पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४२९

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माध्यस्थ २७२० होता है, वह चित्त के पदार्थतर में जाने से नष्ट हो जाता भ्रम से अपने में समझकर उसके कारण दमरों से अपने है। अत: एक शून्य ही तत्त्व है। इनके मत से सब आयको श्रेष्ठ समझना मान कहलाता है।) पदार्थ क्षणिक हैं और समस्त संसार स्वम के समान है। महा-मान मथना मान भंग करना । गर्व चूर्ण करना । शेखी जिन लोगों ने निर्वाण प्रात कर लिया है और जिन्होंने नहीं । तोड़ना । उ०-इन जरासंध मदर्भभ मम मान मथि बाँधि प्राप्त किया है, उन दोनों को ये लोग समान ही मानते हैं। बिनु काज बलइहाँ आने-सूर। (२) मध्य देश । (३) मध्य देश का निवासी। (४) प्रतिष्ठा । इजत । सम्मान । उ०-भोजन करत सुष्ट माध्यस्थ-सा पुं० [सं०] (१) वह जो दो मनुष्यों या पक्षों के घर उनके राज मान भंग टारत ।—सूर । बीच में परकर किमी वाद-विवाद आदि का निपटारा करे। मुहा०-मान रखना इज्जत रखना । प्रतिष्ठा करना । उ.- छ । विद्यबई। मध्यस्थ । (२) दलाल। (३) कुटना। कमररी धोरे दाम की आवै बहुत काम । खासा मलमल (५) व्याह करनेवाला ब्राह्मण । अरेबी। बाफता उन कर राखे मान ।-गिरधर | माध्यस्थ्य-संहा पुं० सं०] मध्यस्थ होने का भाव । मध्यस्थता। यौ०-मान-महत आदर-सत्कार । प्रतिष्ठा । माध्याकर्षण-संशा ५० | सं० पृथ्वी के मध्य भाग का वह (५) साहित्य के अनुसार मन में होनेवाला यह विकार जो आकर्षण जोमदा मन पदार्थों को अपनी ओर खींचता ! अपने प्रिय व्यक्ति को कोई दोष या अपराध करते देखकर रहता है और जिसके कारण सब पदार्थ गिरकर जमीन पर . होता है। मान बहुधा त्रियाँ ही करती है। अपने प्रेमी को आ पहने है। किसी दूसरी स्त्री की ओर देखते अथवा उससे बातचीत विशप-इंगलैंड के प्रसिद्ध ताववेत्ता न्यूटन ने वृक्ष ये एक । करने देवकर, कोई अभिलपित पदार्थ न मिलने पर अथवा पेख को जमीन पर गिरते हुए देवकर यह सिद्धांत स्थिर कोई कार्य इच्छानुसार न होने पर ही प्रायः मान किया किया था कि पृथ्वी के मध्य भाग में एक ऐपी आकर्षण जाता है। यह लघु, मध्यम और गुरु तीन प्रकार का कहा शक्ति है, जिसके द्वारा पय पदार्थ, यदि बीच में कोई चीज गया है। रूठना । 30-विधि विध कै निकरैटर नहीं परोह बाधक न हो तो, उपकी ओर खिंच आते हैं। पान । चित कितै लेधनौ इतो इतै तन मान ।-बिहारी। माध्याहिक-संगापु० [सं०] वह कार्य जो ठीक सध्याह्न के महा०-मान मनाना दुर्मर का मान दूर करना । रूठे हुए को समय किया जाता हो। ठक दोपहर के समय किया जाने ! मनाना। उ०-धरी चारि परम सुजान पिय प्यारी रीझि, वाला कार्या, विशेषतः धार्मिक कृत्य । मान न मनाओ मानिनी को मान देखि रह्यो।---रघुनाथ । माध्व-संज्ञा पुं० [सं० 1 (१) वैष्णवी के चार मुख्य संप्रदापों में मान मोरना-मान का त्याग करना । मान छोड़ देना । उ0- से एक जो मध्वाचार्य का चलाया हुआ है। इस मतवाले मुग्व को निहारो जो न मान्यो मां भली करी न केशोराप काला तिलक लगाते हैं और प्रतिवर्ष चक्रांकित होते रहते की सौ तोहि जो तू मान मोरिहै।-केशव । है। (२) महुए की शराब। (३) मधुर-कंटक नाम की (६) पुराणानुसार पुष्कर द्वीप के एक पर्वत का नाम । माली। (७) सामर्थ्य । शक्ति। (८) उत्तर दिशा के एक देश का माध्यक-संज्ञा पुं० [सं०] महुए की शराय ! नाम । (५) ग्रह । (१०) मंत्र । (११) संगीत-शास्त्र के माध्वी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) मदिस। शराब। (२) वह शराब ॐनुसार ताल में का निराम जो सम, विषम, अतीत और जो महुए में बनाई जाती है। (३) मधुरकटक नाम की अनागत चार प्रकार का होता है। मछली । (४) पुराणानुसार एक नदी का नाम । भानकंद-संज्ञा पुं० [सं० माणक ] (१) एक प्रकार का मीठा कंद माध्वीक-संज्ञा पुं० [सं० 1 (3) महुए की शराय । (२) मधु । जो बंगाल में बहुत अधिकता से होता है। यह प्रायः मकरंद । (३) दाग्य की शराब। (४) सेम। तरकारी के रूप में या दूसरे अनाजों के साथ खाया जात माध्वीका-संज्ञा स्त्री० [सं०] मेम । है। यह बहुत जल्दी पचता है। इसलिए दुर्घल रोगियों माध्वीमधुग-संज्ञा स्त्री० { सं०] मीठी खजूर। आदि के लिए बहुत लाभदायक होता है । कहीं कहीं अरारोट मान-संज्ञा पु० [सं०](1) किसी पदार्थ का भार, तौल या नाप या सागृताने की जगह भी इसका व्यवहार होता है। यह आदि । परिमाण । मिकदार। (२) वह साधन जिसके द्वारा मृदु, विरेचक, मूत्रकारक और बवासीर तथा कब्जियत के कोई चीज़ नापी या तौली जाय । पैमाना । जैसे, गज, लिए बहुत उपयोगी माना जाता है। (२) एक प्रकार की पेर आदि। (३) किसी विषय में यह समझना कि हमारे . मिस्त्री जो सालिब मिस्त्री के नाम से बाजारों में मिलती है। समान कोई नहीं है । अभिमान । अहंकार । गर्व । शेखी। मानक-संक्षा पुं० [सं०] मानकल्यू । मानद । (न्यायदर्शन के अनुसार जो गुण अपने में न हो, उसे मानकच्च-संज्ञा पुं० दे. "मानकंद"।