पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३६८

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मरकना मरजिया सब से अंतिम अवस्था। भाटा की चरम अवस्था जो प्रायः वि० (१) बहुत ही कुरूप और विकराल आकृति का चेष्टाहीन। अमावास्या और पूर्णिमा से दो चार दिन पहले होती है। कुरूप । (२) जो सदा उदास रहता हो । मनहूस । रोना। मग्कना-कि० अ० [ अनु० ] (1) दबकर मरमराना । दबाव के | मग्ना -संज्ञा पुं० दे० "मिरचा"। नीचे पढ़कर टूटना। दयना। उ.-सुनत ही सौतिन मगचोवा-संज्ञा पुं० [ देश ] एक प्रकार की तरकारी जिसका करेजा करकन लाग्यो मरकन लाग्यो मान भवन मन हान्यो व्यवहार योरस में अधिकता से होता है। सो।—देव । (२) दे. "मुड़कना"। मरज-संज्ञा पुं० [अ० म । (१) रोग। बीमारी। उ०—(क) आली मरकहा-वि० [हिं० मारना+हा प्रत्य० [स्त्री० मरवाही । कछू को कछू उपचार कर पैन पार पकै नरजैरी ।-भा- सींग से मारनेवाला । जो सींग से बहुत सारता हो। कर । (ख) नेह तरजनि बिरहागि सरजनि सुनि मान मर- जनि गरजनि बदरान की।-श्रीपति । (२) बुरी लत । मरकाना-क्रि० स० [हिं० मरकना } (१) दवाकर चूर करना । ग्वराब आदत । कुटेव। जैसे-आपको तो बकने का मरज़ इतना दबाना कि मरमराहट का शब्द उत्पन्न हो । तोड़ना। है। (इस अर्थ में इसका प्रयोग अनुचित बातों के लिये (२) दे. "मुरकाना"। होता है।) भरकम-वि० [अ० ] [ स्त्री० मरकूमा ] लिखित । लिखा हुआ। मरजाद-मंशा स्त्री० [सं० मादा ] (1) सीमा । हद । उ०- मरकोटी-संज्ञा स्त्री० [ देश ] एक प्रकार की मिठाई । गुरू नाम है गम्य का शिष्य सीख ले सोष । बिनु पदई मरखंडा--वि० दे. "मरखना"। मरजाद बिनु गुरू शिष्य नहि होय । (ख) सुदरता मरजाद मना -वि० [हिं० मारना+न। (प्रत्य०) [ स्त्री० मरखन्नी ] भवानी। जाइन कोटिन बदन यम्बानी ।--तुलसी । (२) सींग से मारनेवाला । मस्कहा । (पशु) प्रतिष्ठा । आदर । इजन । महत्व । उ०—(क) गुरु मरजाद मररूम-संज्ञा पुं० [हिं० मलखंभ ] वह छूटा जो कातर में गाड़ा . न भक्तिन नहिं पिय का अधिकार। कहै कबीर व्यभिचारिणी रहता है। आठ पहर भरतार । —कबीर । (ख) यह जो अंध बीस हू मरगजा-वि० [हिं० मलना+गीजना ] मला दला। मसला लोचन छलबल करत आनि मुख हेरी। आइ शृगाल सिंह हुआ। गीजा हुआ। मलित दलित । उ०-(क) सब बलि माँगत यह मरजाद जात प्रभु तेरी । -सूर । अरगज मरगज भा लोचन पील सरोज । सत्य कहहु पशावत क्रि० प्र०-खोना |-जाना । --रखना । सखी परी सब स्वोज ।-जायसी। (ख) घर पठई प्यारी | (३) रीति । परिपाटी । नियम । विधि । उ०-संत संभु अंक भरि । कर अपने मुख परमिश्रिया के प्रेम सहित दोऊ श्रीपति अपवादा । सुनिय जहाँ तह अस मरजादा- भुज धरि धरि । सँग सुख लूटि हरष भई हिरदय चली। तुलसी। भवन भामिनि गजगति बरि । अंग मरगजी पटोरी राजति ! मरजादा-संज्ञा स्त्री० दे. "मर्यादा" या "मरजाद"। छबि निरखत ठाढ़े ठाढ़ेहरि--सूर । (ग) तुम सौतिन । मरजिया-वि० [हिं० मरना+जाना । (8) मरकर जीनेवाला । देखत दई अपने हिय ते लाल । फिरत सबन में डहडही है । जो मरने से बचा हो। उ०--(क) तस राजै रानी कंठ मरगजी भाल।-विहारी। लाई। पिय मरजिया नारि जनु पाई।--जायसी । (२) संज्ञा पुं० दे० "मलगजा" । मृतप्राप। जो मरने के समीप हो। मरणासन। उ.- मरगी-संज्ञा स्त्री० [हिं० मरना मि. फा. मर्ग ] फैलनेवाला पद्मावति जो पावा पीऊ । जनु मरजिये परा तनु जीऊ।-- रोग । मस्क । मरी। जायरी । (३) जो प्राण देने पर उतारू हो। मरनेवाला । मरगोल, मरगोला-संज्ञा पुं० [१०] गाने में ही जानेवाली उ.--अब यह कौन पानि में पीया। भै तन पाँख पतंग गिटकिरी । स्वर: कंपन । (संगीत) मरजीया । (४) अधमरा । उ.-जह अस परी समुंद क्रि० प्र०--भरना-लेना। नग दीया । तेहि किम जिया वह मरजीया ।--जायसी। मरघट-संशा पुं० [सं०] वह घाट वा स्थान जहाँ मुर्दे फूंके जाने संशा पु० जो पानी में डूबकर उसके भीतर से चीज़ों को हैं। मुदी के जलाने की जगह । स्मशान घाट । मसान । निकालता है। समुद्र में डूबकर उसके भीतर से मोती उ.--(क)जा घर साधु न सेवइ पारमझ पति नाहि ते आदि निकालनेवाला । जिवकिया। उ०—(क) जस मर- घर मरघट सारिखा भूत बसे सा माहि।-कवीर । (ख) जिया समुंद धेसि मारे हाथ आव तव सीप । हँदि लेहु हरिश्चंद्र का पुत्र रोहित मर गया। उस मृतक को ले रानी जो स्वर्ग दुआरे चढ़े सो सिंहल दीप ।-जायसी । (ख) मरघट गई। लल्लू। कविता चेला विधि गुरू सीप सेवाती ईद । तेहि मानुष की मुहा०-मरघट का भुतना प्रेत । आस का जो मरजिया समुंद ।-जायसी । (ग) तन समुद्र