पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४८०

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मुक्तनिम्मेोक मुखचीरी मुक्तनिम्मीक-संज्ञा पुं० [सं०] वह साँप जिसने अभी हाल में । मुक्ताफल-संज्ञा पुं० [सं०] (1) मोती । (२) कपूर । (३) हरफा- सुली छोड़ी हो। रेवरी । लवनीफल । (१) एक प्रकार का छोटा लिसोदा। मुक्तपत्राव्य-संज्ञा पुं० [सं०] सालीश। मुक्ताभा-संज्ञा स्त्री० [सं०] त्रिपुर-मल्लिका । त्रिपुरमाली । मुक्तपुरुष-संशा पुं० [सं०] वह जिसकी आस्मा मुक्त हो। वह मुक्तामाता-संज्ञा स्त्री० [सं०] सीप । शुकि। जिसका मोक्ष हो गया हो। मुक्तामोदक-संशा पुं० [सं०] मोतीचूर का लड्डू । मुक्तबंधना-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) एक प्रकार का मोतिया। मुक्तालता-संज्ञा स्त्री० [सं०] मोतियों का कंठा। (२) बेला। मुक्तावास-संज्ञा पुं० [सं० ] सीप । शुक्ति। मुक्तबुद्धि-संज्ञा पुं॰ [सं०] वह जिसमें मुक्ति प्रास करने के योग्य मुक्तास्फोर-संज्ञा पुं॰ [सं०] सीप । शुक्ति। बुद्धि आ गई हो। मुक्तयेता। मुक्तिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक उपनिषद् का नाम जिसमें मुक्ति मुक्तमाता-संशा स्त्री० [सं०] मीप । शुक्ति। के संबंध में मीमांसा की गई है। मुक्तरसा-संज्ञा स्त्री० [सं०] रासना । मुक्तिक्षेत्र-संशा पुं० [सं० ] (1) वाराणसी। काशी । (२) कावेरी मुक्तलज-वि० [सं०] (१) जिसने लजा का परित्याग कर दिया नदी के पास का एक प्राचीन तीर्थ जिसका दूसरा नाम हो। (२) निर्लज । बेहया । बकुलारण्य भी था। मुक्तवर्धा-संज्ञा स्त्री० [सं० ] अदितमंजरी । रुद्रा। मुक्तितीर्थ-संज्ञा पुं॰ [सं० ] मुक्ति देनेवाले, विष्णु । मुक्तवर्षीय-संज्ञा पुं० [सं०] कुप्पा । मुक्तिप्रद-संज्ञा पुं॰ [सं.] हरा मूंग। मुक्तवसन-संज्ञा पुं० [सं०] (१) वह जिसके शरीर पर कोई मुक्तिमती-संशा स्त्री० [सं०] महाभारत के अनुसार एक नदी वन न हो। (२) वह जिसने बस पहनना छोड़ दिया हो। का नाम । नंगा रहनेवाला। (३) जैन यतियों या संन्यासियों का | मुक्तिमुक्त-संज्ञा पुं० [सं०] शिलारस । सिल्हक। एक भेद । मुक्तिसाधन-संज्ञा पुं० [सं० ] मुक्ति पास करने की कामना से मुक्तवास-संज्ञा पुं० [सं०] सीप । शुक्ति। ईश्वर और आत्मा के स्वरूप का चिंतन करना । मुक्तवेणी-संशा स्त्री० [सं०] (1) द्रौपदी का एक नाम 1 (२) | मुक्तेश्वर-संज्ञा पुं० [सं० ] एक शिवलिंग का नाम । प्रयाग का त्रिवेणी संगम । मुखंडा-संज्ञा पुं० [हिं० मुख+अंडा (प्रत्य॰)] झारी आदि मुक्तव्यापार-संशा पुं० [सं०] वह जिसका संसार के कार्यों या टोटीदार बरतनों में किया हुआ वह छेद जिसमें टोंटी जड़ी व्यापारों से कोई संबंध न रह गया हो । संसार-त्यागी। जाती है। मुक्तभंग-संशा पुं० [सं० } रोहू मछली । मुख-संशा पुं० [सं० ] (1) मुँह । आनन । (२) पर का द्वार । मुक्तसंग-संज्ञा पुं० [सं०] (1) वह जो विषय-वासना से रहित दरवाजा । (३) नाटक में एक प्रकार की संधि । (७) नाटक हो गया हो। (२) परिव्राजक । का पहला शब्द । (५) किसी पदार्थ का अगला या ऊपरी मुक्तसार-संशा पुं० [सं०] केले का पेड़। खुला भाग । (६) शब्द । (७) नाटक (6) वेद । (९) मुक्तहस्त-वि० [सं०] [ संशा मुक्तहस्तता ] जो खुले हाथों दान | पक्षी की चोंच । (10) जीरा । (1) आदि। आरंभ । करता हो । बहुत बड़ा दानी । (१२)वबहर । (१३) मुरगामी । (४) किसी वस्तु से पहले मुक्ता-संशा स्त्री० [सं०] (१) मोती । (२) रासना । परनेवाली वस्तु । आगे या पहले भानेवाली वस्तु । जैसे, मुक्ताकेशी-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का बहुत बढ़िया | रजनीमुख संध्या काल। बैंगन। वि. प्रधान । मुख्य । मुक्तागार-संज्ञा पुं० [सं०] सीप । शुक्ति। मुखक्षुर-संज्ञा पुं० [सं०] दाँत । मुक्तागृह-संज्ञा पुं० [सं०] सीप । शुक्ति। मुखगंधक-संज्ञा पुं० [सं०] प्याज । मुक्तापात-संज्ञा पुं० [सं० मुक्ता+हिं० पात-पत्ता ] एक प्रकार की मुखचपल-संज्ञा पुं० [सं०] (1) पाः जो बहुत अधिक या बढ़ मादी जिसके बठलों से सीतलपाटी नामक चटाई बनाई जाती बढ़कर बोलता हो। (२) वह जो कटु वचन कहता हो। है। यह शादी पूर्ण बंगाल, आसाम और बरमा की मीची | मुखचपलता-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) बहुत अधिक या बढ़ तर भूमि में अधिकता से होती है और प्रायः इसकी पनीरी बढ़कर बोलना । (२) कटु भाषण । लगाई जाती है। मुखचपला-संज्ञा श्री० [सं०] भाया द का एक भेद । मुकापुष्प-संछा पुं० [सं०] कुंव का पौधा या फूल। मुखचपेटिका-संशा स्त्री० [सं०] कान के अंदर का एक भवयव । मुक्ताप्रसू-संशा पुं० [सं० ] सीप । शुक्ति। मुखचीरी-संशा सी० [सं०] (1) जीभ । जिहा। (२) फाज ।