पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५१९

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मेचकता २८१० मेढक पियामाल । (4) काला नमक । (१) बिच्छू की एक छोटी (३) ऊँची लहर या तरंग । (लश.) जाति । क्रि० प्र०-पवना। वि० श्यामल । काला । स्याह । मेड़बंदी-संज्ञा स्त्री० [हिं० मेर+का बंद, या है. बंधना ] (1) मेचकना-संज्ञा स्त्री० [सं० ] कालापन । श्यामता । मिट्टी डालकर बनाया हुआ घेरा। (२) इस प्रकार धेरा मेचकताई*-संज्ञा स्त्री० दे. "मेचकता"। बनाने की क्रिया । हदबंदी। मज-संशा स्त्री० । देश० ] एक प्रकार की पहाडी घास जो हिमालय मेडक-संशा पु० दे० "मेढक"। पर ५००० फुट की ऊँचाई तक पाई जाती है और जिसे घोड़े मेडरा-संज्ञा पुं० [सं० मंडल, हिं . मंडरावा . अल्पा, मंटरा और चौपाए बड़े चाव से खाते हैं। (१) किसी गोल वस्तु का उभरा हुआ किनारा । (२) किमी मंज़-मंज्ञा स्त्री० [फा०] लंबी चौड़ी चौकी जो बैठे हुए आदमी के वस्तु का मंडलाकार ढाँचा । जैसे, छलनी या खजरी सामने उस पर रखकर खाना खाने, लिम्बने पढ़ने या और। का मेहरा। कोई काम करने के लिए रखी जाती है । टेबुल। मेडराना-क्रि० अ० दे० "मैंडराना"। मंज़पांश-संज्ञा पुं० | फा० चौकी या मेज़ पर बिछाने का कपड़ा। | मेहरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० मेड़रा ] (1) किसी गोल या मंडला- मेज़बान-मशा पु . [ फा . ] भोजन कराने या आतिथ्य करने कार वस्तु का उभरा हुआ किनारा । (२) गंडलाकार वाला । मेहमानदार । 'मेहमान' का उलटा । वस्तु का ढाँचा । (३) चक्की के चारों ओर का वह स्थान मंजर-मंज्ञा पु. [ 0] फौज का एक अफसर । जहाँ आटा पियकर गिरता है। मजा-मशा पु० [ स० मडका, हिं . मेढक पूरबी हिं० मेझुका ] मेढक । मेडल-संज्ञा पुं० [अ० ] चाँदी, सोने आदि की वह विशेष प्रकार मंइक । उ०—केवट हंगे सो सुनत गवजा । समुद न जानु की मुद्रा जो कोई अच्छा या बड़ा काम करने अथवा विशेष कुवाँ कर मेजा।-जायमी। निपुणता दिखाने पर किसी को दी जाय और जिस पर मेट-संज्ञा ५० [ अं०] मजदूरों का अफसर या सरदार । टंडेल ।। देनेवाले का नाम बुदा हो; लथा जिस बात के लिए वह जमादार । दी गई हो, उसका भी उल्लेख हो । तमगा । पदक । मटक -संशा पु० [हिं० मेटना (में क सं० प्रत्य० ] नाशक। मेडिया-संज्ञा स्त्री० [ स. मंडप, हिं० मई | महः । मंडप । छोटा मिटानेवाला । उ०---देव जू को न हिये हुलसी तुलसी बन | घर । उ०-कहा चुनाव मेडिया चूना माटी लाय । मीच में कुलम्पीउ को मेटक ।—देव । चुनेगी पापिनी दौरि के लैगी खाय ।कबीर । मंटनहार, मेटनहारा-मा पु० [हिं० मटना+हार (प्रत्य॰)] मेढक-मंशा पुं० [सं० मंद्रक एक जन्मस्थल-चारी तु जो तीन मिटानेवाला । दूर करनेवाला । हटानेवाला । उ०—विधि । चार अंगुल से लेकर एक बालिश्त तक लंबा होता है। यह कर लिम्वा का मेटनहारा ।-तुलसी। पानी में तैरता है और ज़मीन पर कृद कूदकर चलता है। मेटना-दि. १० [म. मृष्ट साफ किया हुआ, प्रा० मिट्ट+ना इसके चार पैर होते हैं जिनमें जालीदार पंजे होते हैं। यह (अत्य.] (1) घिस कर साफ करना । मिटाना । (२) केफड़ों से साँस लेता है, मछलियों की तरह गलफड़ों दूर करना । न रहने देना। (३) नष्ट करना । वि० दे० मे नहीं। "मिटाना"। पO०-मडूक । ददुर।। मंदिया।-मशास्त्री० [सं० मत्वांग्य, हि. भटका ] घड़े से छोटा विशेष-विकास क्रम में यह जलचारी और स्थलचारी जंतुओं मिट्टी का बरतन जिसमें दूध, दही आदि रखते हैं। मटकी। के बीच का माना जाता है। मछलियों मे ही क्रमश: विकास मटी-संज्ञा स्त्री० दे० 'मेटिया"। परंपरानुसार जलस्थलाचारी जंतुओं की उत्पत्ति हुई है, जिनमें मटकी-मशा मी० दे० "मटकी"। सब से अधिक ध्यान देने योग्य मेढक है । रीढ़वाले जंतुओं में मंटुवा -वि. | हि • मटना] किए हुए उपकार को न मानने जो उन्नत कोटि के हैं, वे फेफड़ों में सांस लेते हैं। पर जिनका वाला । कृतन । ढाँचा सादा है और जिन्हें जल ही में रहना पड़ता है, वे मेट--मशा पु० [ मं0 ] हार्थ वान । फीलवान । गलफड़ों में साँप लेते हैं। मछली के ढाँचे में उन्नति करके मेड़-संज्ञा पुं० [सं० भित्त] (1) मिट्टी डालकर बनाया हुआ मेढक का ढाँचा बना है, इसका आभाग मेढक की वृद्धि को वेत या उमीन का घेरा। छोटा बाँध । (२) दो खेतों के देखने से मिल सकता है। अंडे के फूटने पर मेढक का डिभ- बीच में हद या सीमा के रूप में बना हुआ रास्ता । कीट मछली के रूप में आता है, जल ही में रहता है, क्रि० प्र०-डालना।-बाँधना। गलफड़ों से सांस लेता है और घाय-पात खाता है। उसे यौ०-मेडबंदी। लंबी पूंछ होती है, पैर नहीं होते। कहीं कहीं उसे "छुछ-