज ने उन्हें असल हाल बसला दिया और लेख आदि लिखने में बहुत काम आती थी और अब और भोज को लाकर उनके सामने खड़ा कर दिया। मुंज ने भी तांत्रिक लोग इसे बहुत पवित्र मानते और इस पर सारा राज्य भोज को दे दिया और आप सत्रीक वन को चले। प्रायः यंत्र मंत्र आदि लिखा करते हैं। इसके अतिरिक्त छाल कहते है कि भोज बहुत बड़े वीर, प्रतापी, पारित और का उपयोग छाते बनाने और छतें छाने में भी होता है, और गुणग्राही थे। इन्होंने अनेक देशों पर विजय प्राप्त की भी । कभी कभी यह पहनने के भी काम में आती है। छाल का और कई विषयों के अनेक ग्रंथों का निर्माण किया था। ये रंग प्राय: लाली लिए खाकी होता है और उस पर छोटी बहुत अच्छे कवि, दार्शनिक और ज्योतिषी थे। सरस्वती छोटी धारियों होती है। इसके पत्तों का काय वातनाशक