पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५४२

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मौजूद २८३३ मौन प्रसन्न रहनेवाला । आनंदी। (२) मन में कभी कुछ और ! (४) अत्यंत कष्ट । आपत्ति । जैसे,—वहाँ जाना तो हमारे कभी कुछ विचार करनेवाला । लिए मौत है। मौजूद-वि० [अ०] (1) उपस्थित । हाजिर । विद्यमान । रहता ' मौताद-संज्ञा स्त्री० [अ० ] मात्रा । 30-धंग जो होता बैद की हुआ। उ.--जहाँ हम लोग गए थे, वहाँ शांतिपुर का दिये दवा मौताद । क्यों नहि सिर के दरद में सिर देता हमारा नायव गुमाश्ता मौजूद था।-सरस्वती । (२). फिरहाद ।-रसनिधि।। प्रस्तुत । तैयार । जैसे,-~-आपका काम करने को मैं . मौद्रल-संशा पुं० [सं०] मद्गल ऋषि के गोत्र में उत्पन्न पुरुष । मौजूद हैं। । मौद्गल्य । विशेष-इसका प्रयोग विशेष्य के आदि में इस रूप में नहीं मौद्गल्य-संज्ञा पुं० [सं०] (1) मुद्गल ऋषि के पुत्र का नाम । होता; और यदि होता भी है, तो होना किया का रूप ये एक गोत्रकार ऋषि थे। (२) मुद्गल ऋषि के गोत्र में लुस रहता है। जैसे,-वहाँ पर मौजूद सिराही ने उसे उत्पन्न पुरुष । बहुत रोका। मौद्गल्यायन-संज्ञा पुं० [सं०] गौतम बुद्ध के एक प्रधान शिष्य मुहा०—मौजूद रहना (१) उपस्थित रहना । पाम रहना । का नाम । सामने रहना । (२) ठहरे रहना । जैसे,—मौजूद रहो; अभी! मौद्गीन-संज्ञा पुं० [सं०] वह ग्वेत जिसमें मूंग उत्पन्न होता हो। उत्तर मिलेगा। मौन-संज्ञा पुं० [सं०1 (1) न बोलने की क्रिया या भाव । मौजूदगी संज्ञा स्त्री० [फा०] सामने रहने का भाव । उपस्थिति ।। चुप रहना । चुप्पी। उ०-संपति अरु विपति को मिलि विद्यमानता। चले प्रभु तहाँ जहाँ नहिं होइ सुमिरन तिहारो। करत मौजूदा-वि० [अ०] वर्तमान काल का । जो इस समय मौजूद दंडवत मैं तुमहिं करुणाकरन कृपा करि और मेरे हो। प्रस्तुत । उ-चूं कि उर्द की एक बेनजीर तारीम्ब निहारो। सुनत यह बचन हरि कन्यो अब मीन करि (आबे हयात ) मुल्क में मौजूद है; लेहाजा किताब का कृपा तोहि पर बीर धारी। संपति अरु विपति को ज़ियादह हिस्सा संस्कृत, हिंदी और मौजूदा हिदी के ज़िके भय न होह है तिसै सुनै जो यह कथा चित्त धारी। खैर से मामर होगा।-जमाना। मौड़ा-*-संज्ञा पुं० दे. "मौड़ा"। क्रि० प्र०—करना । —रहना। मौत-संज्ञा स्त्री० [अ० ] (1) मरने का भाव । मरण । मृत्यु । मुहा०-मौन गहना वा ग्रहण करना-चप रहना । चापा वि० दे० "मृत्यु"। उ.-अरे कस ! जिसे तू पहुँचाने । साधना । न बोलना । उ॰—(क) देखते ही जेहि मीन गही अरु चला है, तिनका आठवा लड़का तेरा काल उपजेगा । उसके । मौन तजे कटु बोल उचारे। केशव । (ख) मौन गही मन हाथ तेरी मौत है। लल्लू । (२) वह देवता जो मनुष्यों । मारे रहों निज पीतम की कहों कौन कहानी।-व्यंग्यार्थः । वा प्राणियों के प्राण निकालता है। मृत्यु । उ.-विरह मौन बोलना-चुप रहने के उपरांत बोलना । उ०—ग्विनक तेज तन में तपै अंग सबै अकुलाय । घट सूना जिव पीव में, मौन बांध खिन खोला। गहेखि जीभ मुख जाइ न बोला।--- मौति हँदि फिर जाय ।-कबीर । जायसी। मौन तजना=चुप्पी छोड़ना। बोलने लगना । उ०- मुहा०-मौत आना-मरन को होना। मौत का पसीना देखत ही जेहि मौन गही अरु मौन तजे कटु बोल उचारे । आना आसन्न मरण हाना। मरने के लक्षण दिखाई देना। —केशव । मौन धरना वा धारण करना-न बोलना । म मौत का सिर पर खेलना-(१) मरने को होना । मरन पर होना । मौन होना। उ.-जह बैठी वृषभानु नंदिनी तह होना। (२) दुर्दिन आने को होना । आपत्ति काल समीप .. आये धरि मौन । पड़े पायें हरि चरण परसि कर छिन अप- होना । (३) प्राण जाने का भय होगा। जान जोखों होना। . राध सलौन । -सूर। मौन बाँधना=चुप्पी साधना । तुप है। मौत का तमाचा मृत्यु का स्मरण दिलानेवाला कार्य या ! जाना। 30-जो बोले सो मानिक मूंगा । नाहि तो मौन घटना । अपनी मौत मरना स्वाभाविक ढंग से मरना। : बाँधु होइ गुंगा।--जायसी । मौन लेना वा साधना मीन प्राकृतिक नियम के अनुसार मरना । मौत बुलाना= धारण करना। चुप होना। न बोलना। उ०-जिय में न क्रोध ऐसा काम करना जिसमे मृत्यु निश्चित हो। (३) मरने का करु जाहि अब केहू ठौर नगर जरावे जिन साध्यो हम मीन समय । काल। है ।—हनुमनाटक । मौन संभारना*-मौन साधना । महा०-मौत के दिन पूरे करना किसी प्रकार आयु बिताना।। चुप होना। कठिनता से कालक्षेप करना । ऐसे दुःख में दिन बिताना, जिसमें । (२) मुनियों का प्रत । मुनित्रत । (३) फागुन महीने का बहुत दिन जीना असम्भव हो। पहला पक्ष । ७०९