पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५३५

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मोमी २८२६ मोरछल anaman शरीर को आंच से तपाकर निकाली हुई चिकनाई से तैयार मेह । फूल सिरस, अरसी, अवनि, ग्यारह छाया एह।- की जाती है। इसी से ये मुहावरे बने है। एनपरीक्षा। (२) काले रंग की एक चिकनी दवा जो मोम की *-सर्व० [ स्त्री. मोरी ] दे. "मेरा"। तरह मुलायम होती है। यह दवा घाव भरने के लिए संज्ञा स्त्री० [हिं०] सेना की अगली पंक्ति। प्रमिन्ह है। मोरचंग-संज्ञा पुं० दे."मुरचंग"। मोमी-वि० [ फा (8) मोम का बना हुआ। जैसे, मोमी मोरचंदा-संज्ञा पुं० दे. "मोरचंद्रिका"। उ०—गावत गोपाल मोती, मोमी पुतला । (२) मोम का सा। लाल नीके राग नट हैं।......"मोरचंदा चारु सिर मंजु मायन-संज्ञा पुं० [हिं० मैन-मोम ] मौड़े हुए आटे में घी या गुंजा पुंज धरे, बनि बन धातु तन ओढ़े पीत पट है।- चिकना देना जिसमें उससे बनी वस्तु खसखसी और तुलसी। मुलायम हो। मरोचंद्रिका-संशा स्त्री० [हिं० मोर+नंद्रिका ] मोर पंख के छोर यौ०-मोयनदार । जैसे, मोयनदार कचौरी। की वह बेटी जो चंद्राकार होती है। उ.-मोरचंद्रिका मोयुम-सशा पु० [देश॰] एक लता जो आसाम, सिकिम और श्याम सिर चदि कत करत गुमान । -बिहारी। भूटान में बहुतायत से उत्पन्न होती है। इस लता से मोरचा-संशा पुं० [फा०] (१) लोहे की ऊपरी सतह पर चढ़ अत्यंत चमकीला रंग तैयार किया जाता है, जिससे कपड़े जानेवाली वह लाल या पीले रंग की थुकनी की सी तह रंगे जाते हैं। जो वायु और नमी के योग के रासायनिक विकार होने से मांग-संशा पुं० । देश० ] नेपाल देश का पूर्वी भाग जो कौशिकी उत्पन्न होती है। जंग। (यह लाल बुकनी वास्तव में विकार- नदी के पूर्व पड़ता है। संस्कृत ग्रंथों में इसी भाग को प्राप्त लोहा ही है।) (२) दर्पण पर जमी हुई मैल । उ.- 'किरात देश' कहा गया है। इस देश में जंगल और . (क) जब लग हिय दरपन रहै कपट मोरचा छाइ । तब पहाड़ियाँ बहुत हैं । इस देश का कुछ भाग जिला पुरनिया लग सुदर भीत मख कैसे हगन दिखाइ।-सनिधि । (बंगाल) में भी पड़ता है। (ख) पहिर न भूषन कनक के कहि आवत एहि हेत । दर- मोर-संज्ञा पुं० [सं० मयूर , प्रा० मोर ] [ स्त्री मोरना ] (१) एक ! पन के से मोरचा देह दिखाई देत ।-विहारी। अत्यंत सुंदर बड़ा पक्षी जो प्रायः चार फुट लंबा होता है। विशेष प्राचीन काल में दर्पण लोहे को मौजते मांजते चमका- और जिम्मकी लंबी गर्दन और छाती का रंग बहुत ही गहरा कर बनाए जाते थे; इसी से दर्पण के साथ 'मोरचा' शब्द और चमकीला नीला होता है। नर के सिर पर बहुत ही का प्रयोग चला आ रहा है। "दर्पण" के लिए फारसी का सुदर कलगी या चोटी होती है। पंख छोटे तथा पूंछ लंबी "आईना" शब्द वास्तव में "आहना" का अपभ्रंश है, और अत्यंत सुदर होती है। नर जिस समय प्रसन्न होता जिसका अर्थ "लोहे का" होता है। है, उस समय अपनी पूंछ के पर खड़े करके मंडलाकार फैला , क्रि०प्र०-जमना ।--लगना । देता है, जिससे यह बहुत ही सुदर जान पड़ता है। पूछ मुहा०-मोरचा खाना-मोरचा लगने से खराब होना । के परों पर बहुत सुंदर गोल दाग़ या चित्तियाँ होती है, संज्ञा पुं० [फा० मोरचाल] (1) वह गड्ढा जो गढ़ के चारों जिनका रंग नीला होता है और जिन पर सुदर सुनहरा और रक्षा के लिए खोद दिया जाता है। (२) वह सेना मंडल होता है । इन्हें चंद्रिका कहते है । मोर सब पक्षियों जो गढ़ के अंदर रहकर शत्रु से लड़ती है। (३) बह मे सुदर पक्षी है। अनेक चटकीले रंगों का जैसा सुदर : स्थान जहाँ से सेना, गढ़ या नगर आदि की रक्षा की जाती मेल इसमें होता है, वैसा और किसी पक्षी में नहीं होता।। है। वह स्थान जहाँ खड़े होकर शत्रु सेना से लड़ाई की प्राचीन यूनानी और रोमन इसे बहुत पवित्र मानते थे। . जाती है। राजपूताने में अब तक कोई इसकी हत्या नहीं करता। मुहा०-मोरचाबंदी करना-गढ़ के चारों ओर गड्ढा खोदकर इसका स्वभाव है कि बादलों की गरज सुनते ही कूकता । याटाले बनाकर यथास्थान सेना नियुक्त करना । मोरचा जीतना- है। कहते है कि यह साँप को खा जाता है। मादा का रंग शत्रु के मारचे पर अधिकार कर लेना। मोरचा बाँधना=दे० फीका होता है और वह देखने में वैसी सुदर नहीं होती। "मोरचाबंदी करना" मोरचा मारना-३० “मोरचा जीतना"। पा०-नीलकंठ । केकी। बरही। शिखी। शिखंडी। कलापी। मोरचा लेना युद्ध करना । शिवसुतवाहन । अहिभनी।। मोरछड़-संज्ञा पुं० दे० "मोरयल"। (२) नीलम की आभा, जो मोर के पर के समान होती है। मोरछल-संज्ञा पुं० [हिं० मोर+छड़ ] मोर की पूँछ के परों को उ.-मोर, विष्णु, नभ, कमल, अलि, कोफिल, फलरव, : इकट्टा बाँधकर बनाया हुआ लंबा चंवर जो प्राय: देवताभों