पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४०२

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महानिशा महापुमान् महानिशा-संहा स्त्री० [सं० } (१) रात्रि का मध्य भाग। आधी (६) माकेद कमल । (७) महाभारत काल के एक नगर का रात । (२) कल्पांन या प्रलय की रात्रि । नाम जो गंगा के किनारे पर था। (4) सी पम की संख्या महानिशीय-संक्षा पुं० [सं०] जैनियों के एक संप्रदाय का नाम । (९) कुबेर के अनुचर एक किनर का नाम । महानीच-सा पुं० [सं० ) धोवी। महापध-संज्ञा पुं० [सं०] महाकाम्य । महानी-संशा पु० [सं० महा+हिं० नाबू ] बिजौरा नीबू । महाएनस-संज्ञा पुं० [सं०] सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार का महानीम-संध्या बी० [सं० महानिम (1) एकायन । (२) तुन सोपा का पेड़। महापर्ण-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का शाल वृक्ष । महानील-संज्ञा पुं० [सं० 1 (6) भृगराज पक्षी। (२) एक प्रकार महापवित्र-सा पुं० [सं० । विष्णु । का नीलम जो सिंहल द्वीप में होता है। (३) एक प्रकार का महापातक-संज्ञा पुं० [सं० ! मनु के अनुसार पाँच बहुत बरे गुग्गुल । (१) एक पर्वत का नाम जो मेरु पर्वत के पास पाप जो ये ई-ब्रह्महत्या, मद्यपान, चोरी, गुरु की पर्व के माना जाता है । (५) एक प्रकार का याप । एक नाग का साथ व्यभिचार और ये सब पाप करनेवालों का पाय नाम । करना । कहते है कि जो लोग ये महापातक करते हैं, वे नरक महानीली-संज्ञा स्त्री० [सं०] नीली अपराजिता । भोगने के उपरांत भी सात जन्म तक घोर कष्ट भोगत है। महानुभाव-संक्षा पु० [सं० } कोई बड़ा और आदरणीय व्यक्ति। महापानकी-संज्ञा पुं० [सं. महापातकिन् | वह जि ने महापातक महापुरुष । महाशय। किया हो। महानुवभावता-संवा स्त्री० [सं०] महानुभाव होने का भाव। महापात्र-सापु०सं०1(१)महाबाह्मण वा कहहामायण मृतक पड़प्पन । उ-यह आपकी महानुभावता है कि आपने कर्म का दान लेता है । (२) महामंत्री । प्रधान मंत्री । अपनी गलती मान लो। महापाद-संज्ञा पुं० [सं० ] शिव । महानत्य-संज्ञा पुं० [सं० ] शिव । महापाय-संज्ञा पुं० [सं०] महापातक । महानेत्र-संह पुं० [सं०] शिव । महापार्श्व-संक्षा पुं० [सं०] (1) एक दानव का नाम । (२) एक महानेमि--संज्ञा पुं० [सं०] कौआ । राक्षय का नाम । महापंचमल-संका पं० [सं०] बेल, अरनी, सोनायादा, काश्मरी महापाश-संह पुं० [सं०] पुराणानुसार एक प्रकार का यम्त । और पाटला इन पांचों वृक्षों की जड़ों का समूह जिसका महापाशुपत-संभ पं० [सं.] (१) वकुल। गोलागि। (२) व्यवहार वैद्यक में होता है। शवों का एक प्राचीन संप्रदाय जिसमें पशुपति की उपा- महापंचविष -संा पुं० [सं०] शृंगी, कालकूट, मुस्तक, बछनाग सना होती थी। और शंखकर्मी इन पांचों विषों का समूह । महापासक-संग पु० [सं०] बौद्ध भिक्षुक | श्रमण । महापंचांगुल-संज्ञा पुं० [सं० ] लाल अंडा का वृक्ष । महापितृयज्ञ-सं। पु० [सं० ) प्राचीन काल का एक प्रकार का महारक्ष-संग पुं० [सं०] (1) गरुड़। (२) उल्लू । (३) एक श्राद्ध या स्तृियज्ञ जो शाकमेध में दूसरे दिन होता था। प्रकार का राजहंस। महापीठ-संशा ५० दे० “पीठ"। महापगा-संवा श्री. [सं० ] एक प्राचीन नदी का नाम । महारीलु-संज्ञा पुं० सं० ] एक प्रकार का पील वृक्ष । महापथ-सा पुं० सं०1 (1) बहुत लंबा और चौड़ा रास्ता। महापट-संज्ञा पुं० [सं०] भावप्रकाश के अनुसार रस आदि राजपथ । (२) याज्ञवल्क्य स्मृति के अनुसार २१ नरकों में तैयार करने का एक प्रकार जिपमं दो हाथ लंबा, दो हाथ से १६ वा नरक । (३) परलोक का मार्ग । मृत्यु । मौत । घोड़ा और दो हाथ गहरा एक गड्ढा खोदकर उसमें एक (४) सुषुम्ना नादी 1 (५) हिमालय के एक तीर्थ का नाम । हज़ार उपलें रखते है; और उन उपलों पर मिट्टी के बर्तन (६) शिव । में औषधि आदि डालकर उसका मुँह बंद करके रम्य महापथगमन-संज्ञा पुं० [सं०] मरण । देहांत । देते हैं और तब ऊपर से पांच सौ उपलं रखकर आग लगा महापथिक-संशा पुं० [सं०] वह जो मरने के उद्देश्य से हिमा ! देते हैं। __ लय पर्वत पर जाय। 'महापुण्य-संज्ञा पुं० [सं० ] एक बोधियत्व का नाम । महापा-संज्ञा पुं० [सं०] (1) नौ निधियों में से एक निधि। महापुण्या-संज्ञा स्त्री० [सं० ] पुराणानुसार एक नदी का नाम । (२) आठ दिग्गजों में से एक दिग्गज जो दक्षिण दिशा में महापुत्र-संशा पुं० [सं०] लबके का पुत्र । पोता। स्थित है। (३) हाथी की एक जाति। (४) फनवाली जाति महापुमान्-संज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक पर्वत के अंतर्गत एक प्रकार का साँप । (५) एक प्रकार का दैत्य का नाम । ६७४