पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मलियामेट २६७६ मल्ल यारह ढाई पंक्तियों में रखी जाती है। केवल बीच का विंदु । हंस और कलहंस पोत ।-सूदन । (३) बौख, शास्त्रानुसार वाली रहता है । गोटियों की चाल एक विंदु से दूसरे बिंदु एक संख्यास्थान । (४) दे."अमलूक"। तक लकीरों के मार्ग से होती है। जब एक गोटी किसी दूसरी वि० [देश॰] सुदर । मनोहर । उ०-प्यारी प्यारी के गोटी को उल्लंघन करती है, तब वह पहली गोटी मानों मर मलूक हरियाली कुजें। शोभा छवि आनंद भरी सब सुख जाती है और खेल में से निकालकर अलग कर दी जाती की पुंजे ।-श्रीधर । है। दोनों ओर की मव गोटियाँ जब मलिया से चौक में मलेक्ष-संज्ञा पुं० दे. "म्लेच्छ"। निकल आती है, तब यदि किसी पक्षवाला 'मलिया मेट' मलेच्छ-संज्ञा पुं० दे० "म्लेच्छ"। शब्द कह दे तो दोनों ओर की मलिया मिटा दी जाती है मलेरिया-संज्ञा पुं॰ [अं॰] एक प्रकार का ज्वर जो वर्षा ऋतु में और फिर गोटियाँ चौक में ही रहती है। पर यदि कोई फैलता है। मलिया-मेट न कहे तो गोटियाँ बरायर मलिया में आती! विशेष पहले डाक्टरों का विश्वास था कि वस्तुओं के सड़ने जाती रहती है। वा किसी अन्य कारण से वायु में विष फैलता है जिससे यौ०-मलियामेट। सविराम, अर्थात् अतरिया, तिजरा, चौथिया आदि ज्वर, (३) घेरा । चक्कर। जो मलेरिया के अंतर्गत है, फैलते है। पर अब उन्होंने मुहा०-मलिया बाँधना-रस्सी को मोड़कर बाँधना । (लश०) । यह निश्चय किया है कि मच्छड़ों के दंश मे मलेरिया का मलियामेट-संशा पुं० [हिं० मलिया+मिटाना ] सत्तानाश । तहस : विष मनुष्यों के रक्त में पहुँचता है जिसमे सविराम ज्वर __नहस । जैसे,—उसने सारा घर मलियामेट कर दिया। । का रोग उत्पन्न होता है। मलिष्ठ-वि० सं०] अत्यंत मलिन बहुत अधिक मैला कुचैला। मलोला-संज्ञा पुं० [अ० मलूल वा बलबला ] (१) मानसिक व्यथा । मलिस-संज्ञा स्त्री० [ देश० ] छेनी के आकार का सुनारों का एक औ दुःख । रंज। उ-राधे अहो हरि भावते को भरिके भुज ज़ार जिससे हँसुली की गिरह वा बुडियाँ उभारी जाती है। भेटिये मेटि मलोलें।-देव।। मलीदा-संशा पुं० [फा०] (१) चूरमा। (२) एक प्रकार का मुहा०-मालोला था मलोले आना-दुःख होना । पछतावा ऊनी वस्त्र जो बहुत मुलायम और गरम होता है। यह बुने होना । पश्चात्ताप होना । मलोले खाना-मानसिक व्यथा जाने के बाद मलकर गफ और मुलायम बनाया जाता है। सहना । दुःख उठाना। उ०-उन्होंने मसोसे के मलोले खा यह प्राय: काश्मीर और पंजाब से आता है। के कहा ।--ईशा अल्लाह । दिल के मलोले निकालना भवास मलीन-वि० [सं० मलिन ] (1) मैला । अस्वच्छ । उ०—(क) . निकालना । कुछ बक शककर मन का दु:ख दूर करना । जिनके जस प्रताप के आगे। ससि मलीन रबि सीतल (२) वह इच्छा जो उमड़ उमड़कर मानसिक व्याकुलता लागे।—तुलसी । (ख) मन मलीन मुख सुदर कैसे । विष उत्पन्न करे। अरमान । जैसे,-मेरे मन का मलीला कब रस भरा कनक घट जैसे। -तुलसी। (२) उदास । उ. होगा । (गीत) अति मलीन वृषभानु कुमारी। हरिश्रम जल अंसर तनु भौंजे कि०प्र०-आना ।-उठना ।-निकालना। ता लालच न धुवावति सारी।-सूर । | मल्ल-संज्ञा पुं० [सं०] (1) एक प्राचीन जाति का नाम । इस मलीनता-संशा स्त्री० दे० "मलिनता"। जाति के लोग द्वंद्व युद्ध में बड़े निपुण होते थे इसीलिए मलीमस-संज्ञा पुं० सं०] (१) लोहा । (२) पीले रंग का इंद्व युद्ध का नाम मल्लयुद्ध और कुश्ती लड़नेवाले का नाम कसीस । (३) पाप। मल्ल पड़ गया है। महाभारत में मल्ल जाति, उनके राजा वि० (१) मलिन । मैला । (२) काला । (३) पापी । और उनके देश का उल्लेख है। भारतवर्ष के अनेक स्थान मलीयसु-वि० [सं०] [स्त्री० मलीयसी ] अत्यंत मलिन । बहुत जैसे मुलतान (मल्ल-स्थान) मालव, मालभूमि आदि में अधिक मैला कुचैला । (मल्ल) शब्द विकृत रूप में मिलता है। त्रिपिटक से कुश- मलुक-संज्ञा पुं० [सं० ] (1) उदर । पेट । (२) एक प्रकार नगर में मल्लों के राज्य का होना पाया जाता है । मनुस्मृत्ति का पशु। में मल्लों को लिछिवी आदि के साथ संस्कारच्युस या मास्य मलू-संशा स्त्री॰ [ स० माल ] (१) मलधन नामक कचनार की क्षत्रिय लिखा है। पर मल आदि क्षत्रिय जातियाँ बौद्ध छाल । यह बहुत रद होती है और रंगने पर कूट कर ऊन मतावलंबी हो गई थी। इसका उल्लेख स्थान स्थान पर में मिलाई जाती है। (२) मलयन नामक वृक्ष । त्रिपिटक में मिलता है जिससे प्राणों के अधिकार से मटूक-संज्ञा पुं० [सं० ] (१) एक प्रकार का कीया । (२) एक उनका निकल जाना और प्रात्य होना ठीक जान पड़ता है। प्रकार का पक्षी। उ०.-मैना मलूक कोइल कपोत । बग-: और कदाचित् इसीलिए स्मृतियों में ये मास्य कहे गए