पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४१६

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मोग-टीका २७०७ मौजा या कारना=केशो को दो ओर करके बीच में माँग निकालना। हुए जहाज का रुख कुष्ट तिरछा करना। गोस (लश०) माँग बाँधना=कंघी चोटी करना । (20) (२) पाल के नीचेवाले कोने में बैंधा हुआ वह रस्मा जिसकी (२) किमी पदार्थ का ऊपरी भाग । सिरा । (क०) (३) | सहायता से पाल को आगे ढ़ाकर या पीछे हटाकर हवा सिल का यह ऊपरी भाग जो कूटा हुआ नहीं होता और । के रुख पर करते हैं। (लश.) जिस पर पीसी हुई चीज़ रखी जाती है। (५) नाव का माँचना*-क्रि० अ० [हिं० मचना ] (1) आरंभ होना । जारी गावदुमा सिरा (५) दे. "माँगी"। होना। शुरू होना । उ.---देव गिरा सुनि सुदर साँची । मांग-टीका-संज्ञा पुं० [हिं० माँग+टीका ] स्त्रियों का एक गहना प्रीति अलौकिक दुहुँ दिपि माँची।-सुलसी। (२) प्रसिधु जो मांग पर पहना जाता है और जिम्मके बीच में एक होना । उ.--श्रीहरिदाय के स्वामी स्याम कुंज बिहारी की प्रकार का टिकढ़ा होता है जो माथे पर लटका होने के | अटल अटल प्रीति मांची।-काष्ठनिता। कारण टीके के समान जान पड़ता है। मांचा-संशा पुं० [सं० मंच, हिं० मंझा ] [श्री. अल्पा. मांचा मांगन -संज्ञा पुं० [हिं० मागना ] (9) मांगने की क्रिया या! (१) पलंग । खाट । मंझा । (२) बाट की तरह भाव । (२) याचक । भिक्षुक । भिग्वमंगा । मंगन । उ०- की बुनी हुई छोटो पीदी जिस पर लोग बैठते हैं। (१) नृप करि विनय महाजन फेरे । सादर एकल माँगने . (३) मचान। टेरे।-तुलसी । (ख) रीति महाराज की निवाजिये जी माँची-संज्ञा स्त्री० [हिं० माँचा ] बैलगाड़ियों आदि में बैठने की जगह माँगनो सो दोष दुख दारिद दरिद्र के के छोड़िये।-तुलसी के आगे लगी हुई वह जालीदार झोली जिसमें माल अम- माँगना-क्रि० स० [सं० मार्गण याचना ] (1) किसी से यह बाब रखते हैं। कहना कि तुम अमुक पदार्थ मुसे दो। कुछ पाने के लिए माँछां-संज्ञा पुं० [सं० मत्स्य ] मछली। उ०-आह सुगुन सगुनि प्रार्थना करना या कहना । याचना करना । जैसे,—(क) : अताका । दहिउ माँछ रू.इकर टाका । जायसी। मैंने उनये १०) मांगे थे। (ख) तुम अपनी पुस्तक उनसे! संशा पुं० दे० "मांच"। माँगलो । उ०-(क) सोप्रभु यो मरिता तरि कहूँ माँगत | माँछना-कि० अ० [सं० मध्य ? ] घुसना । धंसना । पैठना। नाउ करारे हठाड़े।--तुलसी। (ख) माँगउँ दूसर बर | कर जारी।–तुलमी। (२) किसी से कोई आकांक्षा पूरी माँछर-संज्ञा स्त्री० [सं० मत्स्य ] मछली। करने के लिए कहना । जैसे,—हम तो ईश्वर से दिन रात | माँछली-संशा स्त्री० [सं० मत्स्य ] मछली। यही मांगते है कि आप नीरोग हो । उ.-माँगत तुलसि- | माँछी-संशा स्त्री० दे. "मक्खी" । दास कर जोरे । बरसहि रामसिय मानस मोरे । —सुलसी। माँजना-क्रि० स० [सं० मजन ] (1) जोर से महकर साफ माँगफूल-संज्ञा पुं० दे० "माँग टीका"। करना । किसी वस्तु से रगड़कर मैल एकाना । जैसे, मांगर गीत-संज्ञा पुं० सं० मांगल्य गीत ] वह शुभ गीत जो बरतन मांजना । (२) थपुवे के तवे पर पानी देकर उसे विवाह आदि मंगल के अवसरों पर गाए जाते हो। ठीक करने के लिए उसके किनारे झुकाना । (कुम्हार) (३) मांगलिक-वि० [सं० ] मंगल प्रकट करनेवाला । शुभ ।। सरेस को पानी में पकाकर उससे तानी के सूत रँगना । (४) संझा पुं० नाटक का वह पात्र जो मंगल-पाठ करता है। सरेस और शीशे की बुकनी आदि लगाकर पतंग की नख मांगल्य-वि० [सं० ] शुभ । मंगलकारक। या मोर को रद करना । माझा देना। संज्ञा पुं० मंगल का भाव । क्रि० अ० (1) अभ्यास करना। मश्क करना । जैसे, मांगल्यकाया-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१)दृव । (२) हलदी। (३) हाय माजना । (२) किसी गीत वा छंद को बार बार आवृत्ति ऋद्धि । (४) गोरोचन । (५)हरें। करके पका करना। मांगल्यकुसुमा-संज्ञा स्त्री० [सं०] शंखपुष्पी । मांजर*1-संज्ञा स्त्री० [हिं० पंजर या पॉजर ] हड्डियों की टठरी । म.गल्यप्रवरा-संशा स्त्री० [सं०] वच । जर । उ०-मुर शुर मौजर धन भई बिरह की लागी मांगल्या-संशा स्त्री० [सं०] (1) गोरोचन । (२) शमी का वृक्ष । आग। जायसी। (३) जीवंती। मांजा-संशा पुं० [देश॰] पहली वर्षा का फेन जो मछलियों के माँगी-संज्ञा स्त्री० [सं० मार्ग ? हिं. माँग ] धुनियों की धुनकी में लिए मादक होता है। उ.-(क) नयन सजल तन थर की यह एकड़ी जो उसकी उस रॉडी के ऊपर लगी रहती थर काँपी। माँजहि खाइमीन जनु मापी।-तुलसी। (ख) है जिस पर तांत चढ़ाते हैं। तलफत विषम मोह मन मापा। माँजा मनहुँ मीन कह मांच-संशा पुं० [ देश] (1) पाल में हवा लगने के लिए चलते | व्यापा।-तुलसी।