पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४१०

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महास्नायु महिषासुर महास्नायु-संज्ञा पुं० [सं०] वह प्रधान नाही जिसमें से रक्त अंबर हरत सबन तन हेरी। पति अति रोष कर मनी महियाँ बहता है। इसे करश या अस्थिबंधन नादी भी कहते हैं। भीषम दई वेद विधि देशी ।-सूर (ख) सबै मिलि पूजा महास्मृति-संशा स्त्री० [सं०] दुर्गा । हरि की बहियाँ । जो नहिं लेत उठाइ गोवर्धन को बांधत महाहंस-संज्ञा पुं० [सं०] (१) एक प्रकार का हंस । (२) विध्यु। ब्रज महियाँ । कोमल कर गिरि धयो घोष पर शरद कमल महाहनु-संज्ञा पुं० [सं०] (1) शिव । (२) तक्षक की जाति का की छहियाँ। सूरदास प्रभु तुमरे दरश आनंद होत प्रज एक प्रकार का खॉप । (३) एक दानध का नाम । माहियाँ।—सूर। महाहस्त-संज्ञा पुं० [सं० ] शिव । महियाज-संज्ञा पुं० [हिं० महना ] ईव के रस का फेन जो उबाल महाहास-संशा पुं० [सं०] जोर से ठठाकर हँसना । अट्टहास। खाने पर निकलता है। महाहि-संज्ञा पुं० [सं०] वासुकि नाग। महिर-संज्ञा पुं० [सं०] सूर्य । महाहिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का हिचकी का रोग महिरावण-संझा पु० [सं० महिरावण ] एक राक्षम का नाम | जिसमें हिचकी आने के समय मारा शरीर काँप उठता है ___ कहते हैं कि यह रावण का लबका था और पाताल में रहता और मर्म-स्थान में वेदना होती है। था। यह रामचंद्र और लक्ष्मण को लंका के शिविर से उठा महाहव-संज्ञा पुं० [सं०] शिव । कर पाताल ले गया था। रामचंद्र और लक्ष्मण को ढूँढ़ते महाहस्व-संज्ञा पुं० [सं०] केवाच । काँछ। हुए हनुमान जी पाताल गए थे और महिरावण को मार कर महि*--अन्य ० दे० "महँ"। राम-लक्ष्मण को ले आए थे। यह कथा बाल्मीकि रामायण महिंजक-संज्ञा पुं० [सं० ] चूहा। और पुराणों में नहीं पाई जाती। महिंधक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) चूहा । (२) नेवला । (३) भार महिला-संशा स्त्री० [सं०] (1) खी। (२) फूलप्रियंगु । (२) उठाने का छींका । सिकहर जिसे बहँगी के दोनों छोरों में रेणुका नामक गंध द्वग्य। बाँधकर कहार बोझ उठाते हैं।। महिष-संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० महिए। 1 (9) मैंस। (२) बह राजा महि-संशा स्त्री० [सं०1(१) पृथ्वी । (२) महिमा। (३) विज्ञान जिम्मका अभिषेक शास्त्रानुसार किया गया हो। (३) एक शक्ति । महत्तष । राम का नाम जिसे पुराणानुसार दुर्गा देवी ने मारा था। महिका-संवा स्त्री० सं० हिम । बर्फ । (1) एक वर्णसंकर जाति का नाम जो स्मृतियों में क्षत्रिय महिखों-संज्ञा पुं० दे. “महिष"। पिता और तावरी माता से उत्पन्न कही है । (५) एक महिखरी-संशा स्त्री. ( ? ] अट्ठाईस मात्राभों के एक छंद का साम का नाम । (६) पुराणानुसार कुशद्वीप के एक नाम जिसमें चौदह मात्राओं पर यति होती है। पर्वत का नाम । (७) कुश द्वीप के एक वर्ष का नाम । (6) महिदास-संज्ञा पुं० दे. “महीदास"। (५) भागवत के अनुसार अनुहाद के पुत्र का नाम । माहिदेव--संज्ञा पुं० [सं०] बाक्षण । महिपकंद-संशा पुं० [सं०] शुभ्रालु । भैंसा कंद। महिधर-संज्ञा पुं० दे० "महीधर"। महिषक-संज्ञा पुं० [सं०] एक वर्णसंकर जाति का नाम । महिपाल*-संशः पुं० दे० "महरपाल'। महिषधी-संशा स्त्री० [सं०] दुर्गा महिफर-संशा पुं० [सं० मधुफल ] मधु । शहद । महिषध्वज-संज्ञा पु० | सं०] (1) यमराज । (२) जैन शाखा- महिमा-संमा खा० [सं० महिमन् ] (१) महत्व । माहात्म्य । नुसार एक अर्हत् का नाम । बसाई। गौरव । (२) प्रभाव। प्रताप । उ०-सुनि आचरज : महिषमत्स्य-संज्ञा पुं॰ [सं०] एक प्रकार की मसुली जो काले फरह जनि कोई । सप्त संगति महिमा नहि गोई।- रंग की होती है। इसमेहरं बड़े बदे होते हैं। यह बल- सुलसी। (३) अणिमा आदि आठ प्रकार की सिद्धियों वा । वीर्यकारी और दीपन-मुग-युक्त मानी जाती है। ऐश्वस्यों में से पांचवीं जिससे सिद्ध योगी अपने आपको महिषमर्दिनी-मंशा ती [सं०] दुर्गा का एक नाम । बहुत यदा बना लेता है। महिषमस्तक-संश। पुं० [सं०] एक प्रकार का जरहन धान । महिमावान-संशा पुं० [सं०] मार्कंडेय पुराणानुसार एक प्रकार महिषवल्ली-संज्ञा स्त्री० [सं०] हिरेदा। के पितृगण। महिषवाहन-संज्ञा पुं० [सं० } यमराज । महिन-संज्ञा पुं० [सं०] शिव का एक प्रधान स्तोत्र जिसे पुषमहिषाक्ष-संज्ञा पुं० [सं० ] भैसा, गुग्गुल । दंताचार्य ने रचा था। महिषाईन-संज्ञा पुं० [सं०] स्कंद का एक नाम । महियाँ*-अभ्य० [सं० मध्य प्रा० मश-मई ] में। उ.-(क) । महिषासुर-संज्ञा पुं० [सं०] एक असुर का नाम जो रंभ नामक जेती लाज गोपालहि मेरी । तेती नाहि बधू हौं जाकी देस्य का पुत्र था । कहते है कि इसकी आकृति भैसे की