पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४२५

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मातबर २७१६ मातृगंधिनी रनि कहत बनै न ।-रहीम । (ग) साथ रह लगाये छाता वि० [सं० मत्त ] [स्त्री. माती ] मदमस्त । मतवाला। ताहि देखि नृप अमरप माता। रघुगज । उ.-(क) आठ गाँठ कोपीन के साधु न मानै शंक । नाम मातबर-वि० [अ० मोतबिर ] विश्वास करने योग्य । विश्वसनीय अमल माता रहै गिन इंद्र को रंक ।-कपीर । (ग्य) जोर जैसे, उन्हें रुपए दे दीजिए; ये मातबर आदमी हैं। जगी जमुना जलधार में धाम धंसी जल केलि की माती। मातबरी-संवा स्त्री० [अ०] मातबर होने का भाषा विश्वसु --पद्माकर । (ग) चली सोनारि योहाग मोहाती। औ नीयता। कलवारि प्रेम-मद माती।-जायसी। मातम-संभा पुं० [अ० ] (1) मृतक का शोक । वह रोना-पीटना : मातामह-संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० मातामही ] माता का पिता। आदि जो किसी के मरने पर होता है। उ०-जब बादशाह नाना। मर जाता है, तो सारे मुल्क के आदमी मौ दिन तक मातम : मातु*-संशा मी० [सं० मातृ ] माता। माँ । जनना। 30- रखते है और कोई काम खुशी का नहीं करते ।--शि I (क) कबहूँ करताल बजाय के नाचत मातु सबै मन मोद प्रसाद। । भरें।-सुलसी। (ख) तुलसी प्रभु मंजिह संभु धनु भूरि यौ-मातर पुर्सी। भाग सिय मातु पितो री । तुलसी। (२) किसी दुःखदायिनी घटना के कारण उत्पन्न शोक । मातुल--संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री. मातुला, मातुलानी ] (1) माता मातमपुर्सी-संज्ञा स्त्री० [ 10 ] जिसके यहाँ कोई मर गया हो, का भाई। मामा। उ०—कयौ मत मातुल विभाषण हूँ उसके यहाँ जाकर उस दारय देने का काम । मृतक के बार बार अंचल पसारि पिय पाय लै लै ही परी।-तुलसी। संबंधियों को सांत्वना देना। (२) धतूर। । उ.---(क) कमलपत्र मातूल चढ़ावै। नयन मातमी-वि० [फा० } मातम-संबंधी। शोक-सूचक । जैसे, ! म॒दि यह ध्यान लगावें। -सूर । (ख) द्वै मृणाल मातुल मातमी पोशाक, मातमी सूरत, मातमी रंग। उभे कदली खंभ दिन पात।-सूर । (३) एक प्रकार का मातमुख-वि० [हिं० ] मूर्ख । धान । (४) एक प्रकार का साँप । (५) मदन वृक्ष । मातरिपुरुष-संशा पुं० [सं० } वह जो केवल घर में अपना माता मातुला, मातुलानी-सं। बी० [सं.] (1) मामा की खी। आदि के सामने ही अपनी बीरता प्रकट करता हो; बाहर - मामी। (२) सन । (३) प्रियंगु । (४) भांग। या औरों के मामने कुछ भी न कर सकता हो। मातुलाहि-संज्ञा पुं० | सं.] एक प्रकार का माप । मातरिश्वा-संज्ञा पुं० [सं० मातरिश्चन् । (१) अंतरिक्ष में चलने-मातुली-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) मामा की खी । मामी। वाला, पवन । वायु । हवा । (२) एक प्रकार की अग्नि। (२) भांग। मातलि-संज्ञा पुं० [सं०] इंद्र के सारथी या रथ हाँकनेवाले कामातुलुंग-संज्ञा पुं० [सं०] बिजौरा नीबू । नाम । उ०-सुरपति निज रथ तुरत पडावा । हरष सहित | मातुलेय-संश पुं० [सं०] [स्त्री० मातुलेया ] मामा का लबका। मातलि लै आवा। -तुलसी। ममेरा भाई। यौ०-मातलिसूत=इंद्र।। मातृ-संज्ञा स्त्री० दे. "माता"। मातलिसूत-संज्ञा पुं० [सं० } इंद्र । उ०—कोशिक बारस्व वृत्रहा मातृक-वि० [सं० ] माता-संबंधी । सधवा मातलिसूत ।-नंददास । संशा पुं० माता का भाई। मामा । मातली-संज्ञा पुं० [सं० ] एक प्रकार के वैदिक देवता जो यम | मातृकच्छिद-संज्ञा पुं[सं०] परशुराम । और पितरों के साथ उत्पन्न माने गए हैं। मातृका-संशा स्त्री० [सं० ] (1) दूध पिलानेवाली दाई । धाय । मातहत-संज्ञा पुं० [अ०] किसी की अधीनता में काम करन (२) माता । जननी। (३) उपमाता । सौतेली माता । वाला । अधीनस्थ कर्मचारी। (५) तांत्रिकों की ये सात देवियाँ-ब्राह्मी, माहेश्वरी, मातहती-संज्ञा स्त्री० [अ० मातहत+ई (प्रत्य॰) ] मातहत या कौमारी, वैष्यावी, वाराही, इंद्राणी और चामुंडा । (५) अधीनता में होने का काम या भाव । वर्णमाला की बारहखड़ी। (६) ठोढ़ी पर की आठ विशिष्ट माता-संज्ञा स्त्री० [सं० मातृ ] (1) जन्म देनेवाली ची। जननी। नर्से। उ०—जो बालक कह तोतरि बाता। सुनहि मुदित मन पितु मातृकाकुंड-संज्ञा पुं० [सं०] वैद्यक के अनुसार गुदा का एक अरु माता -तुलसी । (२) कोई पूज्य वा आदरणीय - फोदा या ण जो बहुत छोटे बच्चों को होता है। बबी स्त्री । (३) गौ। (४) भूमि । (५) विभूति । (६) | मातृकेशट-संज्ञा पुं० [सं० ] मामा। लक्ष्मी । (७) रेवती । (4) इंद्रवारुणी । (१) जटामासी । मातृगंधिनी-संशा स्त्री० [सं०] (8) विमाता। सौतेली माता । (10) शीतला । चेचक । (२) पिता की उपपक्षी।