पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मुहताज २७९२ मुहाला - मुहताज-वि० [अ० ] (1) जिप किसी ऐसे पदार्थ की बहुत मुहा०-मुहरा लेना-मुकाबिला करना । सामने होकर लड़ना । अधिक आवश्यकता हो जो उसके पास बिलकुल न हो। (२) निशाना । (३) मुँह की आकृति । जैसे, दाने दाने को मुहताज । (२) दरिद्र । गरीष । कंगाल। यौ०-देहरा मोहरा। निर्धन । (३) निर्भर । आश्रित । (४) चाहनेवाला । भाका (४) शतरंज की कोई गोटी। उ०-घोड़ा दै फरजी बद- क्षी । जैसे,-हम तुम्हारे रुपए के मुहताज नहीं। लावा । जेहि मुहरा रुख चहै सो पात्रा ।—जायसी । (५) मुहबनी-शा स्त्री॰ [ देश. ] एक प्रकार का फल जो नारंगी की। पत्री घोटने का शीशा । (६) घोड़े का एक साज जो उसके तरह का होता है। मुँह पर पहनाया जाता है। उ०-अनुपम सुघधि मुहरो मुहब्बत--मंशा स्वी० [अ० (१) प्रीति । प्रेम । प्यार । चाह ।। लगाम ललाम दुमची जीन की।-रघुराज । मुहा०-मुहब्बत उछलना-प्रेम का आश होना। महरी-संशा स्त्री. (१) दे. "मोरी"। (२) दे. "मोहरी" । (२) दोस्ती । मित्रता । (३) इश्क । लगन । लौ।। महर्रम-संचा पु० [अ० ] अरथी वर्ष का पहला महीना । इसी क्रि० प्र० करना।-रखना । महीने में इमाम हुसेन शहीद हुए थे। मुसलमानों में यह मुहम्मद--संज्ञा पुं० [अ० ] अरव के एक प्रसिद्ध धर्माचार्य महीना शोक का माना जाता है। जिन्होंने इस्लाम या मुसलमानी धर्म का प्रवर्तन किया महा०—मुहरमी सूरत रोनी सूरत । मनहूस सरत । मुह- था। इनका जन्म मक्के में सन् ५७० ई. के लगभग और रंम की पैदाइश होना-मनहूस होना। सदा दुःसी और मृत्यु मदीने में सन् ६३२ ई० में हुई थी। इनके पिता का चितित रहना। नाम अब्दुल्ला और माता का अमीना था। इन्होंने अपने | मुहर्रमी-वि० [अ० मुहर्रम+ई (प्रत्य॰)] (1) मुहर्रम संबंधी। जीवन के आरंभिक काल में ही यहदियों और ईसाइयों की मुहर्रम का । (२) शोक-व्यंजफ । (३) मनहस । रहुत सी धार्मिक बातों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। यौ०-मुहर्रमी सूरत=रोनी मूरत । मनहूस सूरत । उसी समय से ये स्वतंत्र रूप से अपना पक धर्म चलाने महर्रिर-संज्ञा पुं० [अ०] लेखक । मुंशी । उ.---पाँच महरिर फी चिंता में थे और उत्पी उद्देश्य से लोगों को कुछ उपदेश साम करि दीने तिनकी बढ़ी विपरीत । जिग्मे उनके, मांगे भी देने लगे थे। प्रायः ४० वर्ष की अवस्था में इन्होंने यहां मोते यह तो बड़ी अनीत।—सूर । प्रसिद्ध किया था कि ईश्वर ने मुझे इस संसार में अपना महरिरी-संज्ञा स्त्री० [अ० ] महर्रिर का काम । लिम्बने का काम। पैगंबर (वृत) बनाकर धर्म-प्रचार करने के लिए भेजा। मुहलत-संज्ञा स्त्री० दे. "मोहलत"। है। इसके उपरांत इहोंने कुरान की रचना की और उसके मुहलेठी-संशा स्त्री० दे० "मुलेठी"। संबंध में यह प्रसिद्ध किया कि इसकी सब बातें खुदा अपने महल्ला-संशा पुं० दे. "महल्ला"। फरिश्ते जियाईल के द्वारा समय समय पर मुझसे कहलाता महसिन-वि० [अ० ] एहसान करनेवाला । अनुग्रह करनेवाला । रहा है। धीरे धीरे कुछ लोग इनके अनुयायी हो गए । पर | मुहसिल-वि० [अ० महासिल ] तहसील वसूल करनेवाला । बहुत से लोग इनके विरोधी भी थे, जिनसे समय समय उगाहनेवाला। पर इन्हें युद्ध करना पड़ता था। यह भी प्रसिद्ध है कि ये संज्ञा पुं० प्यादा । फेरीदार । उ०-न दियो, मन उन एक बार सदेह स्वर्ग गये थे और वहाँ ईश्वर से मिले लियो, मुहसिल मैन पठाय।-रसनिधि । थे । अरषधालों ने कई बार इनके प्राण लेने की चेष्टा की | महानिज़-वि० [अ० ] हिफाजत करनेवाला । संरक्षक : थी; पर ये किसी न किसी प्रकार बराबर बचते ही गए। | रखवाला। घे मूर्ति-पूना के कहर विरोधी और एकेश्वरवाद के प्रचा-महानिजखाना- संज्ञा पुं० [अ०+का ] कचहरी में वह स्थान एक थे। अपने आपको ये पैगंबर या ईश्वरीय दूत बतलाते उहाँ सब प्रकार की मिसलें आदि रहती हैं। थे। इन्होंने कई विवाह भी किए थे । ये जैसे उदार और | महाफिज़ दफ्तर-संशा पुं० [अ० ] कचहरी का वह अधिकारी कृपालु थे, वैसे ही कट्टर और निर्दय भी थे। जिसके निरीक्षण में मुहाफिजखाना रहता है। मुहम्मदी-संशा ५० [अ०] मुहम्मद साहब का अनुयायी । मुहाल-वि० [अ० ] (1) असंभव । ना-मुमकिन । (२) कठिन । मुसलमान । दुष्कर । दुःसाध्य । मुहय्या-वि० दे. "मुहैया"। संशा पुं० (१) दे. "महाल"। (२) दे. "महल्ला" । मुहर-संज्ञा स्त्री० दे० "मोहर"। मुहाला-संज्ञा पुं० [हिं० मुँह+आला (प्रत्य॰)] पीतल का यह मुहरा-संज्ञा पुं० [हिं० मुंह+रा (प्रत्य॰)] (1) सामने का भाग। बंद या यूदी जो हाथी के दांत में शोभा के लिए चदाई आगा। मिरा । सामना । जाती है। उ०-बारन बदन सदर विराजहि हाटक बंधे