पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५३३

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मोतीज्वर २८२४ मोदी (२) एक प्रकार का धान जिम्पकी फसल अगहन में तैयार घरनोदक । भृग्ब लगे न भव मन मोदक । छंद प्रभाकर । होती है । (३) कुश्ती का एक पैच जिसमें प्रतिद्वंद्वी के वाग (ब) काह कहूँ शर आयर मारिय । आरत शब्द अकाश पैर को अपने दाहिने पैर में फैगाकर और हाथ से उसका पुकारिय। रावण के वह कान पयो जव । छोपि स्वयंबर गला लपेटकर उसे चित्त कर देते हैं। जात भयो नय।-केशव । (५) एक वर्णसंकर जाति जिसकी मोतीज्वर-संज्ञा ५० | हि मे।ता+सं० ज्वर ] मेचक निकलने के उत्पत्ति क्षत्रिय पिता और शूदा माता मे मानी जाती है। पहले आनेवाला ज्वर । वि० मोद या आनंद देनेवाला। मोतीझिरा-संज्ञा पु. [ हिं. मोनी+झिग ? ] छोटी शीतला का मोदकर-संक्षा पुं० [सं० ] एक प्राचीन मुनि का नाम । रोग । मोतिया माता निकलने का रोग। मंथर बर। मोदकी-संज्ञा स्त्री॰ [सं० ] (१) एक प्रकार की गदा । उ०- मोतीमगती। शिखरी त्यौं मोदकी गदा युग दीपति भरी सदाई।-रघु- मोतीवल-संशः श्री० [हिं० मोतिया+बल ] बेले का वह भेद राज । (ख) श्री लव वीर उदंड पुनि गदा मोदकी मारि। जिसे मांतिया कहते है। मोनिया बेला । उ०—मोतीबेल. वीर विभीषण असुर कहूँ दियो भूमि पै डारि । (२) कैप फुल मानिन के भूषन सुधीर गुलचाँदनी सी चंपक की मृर्वा । अरी पी।-- देव । मोदन-संज्ञा पुं० [सं०] [वि. गोदनाय, मोदित । (8) मुदित मातीभात-संज्ञा पुं० [. माती+भात ] एक विशेष प्रकार का करना । प्रसन्न करना । (५) सुगंधि फैलाना । महकाना। भात । उ-परम्यो ओदन विविध प्रकारा । मोतीभात : मोदना-कि० अ० [सं. मोदन | (१) प्रसन्न होना। खुश सुनाम उचारा । केपरिभात नाम पविभातू । कनकभात ' होना । आनंदित होना । (२) सुगंधि फैलना । महकना। पुनि विमल विभान । -रघुराज । उ.-फूलि फूलि तरु फूल बढ़ावत । मोदत महा मोद उप- मांतीमिरी-मंशा सी० [हिं० माता+सं० श्रा| मोतियों की कठी।। जावत ।-केशव । मोनियों की माला । उ० -तोरि मोतीमिरी गुप्त करि धन्यौ कि० म० प्रवन्न करना । खुश करना । 30-तुलसी सरिस कहुँ एहि मिस मचि रही मुग्व न बोल।--सूर । अजान मान रिस पूरी हियरा । तऊ गोद लेड पॉछि चूमि मांगा-वि० [हि मर| जिम्मकी धार नेज़ न हो। कुंठित ।' मुग्व मोदत जियरा ।-सुधाकर । गोटिल । कुंद । उ०-भयो अथहुँ नहि मोथरो मोर उर्दड मोदचंती-संज्ञा स्त्री० [सं० मादबता] वन-मलिका । जंगली चमेली। कुठार । उपज्यो अमरप दून अब करौं सकुल संहार !- मोदा-संज्ञा स्त्री० [सं० ] (9) अजमोदा। बन-अजवाइन । (२) रघुराज। मल का वृक्ष । मोथा-गंशा ५० [सं० मुग्नक, प्रा० मुत्थ ] (१) नागरमोथा नामक मोदाक-संशा पुं० [स० ] पुराणानुसार एक वृक्ष का नाम । घाय । (२) उपर्युक्त घास की जद जो ओषधि की भाँति | मोदाकी-संज्ञा पुं० [सं० मादाकिन् । महाभारत के अनुसार एक प्रयुक्त होती है। ! पर्वत का नाम । विशंप-यह तृण जलाशयों में होता है। इसकी पत्तियों कुश: मोदाख्य-संज्ञा पुं० [सं० । आम का पेड़। की पत्तियों की तरह लंबी लंबी और गहरे हरे रंग की होती मोदाड्या-मंशा स्त्री० [ स० ] अजमोदा । धन-अजवाइन । है। इसकी जई बहुत मोटी होती हैं, जिन्हें सूअर खोदकर मोदाद्वि-सभा पुं० म. ] मुंगेर के पास के एक पर्वत का पौरा- ग्वाते हैं। निक नाम । मोद-सज्ञा पु० | सं० [वि. माद)] (१) आनंद । हर्ष । प्रसन्नता। मोदित-वि० [सं०] हर्षित । आनंदित । प्रसन्न । म्युशी । (२) पाँच भगण, एक मगण, एक संगण और एक मोदिनी-मंशा स्त्री० [सं० । (१) अजमोदा। (२) जूही । (३) गुरु वर्ण का एक वर्ण-वृत्त । उ०-भे सर में सिगरे गुण कस्तूरी । (४) मदिरा । (५) चमेली। अर्जुन जाहिर भूपालाहु लजाने । ज्योहि स्वयंवर में मछरी मोदी-संज्ञा पुं० [सं० मादक लड्डू (बनानेवाला); अथवा अ० महअ- दह बेधि सभा सो द्रौपदि आने । (३) सुगंध । महक। जिस, रसद ] (1) आटा, दाल, चावल आदि बेचनेवाला .खुशय। बनिया। भोजन-सामग्री देनेवाला बनिया । परचूनिया। मोदक-संश। पु० [सं०] (१) लाइडू । ( मिठाई) (२) ओषध उ.-(क) माया मेरे राम की मोदी सब संसार । जा की आदि का बना हुआ लड्डू । जैग, मदनानंद मोदक । धीठी ऊतरी सोई खरचनहार |-कबीर । (ख) मदन के (३) गुर। (४) एक वर्णवृस जिसके प्रत्येक चरण में चार मोद भरी जोबन प्रमोद भरी मोदी की बहू की दुति देखे भगण होते हैं। जैसे,—(क) भा चहु पार जु भौ निधि दिन दूनी सी। चूनरी सुरंग अंग इंगुर के रंग देव बैठी रावन । तो गहु राम पदै अति पावन । आय घरै प्रभु लै परचूनी की दुकान पर चूनी सी।-देव । (ग) है अन्न-