पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४७८

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मुकराना मुकुटी मुकराना-कि० स० [हिं० मुकरना का स० रूप ] (1) दूसरे को वि० (१) सामनेवासा । (२) समान । बरावर का। मुकरने में प्रवृत्त करना । (२) दूसरे को मुठा बनाना। (क०) संज्ञा पुं० (१) प्रतिबदी। (२) शत्रु । दुश्मन । मुकरी-संशा स्त्री० [हिं० मुकरना+ई (प्रत्य॰)] एक प्रकार की मुकाम-संज्ञा पुं० [अ०] (१) ठहरने का स्थान। टिकान । कविता जो प्रायः चार चरणों की होती है। इसके पहले पड़ाव । (२) ठहरने की क्रिया । कूच का उलटा । विराम । तीन वरण ऐसे होते हैं, जिनका आशय दो जगह घट मुहा०--मुकाम बोलना अधिकारी का अपने अधीनस्थ कर्म- सकता है। इनसे प्रत्यक्ष रूप से जिस पदार्थ का आशय चारियों या सैनिकों को ठहरने की आज्ञा देना । मुकाम देना- निकलता है, चौथे चरण में किसी और पदार्थ का नाम लेकर, किसी के मर जाने पर उसके घर मातमपुरसी करने जाना । उससे इनकार कर दिया जाता है। इस प्रकार मानों कही (३) रहने का स्थान । घर । (४) अवसर । मौका । (५) हुई यात से मुकरते हुए कुछ और ही अभिप्राय प्रकट किया सरोद का कोई परदा । (संगीत) जाता है। कह-मुकरी। 30--(क) वा बिन मोको चैन न मुकियल-संशा पुं० [देश॰] एक प्रकार का बांस जिसे मल-बॉस आवे । वह मेरी तिस आन जुझाव । है वह सब गुन यारह | या बिधुली भी कहते हैं। यानी । ऐ सखि साजन? ना सखि पानी । (ख) आप हिले मुकियाना-क्रि० स० [हिं० मुकी+श्याना (प्रत्य॰)] (1) किसी औ मोहिं हिलावे। वाका हिलना मोको भावे । हिल हिल के शरीर पर मुकियों से बार बार आधात करना जिसमें के वह हुआ निसंखा। ऐ सखि साजन? ना सखि रखा। उसके अंगों की शिथिलता दूर हो। (२) आटा गूंधने के (ग) रात समय मेरे घर आवे। भोर भए वह घर उठ जावे । उपरांत उसे नरम करने के लिए मुक्कियों से बार बार दबाना । यह अचरज है सब से न्यारा । ऐ सखि साजन? ना सखि (३) मुका लगाना या मारना । चूं से लगाना । तारा। (घ) सारि रैन वह मो सँग जागा। भोर भई तब मुकिर-वि० [अ०] (1) करार करनेवाला । प्रतिज्ञा करनेवाला । बिछुदन लागा। बाके बिछुड़त फाटे हिया। ऐ सखि (२) किसी दस्तावेज या अरजीदावे आदि का लिखनेवाला, साजन? ना सखि दिया। जिसके हस्ताक्षर से यह प्रस्तुत हो । (कच०) विशेष-अमीर खुसरो ने इस प्रकार की बहुत सी मुकरियाँ मुकुंटी-संज्ञा स्त्री० [सं०] प्राचीन काल का एक अस्त्र । कही हैं। इसके अंत में प्राय: 'सखि' शब्द आता है, अतः | मुकुंद-संज्ञा पुं० [सं०] (1) मुक्ति देनेवाले, विष्णु । (२) पुराणा- कुछ लोग इसे सखी या सखिया भी कहते हैं। नुसार एक प्रकार की निधि । (३) एक प्रकार का रख । मुकरर-कि० वि० [अ० ] दोबारा । फिरसे। दूसरी बार । (५) कुंदरू। (५) पारा । (३) सफेद कनेर । (७) गंभारी मुहा०-मुकर्रर किर्रर दूसरी और तीसरी बार फिर । कई वार । नामक वृक्ष । (८) पोई का साग । मुकर्रर-वि० [अ०] (9) जिसका इकरार किया गया हो। जो मुकुंदक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) प्याज । (२) पाली धान । ठहराया गया हो। तय किया-हुआ। निश्चित । जैसे,- मुकुंदु--संज्ञा पुं० [सं०] (१) कुंदरू। (२) सफेद कनेर । (३) इस काम का उनसे सौ रुपया मुकर्रर हुआ है। (२)जो पारा । (५) गंभारी । (५) पोई का साग। तैनात किया गया हो। नियुक्त । जैसे,--किसी आदमी को मुकु-संज्ञा पुं० [सं०] (1) मुक्ति। मोक्ष । (२) छुटकारा । इस काम पर मुकर्रर कर दो। रिहाई। कि० वि० अवश्य ही। निस्संदेह। मुकुट-संशा पुं॰ [सं०] (१) प्राचीन काल का एक प्रकार का मुकर्ररी-संज्ञा स्त्री० [अ०] (१) मुक्कर होने की क्रिया या प्रसिद्ध शिरोभूषण जो प्रायः राजा आदि धारण किया करते भाव । नियुक्ति । (२) नियत राजकर । मालगुजारी। थे। यह प्राय: बीच में ऊँचा और कैंगरेदार होता था और (३) नियत वेतन या वृत्ति सादि। सारे मस्तक के ऊपर एक कान के पास से दूसरे कान के मुफल-संशा पुं० [सं०] (१) आरग्वध । अमलतास । (२) पास सक होता था। यह सोने, चाँदी आदि बहुमूएप गुग्गुल । धातुओं का और कभी कभी रन-जटित भी होता था। यह मुक्ब्वी -वि० [अ० ] ताकत बढ़ानेवाला । बलवर्धक। पुष्टिकारक। माथे पर आगे की ओर रखकर पीछे से बाँध लिया जाता मुकाबला-संज्ञा पुं० [अ० ] (1) आमना-सामना । (२) मुठभेड़। था। इसमें कभी कभी किरीट भी खोसा जाता था। (३) बराबरी। समानता । (४) तुलना। (५) मिलान । पर्या०-मौलि। कोटीर । शेखर । अवतंस । उत्तंस । (१) विरोध । लड़ाई। (२) पुराणानुसार एक देश का नाम । मुहा०-मुकाबले पर आना=बिरोध या प्रतिइंद्विता करने अथवा संज्ञा स्त्री० एक मातृगण। लाने के लिए सामने आना । मुकुटी-संज्ञा पुं० [सं० मुकुटिन् ] वह जिसने मुकुट धारण मुकाबिल-क्रि० वि० [अ० ] सम्मुख । सामने । किया हो।