पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मौकरी २८३२ मौजो भुनगा पास न पावंगा मौकफ हुआ जब अन्न औ जल।- . था । इस वंश के लोग अपने आको भद्रराज अश्वपति जजार । (२) काम करने में रोका गया । नौकरी से अलग के वंशज मानते थे । इस वंश के यहुत प्राचीन होने के किया गया। बरखास्त । उ०-सन् १९१० ई० में बादशाह कई प्रमाण मिले हैं। पर इसका पुराना इतिहास अभी ने मुसलमान मुग़लों को, जो नौकर हो गए थे, यक कला तक नहीं मिला है। हरिवर्मा, ईश्वरवा, शर्ववर्मा, मौकफ कर दिया । --शिवप्रसाद । (३) रद किया गया। ग्रहवर्मा, यशोवर्मा आदि इस वंश के प्रसिद्ध राजा थे। मनसूख किया गया। (४) अधिष्ठित । मुनहसर। मैरिटर्य-संज्ञा पु० [सं० ] बहुत अधिक वा बढ़ बढ़कर बोलना। अवलंबित । आश्रित । निर्भर । उ.---दुःख और सुख मुम्वरता । वाचालता । प्रगल्भता। तबीत पर मौका है। शिवप्रसाद। मौखिक-वि० [सं०] (1) मुख संबंधी, मुख का । (२) क्रि० प्र०—रहना ।—होना । जवानी । जैसे,—आप कुछ देते तो हैं नहीं, केवल मौखिक मकिपी-संक्षा [फा०] (१) मौकफ ने की क्रिया या बातें करते हैं। भाव । (२) प्रतिबंध । रुकावट । (३) काम मे अलग किया मौगा-वि० [सं० मुग्ध ] | श्री. मोगी ] (१) मूर्व। दुर्बुद्धि । जाना । बरखास्तगी। (२) जनखा । हिजड़ा । मेहरा । मौक्तिक-संज्ञा पुं० [सं० ] मोती। मौगी -संज्ञा स्त्री० [हिं० मोगा, मि. बंगला मागी-स्त्री। ] स्त्री। मोनिकतंडुल-संशा पु० [सं० ] सफेद मक्का । बड़ी ज्वार । औरत। मैक्तिकदाम--संशा . [सं. घारह अक्षरों का एक वर्णिक छंद मौच-संशा पु० [सं० ] केले का फल । जिपके प्रत्येक चरण में तृपरा, पाँचवों, आंठवां और मौज-संज्ञा स्त्री० [अ० ] (१) लहर । तरंग । हिलोर । ग्यारहवाँ वर्ण गुरु और शेप लघु होते हैं; अर्थात् जिसके फ्रि० प्र०-आना ।-उठना । प्रत्येक चरण में चार जगण होते हैं। उ---दुख्यो हिय महा--मौज मारना लहराना । बहना । जैसे,—दरिया केतिक देग्वत भृष । कन्यो तब तापर रोष अनृप । वियो मौजे मार रहा है । मौज खाना लहर गारना । हिलारा गिनि के उर भेदत रोज । करै तुमको निज बाण मनोजु । लेना । (लश लंबी मौज-दूर तक का बहाव । (लश०)


गुमान ।

(२) मन की उमंग । उमंग । जोश । उ०—(क) साहेब मौक्तिकमाला-संज्ञा स्त्री० [सं०] ग्यारह अक्षरों की एक वर्णिक के दरबार में कमी काहु की नाहिदा मोज न पाबही वृत्ति का नाम जिसके प्रत्येक चरण का पहला, चौथा, चूक चाकरी माहि-कवीर । (ब) कहा कमी जाके परिवाँ, दसयों और ग्यारहों अक्षर गुरु और शंप लघु राम धनी । मनसा नाथ मनोरथ पूरण मुख निधान जाकी होते हैं तथा पांच और छठे वर्ष पर यति होती है। इस मौज धनी ।—सूर । अनुकूला भी कहते है। उ०-भाति न गंगा जग नुवमुहा०—किसी को मौज आना वा किसी का मौज में आना-- दाया। मंवत तोही मन बच काया । उमग में भरना । अचानक किसी काम के लिए उत्तेजना होना। मौक्तिकालि-संशा ही म. मोनी को माला । धुन हाना । मौज उठना-मन में उमंग उठना । किसी की मोक्ष-संक्षा पु० [सं०] एक प्रकार का साम गान । मौज पाना भरी जानना । इच्छा से अवगत होना। मौग्य-मः प. [ सं० । सुग्ध से होनेवाला पार । जैग, अभक्ष्य (३) धुन । (४) सुग्व । आनंद। मज़ा । उ०--(क) भोजन और अपशब्दों का उच्चारण आदि। कबिरा हरि की भक्ति कर तजु विषया रस चीज । बार संशा पु. एक प्रकार का मसाला । उ०-माख मुनक्का मृत बार नहि पाइए मानुष जनम की मौज ।—कबीर । (ग्व) मुलतानी । मेथी मालफंगनी मानी । —सूदन । सोचु पो मन राधिका कछु कहन न आवै । कछु हरवे माखर-सशा पु. सं यहुत अधिक या बढ़ बढ़कर बातें कछु दुख कर मन मौज बढ़ावै। सूर। करना । मुखरना । मुंहज.री। क्रि० प्र०—करना ।-उड़ाना ।-मारना ।—मिलना । मौवरी-से। पु! सं. ] भारत के एक प्राचीन राजवंश का —लेना। नाम जिसका शासन काल ईयची पांचवीं शताब्दी के (५) प्रभूति । विभत्र । विभूति । उ-रहति न रन अंत में लगभग ईपची आठवीं शताब्दी तक था । इस वंश जयमाहि मुख लखि लाग्बन की फौज । जाचि निराखर ह का राज्य पूर्व में मगध तक, दक्षिण में मध्य प्रांत और चलै लै लाखन की मौज ।—बिहारी। आंध्र नक, उत्तर में नेपाल तक तथा पश्चिम में थानेश्वर मौजा-संज्ञा पुं० [अ०] गाँव । ग्राम । और मायं तक था। इनकी राजधानी कनीज थी, परंतु मौजी-वि० [हिं० मौज+ई (प्रत्य॰)] (1) मनमाना काम बंच में उस पर बैर-वंशः राजा हर्ष ने अधिकार कर लिया, करनेवाला । जो जी मे आवे, वही करनेवाला । (२) सदा