पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दम फ्रैवम-संशा पुं० [0] गहराई की एक नाप जो छ: फुट की पाया जाना या होना । क्रमशः पहुत से स्थानों में विद्य- होती है। पुरसा। मान होगा या मिलमा । बहुतायत से मिलना । जैसे- फ़र-संज्ञा स्त्री० [ #. फायर ] चंदक, तोप भादि हथियारों का आंदोलन फैलना, बीमारी फैलवा, प्लेग फैलना । जैसे, (क) देगना। गोभी अभी फैली नहीं है। (१०)धर उधर दूर तक पहुँचना । क्रि० प्र०—करना ।--होना । जैमे, सुगंध फैलना, स्याही फैलना, खबर फैलना। (११) फैल*-संज्ञा पुं० [१० फेल ] (1) काम । कार्य । उ०-ौल | प्रसिद्ध होना । बहुत दूर तक ज्ञात था विदित होना। तजि बैल तजि फैल तजि गैलन में, हेरत उमा को यों मशहूर होना । जैसे, यश फैलना, नाम फैलना, बात उमापति हित रहे।-पनाकर । (२) क्रीडा । खेल । (३) फैलना । उ०-(क) राव स्तमसेन के कुमार को सुजस नखरा । मकर । फैलि रयो पुहुमी में ज्यों प्रवाह गंगापथ को। मतिराम । क्रि० प्र०-करना।-मचाना। (ख) अब तो बात फैलि गई जानत सब कोई। गीत ।

  • संज्ञा स्त्री० [सं० प्रसूत, वा प्रहित, प्रा० पयरल] (1) (१२) आग्रह करना । हठ करना । जिद करना । (१३) भाग

फैला हुआ। (२) विस्तृत । लंबा चौदा। का ठीक ठीक त्या जामा । तकसीम दुरुस्त उतरना। फैलना-क्रि० अ० [सं० प्रहित वा प्रस्त, प्रा० पयल्ल+ना (प्रत्य॰)] फैलसूफ-वि० [यू. फिलसफ दार्शनिक ] फिजूल खर्च। (1) लगातार स्थान घेरना । यहाँ से वहाँ तक बराबर | फैलसूफी संज्ञा स्त्री० [हिं० फैलसूफ 3 फिजुलखर्ची । रहना । जैसे,—जंगल नदी के किनारे पहार तक फैला | फैलाना-क्रि० स० [हिं० फैलना ] (1) लगातार स्थान घिर- वाना । यहाँ से वहाँ तक बराबर बिछाना, रखना या ले संयो० क्रि०-जाना। जाना । जैसे,—उसने अपना हाता नदी के किनारे सक (२) अधिक स्थान छैफना । बादा जगह घेरना । अधिक फैला लिया है। म्यापक होना। विस्तृत होना । पसरना। संकुचित या संयो० कि०-देना ।-डालना-लेना। बोडे स्थान में न रहना । अधिक बड़ा यो लंबा चौड़ा (२) अधिक स्थान बिरयाना। विस्तृत करना । पसा- होना । इधर उधर बढ़ जाना । जैसे,—(क) खूब फैलकर रना । विस्तार बढ़ाना । अधिक बड़ा या लंबा चौदा करना। बैठना । (ख) गरमी पाकर लोहा फैल जाता है। (ग) इधर उधर बढ़ाना । जैसे, तार फैलाना, आटे की लोई पाँव धरै जित ही वह बाल नहीं रंग लाल गुलाल सो फैलाना । (३) संकुचित न रखना । सिमटा हुआ, लपेटा फैलै ।-शंभु । (३) मोटा होना। स्थूल होना । मोटाना। हुआ, या तह किया हुआ न रखना । पसारना । जैसे,—उसका बदन फैल रहा है। (४) आवृत करना । जैसे, सूखने के लिए कपड़ा फैलाना । उड़ने के छाना । व्यापक होना । भरना । ध्यापना। दूर तक रखा लिए पर फैलाना। (४) प्यापक करना । छा देना। या पड़ा रहना। जैसे, धूल फैलमा, जाल फैलना । भर देना । दूर तक रखना या स्थापित करना । जैसे,- उ.-कदम अनार आम अगर अशोक थोक लतन समेत (क) यहाँ क्यों कूड़ा फैला रखा है। (ख) चिड़ियों को लोने लोने लगि भूमि रहे। फूलि रहे, फलि रहे, कैलि फंसाने के लिए जाल फैलामा । (५) इकट्ठा न रहने देना । रहे, फबि रहे, सपि रहे, झलि रहे, झुकि रहे, भूमि बिखेरमा । अलग अलग दूर तक कर देना । जैसे, बच्चे रहे। पाकर । (५) संख्या बढ़ना। बढ़ती होना। के हाथ में बताशे मत दो, इधर उधर फैलाएगा। (६) वृद्धि होना । जैसे, कारबार फैलना। उ०-फले फूले बढ़ाना । बढ़ती करना । वृद्धि करना । जैसे, कारवार फैले खल, सीदे साधु पल पल, बाप्ती दीपमालिका फैलाना । (७) किसी छेद या गड्ढे को और बड़ा करना ठठाइयत सूप है। तुलसी । (६) इकट्ठा न रहना। या बढ़ाना । अधिक खोलना । जैसे, मुँह फैलाना, छेद छितराना । बिखरना। अलग अलग दूर तक इधर उधर फैलामा(८) मुबा न रखमा । पूरा सान कर किसी पका रहमा । जैसे,—(क) हाथ से गिरते ही माला के दाने ओर बढ़ाना । जैसे,—(क) हाथ फैलाओ तो दें। (ख) इधर उधर फैल गए। (ख) सिपाहियों को देखते ही डाकू पैर फैला कर सोना । (१) प्रचलित करना । किसी वस्तु इधर उधर फैल गए। (७) किसी छेद या गड्ढे का और या बात को इस स्थिति में करमा कि वह जनता के बीच बड़ा हो जाना था पर जाना । अधिक खुलना। पाई जाय । इयर उधर विद्यमान करना । जारी करना । जैसे, मुँह फैलना। (८) मुहरा न रहना। पूरा सम जैसे, विद्रोह फैलाना, द्वेष फैलाना, विद्या फैलाना, कर किसी ओर बढ़ना । जैसे, फोदे के तनाव से बीमारी फैलाना । उ०-राज काज दरवार में फैलाबहु हाथ फैलता नहीं है। (१) प्रचार पाना । चारों ओर यह रन । हरिश्चंद्र। (10) इधर उधर दूर तक