पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४७९

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मुकुटेकार्षापण मुक्तता मकुटेकार्षापण-संज्ञा पुं० [सं०] प्राचीनकाल का एक प्रकार का रूप में काटा हुआ तार जिसे बादला कहते हैं। (२) सुन- राजफर जो राजा का मुकुट बनवाने के लिए लिया जातामा। हले या रुपहले सारों का बना हुआ कपका। ताश । मकुटेश्वर-संज्ञा पुं० [सं०] (1) एक शिवलिंग का माम । (२) तमामी। ज़रबफ़त। एक प्राचीन तीर्थ का नाम। मुक्कैशी-वि० [अ० मुक्कैश+ (प्रत्य॰)] (1) बादले का बना मकुट्ट-संज्ञा पुं० [सं० ] एक प्राचीन जाति का नाम जिसका हुआ। (२) जरी या ताश का बना हुआ। । उल्लेख महाभारत में है। मुक्कैशी गांखरू-संज्ञा पुं० [हिं० सुक्कैशी+गोखरू ] एक प्रकार का मकुर-संशा पुं० [सं०] (1) मुख देखने का शीशा । आईना। | महीन गोखरू जो तारों को मोड़कर बनाया जाता है। दर्पण । (२) बकुल का वृक्ष । मौलसिरी । (३) कुम्हार का मुक्खी -संज्ञा पुं० [हिं० मुख+ई (प्रत्य०)] (1) गोले कबूतर वह शा जिससे वह चाक चलाता है। (४) मोतिया। से मिलता जुलता एक प्रकार का कबूतर जो प्रायः उन्हीं के (५) कली । (१) बेर का पेड़।। साथ मिलकर उगता है और अपनी गरदन जरा कपे रहता मुकुल-संज्ञा पुं० [सं०] (१) कली । (२) शरीर । (३) आत्मा। है। (२) वह कबूतर जिसका सारा शरीर तो काला, हरा (४) प्राचीन काल का एक प्रकार का राजकर्मचारी। (५) या लाल हो, पर जिसके सिर और डैनों पर एक या दो एक प्रकार का छंद । (६) जमालगोटा। (७) भूमि । पृथ्वी। सफेद पर हो। संज्ञा पुं० दे. "गुमाल"। मुक्त-वि० [सं०] (1) जिसे मोक्ष प्राप्त हो गया हो। जिसे मुकुलक-संज्ञा पुं० [सं०] ती वृक्ष । मुक्ति मिल गई हो। जैसे,--काशी में मरने से मनुष्य मुक्त मुकुलाप्र-संशा पुं० [सं०] प्राचीन काल का एक प्रकार का अस्त्र हो जाता है। (२) जो बंधन से छूट गया हो। जिसका __ जो कली की आकृति का होता था। छुटकारा हो गया हो । जैसे,—वह कारागार से मुक्त मुकुलिश-वि० [सं०] (1) जिसमें कलियाँ आई हों। (२) हो गया। कुछ खिली हुई। (कली) (३) आधा खुला, आधा बंद। संशश पुं० पुराणानुसार एक प्राचीन ऋषि का नाम । कुछ कुछ खुला । (४) झपकता हुआ। (नेत्र)। (३) जो पकड़ या दबाव से इस प्रकार अलग हुआ हो कि मकुली-संज्ञा पुं० [सं० मुकुलिन् ] वह जिसमें कलियाँ आई हों। पर जा पड़े। चलने के लिए छूटा हुआ। फेंका हुआ। मुकुष्ठ-संशा [सं०] मोठ।। क्षिप्त । जैररे, याण का मुक्त होना। मुकुष्ठक-संज्ञा पुं॰ [सं०] मोठ। मुक्तकंचुक-संज्ञा पुं० [सं०] वह साँप जिसने अभी हाल में मुक्का-संज्ञा पुं॰ [सं० मुष्टिका ] [ स्त्री. अल्पा० मुक्की ] हाथ का वह ! केंचुली छोड़ी हो। रूप जो उँगलियों और अंगूठे को बंद कर लेने पर होता है | मुक्तकंठ-वि० [सं०] (1) जो ज़ोर से बोलता हो। चिल्लाकर और जिसस प्राय: आधात किया जाता है। बंधी मुट्ठी जो बोलनेवाला । (२) जो बोलने में बेधड़क हो । जिससे कहने मारने के लिए उठाई जाय। में आगा-पीछा न हो। जैसे, मुक्तकंठ होकर कोई बात महा--मुका अलाना या मारना=मुक्के से आघात करना। स्वीकार करना। मुका सा लगना हार्दिक कष्ट पहुँचना । मुक्तक-संज्ञा पुं० [सं०] (१) प्राचीन काल का एक प्रकार का यौ०-मुक्केबाजी। अस जो फेंककर मारा जाता था। (२) एक प्रकार का मकी-संज्ञा पुं० [हिं० मुक्का+ई (प्रत्य॰)] (1) मुक्का। चूंसा । काव्य जो एक ही पथ में पूरा होता है। वह कविता जिसमें (२) वह लड़ाई जिसमें मुक्कों की मार हो। (३) आटा कोई एक कथा या प्रसंग कुछ दूर तक न चले। फुटकर गुं धने के उपरांत उसे मुट्टियों से बार बार दबाना जिससे कविता । 'प्रबंध' का उलटा जिसे 'उद्गट' भी कहते हैं। आटा नरम हो जाता है। मुक्तकच्छ-संज्ञा पुं॰ [सं० ] एक बौद्ध का नाम । क्रि० प्र०-देना।—लगाना । मुक्तकेशी-संशा खी० [सं०] काली देवी का एक नाम । (४) मुट्ठियाँ पाँधकर उससे फिसी के शरीर पर धीरे धीरे । | मुक्तचंदन-संशा पुं० [सं०] लाल चंदन । आपात करना, जिससे पारीर की शिथिलता और पीड़ा दूर मुक्तचंदा-संज्ञा स्त्री० [सं०] चिंचा नामक साग । चंचु । होती है। (यह हाथ-पैर आदि दबाने की एक किया है।) मुक्तचक्ष-संशा पुं० [सं० मुक्तचक्षुस् ] सिंह । शेर । क्रि० प्र०-मारना। -लपाना। मुक्तचेता-संज्ञा पुं० [सं० मुक्तचेतस् ] वह जिसमें मोक्ष प्रास करने मुक्केबाजी-संगा स्त्री० [हिं० मुका+बाजी (प्रत्य॰) ) मुकों की की बुद्धि भागई हो। ललाई । — सेवाजी । समसा। मुक्तता-संशा स्त्री० [सं०] (1) मुक्त होने का भाव । मुक्ति। मुक्कैश-संज्ञा पुं० [10] (0)चांदी या सोने का एक विशिष्ट मोक्ष । (२) पुटकारा।