पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५२९

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माक्षक २८२० मोज़ा मोक्षक-संशा धुं० [सं०] (1) मोखा नामक वृक्ष । (२) मोक्ष आघात आदि के कारण जोब पर की नस का अपने स्थान करने या देनेवाला । वह जो मोक्ष करता हो। से हट जाना । ( इसमें वह स्थान सूज आता है और उसमें मोक्षण-संक्षा पुं० [सं०] [वि. मोक्षणाय, माक्षित, मोक्ष्य ] मोक्ष यहुत पीड़ा होती है। जैसे,—उनके पाँव में मोच आ गई है। देने की क्रिया। मांचक-संशा पुं० [सं०] (9) छुड़ानेवाला । (२) सेमल का पेड़। मोक्षद-संशा पुं० [सं०] मोक्ष देनेवाला । मोक्षदाता । (३) केला । (४) विषय-वासना से मुक्क, संन्यासी । मोक्षदा-संज्ञा स्त्री० [सं० ] अगहन सुदी एकादशी तिथि। मांचन-सं. पुं० [सं०] (1) बंधन आदि से टुहाना । छुटकारा मोक्षद्वा-संशा 01 सं०] (1) सूर्या । (२) काशी तीर्थ । देना । मुक्त करना । (२) रिहा करना । (२) बंधन आदि माक्षपति-संशा पु० [सं० ] ताल के मुख्य साठ भेदों में से एक भेद । खोलना । छुमाना । (३) दूर करना । हटाना । जैसे, संकट- इसमें १६ गुरु, ३२ लघु और ६४ द्रुत मात्राएँ होती हैं। मोचन, पाप-मोचन । (४) रहित करना । ले लेना । जैगे. माक्षविद्या-संशा स्त्री० [सं०] वेदांत शास्त्र । वस्त्र-मोचन । मा खia | 01 जैन मतानसार वह लोक जहाँ मांचना-कि० सं [सं० मीचन ] (9) छोड़ना । (२) गिराना । जैन धर्मावलंबी साधुपुरुष मोक्ष का सुख भोगते हैं। स्वर्ग। बहाना । उ०--(क) मोच मति कर मति मोच आंसू बिभी- मोक्षा-संज्ञा स्त्री० दे० "मोक्षदा"। पण, कहै रघुनाथ मतिमेप भेपिका को। रधुनाथ । (ग्व) मोक्ष्य-वि० [सं०] जो मोक्ष के योग्य हो। मोक्ष का अधिकारी। सरसीरुह लोचन मोचत नीर चित रघुनायक सीय पैहै।- मोखा-संज्ञा पुं० दे० "मोक्ष" | उ.--(क) मोह दीजै मोख : सुलसी 1-(३) छुढ़ाना । मुक्त करना । उ०-अब तिनके ज्यों अनेक अधमान दियो। बिहारी । (ख) रानीधर्म सार बंधन मोचहिंगे।—सूर । पुनि साजा। बंदि मोख जेहि पाहि राजा ।—जायसी।। संभा पुं० [सं० मोचन 1 (1) लोहारों का वह औजार जिससे मोखा-संक्षा पुं० [सं० मुख ] दीवार आदि में बना हुआ छेद वे लोहे के छोटे छोटे टुकड़े उठाते हैं। (२) हज्जामों का वह जिसके द्वारा धूआं निकलता है और प्रकाश तथा वायु आती औजार जिपणे वे बाल उखाड़ते हैं। है। छोटी खिड़की । झरोखा । उ.---(क) मोखा और मोचरम-मना पुं० [सं०] पेमल वृक्ष का गोंद । समर का गोंद । झरोखा लखि लखि हग दोउ बरसत ।...ठयास । (ख) मांचा-संक्षा पुं० [सं० माचाट ] केला । जाली, झरोखों, मोखों से धूप की सुगंध आय रही है।- । मोनाट-संज्ञा पु० [सं० ] (1) केला । (२) केले को पेदी के बीच लल्लूलाल । का कोमल भाग । केले का गाम । मोगग-संज्ञा पुं० [सं० मद्गर ] (१) एक प्रकार का बहुत बढ़िया मांचिनी-संशा री० [सं०] पोई का पौधा । और बड़ा बेला ( पुष्प)। 30--मंजुल मौलसिरी मोगरा, मोची-संा ५० [सं० मोवन (चमड़ा) छुड़ाना ] चमड़े का काम मधुमालती के गजरा गुहि राखें । (२) दे. "मोंगरा"। बनानेवाला। वह जो जूते आदि बनाने का व्यवसाय मांगल-संज्ञा पुं० दे० "मुगल"। करता हो। मोगली-सशास्त्री० [देश॰] एक जंगली वृक्ष जो गुजरात में वि० [सं० मोचिन ] [ भी मौचिना । (१) छुड़ानेवाला। अधिकता से पाया जाता है। इससे एक प्रकार का करथा : (२) दूर करनेवाला। बनाया जाता है और इसकी छाल चमदा सिझाने के काम मोच्छ-संशा पु. दे. "मोक्ष"। में आती है। मोछ-संज्ञा स्त्री० दे० "मुंछ"। मोघ-वि० [सं०] निष्फल । व्यर्थ । चूकनेवाला । उ०-पै यह . *संशा पुं० दे० "मोश"। वैष्णव धनु को सायक । कबहुँ न मोध होन के लायक ।- मांजरा-संज्ञा पुं० दे० "मुजरा"। रघुराज। 'मोज़ा-संशा पुं० [ 10 ] (1) पैरों में पहनने का एक प्रकार का माधिया-संज्ञा स्त्री० [देश॰ ) वह मोटी मजबूत और अधिक चौड़ी बुना हुआ कपड़ा जिससे पैर के तलवे से लेकर पिछली या नरिया जो खपरैली छाजन में बँडेरे पर मैंगरा बाँधने में घुटने तक ढक जाते हैं। पायताबा । जुर्राब । (२) पैर में काम आती है। पिंडली के नीचे का वह भाग जो गिट्ट के आसपास और माध्य-संज्ञा पुं० [सं०] विफलता । अकृतकार्थता । नाफामयामी । उससे कुछ ऊपर होता है। (३) कुश्ती का एक पंच । इसमें मोत्र-संक्षा १० [सं०] (1) सेमल का पेड़ । (२) केला । (३) . जब खिलाड़ी अपने विपक्षी की पीठ पर होता है, तब एक पांदर का पेड़। हाथ उसके पेट के नीचे से ले जाकर उसकी बगल में संज्ञा स्त्री० [सं०] शरीर के किसी अंग के जोड़ की नस जमाता है और दूसरे हाथ से उसका मोजा या पिबली का अपने स्थान से इधर उधर खिसक जाना । चोट या ! के नीचे का भाग पकड़कर उसे उलट देता है।