पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५५६

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यदिच २८४७ यम है। जैसे,—(क) यदि वे न आए तो ? (ख) यदि आप कहें, तो मैं देहूँ। यदिच, यदिचेत्-अव्य० [सं० ] यथापि । अगरचे । यदु-संज्ञा पुं० [सं० ] (1) ययाति राजा का बड़ा पुत्र जो देव- यानी के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। महाभारत में लिखा है कि ययाति के शाप के कारण इनका राज्य नष्ट हो गया था: पर पीछे से इंद्र की कृपा से इन्हें फिर राज्य मिला था। शाप का कारण यह था कि ययाति ने वृद्ध होने पर इनम्मे कहा : था कि तुम मेरा पाप और वृद्धावस्था ले लो, जिससे मैं फिर युवक हो जाऊँ। पर इसे इन्होंने स्वीकृत नहीं किया था । श्रीकृष्णचंद इन्हीं के वंश में हुए थे। ( इस शब्द के पाय ! पति या राजा आदि का वाचक शब्द लगाने से श्रीकृष्ण का अर्थ होता है।) (२) पुराणानुसार हर्नश्व राजा के पुत्र का नाम । यद्ध-संशा पुं० [सं० ] पुराणानुसार एक ऋषि का नाम । यदुनंदन-संशा पुं० [सं०] (1) यदुकुल को आनंद देनेवाले, श्रीकृष्ण,चंद्र । (२) कृष्णचैतन्य के एक साथी भक्त । यदुनाथ-संज्ञा पुं० [सं०] यदुवंश के स्वामी, श्रीकृष्ण । यदुपति-संज्ञा पुं० [सं० ] श्रीकृष्ण । यदभूप-संज्ञा पुं० सं०] श्रीकृष्ण । यदुराई-संज्ञा पुं० [सं० यदु+हिं० रा३-राजा ] श्रीकृष्ण । यदुराज, यदुरार-संक्षा पुं० [सं०] पदुकुल के राजा, अंकृष्ण । ' यदुवंश-संज्ञा पुं० [सं०] राजा यदु का कुल । यदु का खानदान। यदुवंशमणि-संज्ञा पुं० [सं०] श्रीकृष्णचंद्र । यदुवंशी-संज्ञा पुं० [सं० यदुवंशिन् ] यदुकुल में उत्पन्न । यदुकुल के लोग । यादव । यदुवर-संज्ञा पुं० [सं०] श्रीकृष्ण । यदुवीर-संज्ञा पुं॰ [सं०] श्रीकृष्ण । यदत्तम-संशा पुं० [सं०] श्रीकृष्ण । यहन्छया-क्रि० वि० [सं०] (1) अकस्मात् । अचानक । (२) इत्तफाक से । देवसंयोग से । (३) मनमाने तौर पर ।मन की मौज के अनुसार । बिना किपी नियम या कारण के। यच्छयाभिश-संज्ञा पुं० [सं०] कृतसाक्षी के पाँच भेदों में से एक । वह साक्षी जो घटना के समय आप से आप या अकस्मात् आ गया हो। यदृच्छा-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) केवल इच्छा के अनुसार व्यव- हार । स्वेच्छाचरण । मनमाना-पन (२) आकस्मिक संयोग । इत्तफाक। यद्वातद्वा-अव्य० [सं०] कभी कभी। यम-संज्ञा पुं० [सं०] (1) एक साथ उत्पन बच्चों का जोड़ा । यमज । (२) भारतीय आर्यों के एक प्रसिद्ध देवता जो दक्षिण दिशा के दिकपाल कहे जाते है और आजकल मृत्यु के देवता माने जाते हैं। विशेष-वैदिक काल में यम और यमी दोनों देवता, ऋषि और मंत्रकर्ता माने जाते थे और "यम' को लोग "मृत्यु" से भिन्न मानते थे। पर पीछे से यम ही प्राणियों को मारनेवाले अथवा इस शरीर में से प्राण निकालनेवाले माने जाने लगे। वैदिक काल में यज्ञों में यम की भी पूजा होती थी और उन्हें हवि दिया जाता था । उन दिनों वे मृत पितरों के अधिपति तथा मरनेवाले लोगों को आश्रय देनेवाले माने जाने थे। तब से अब तक इनका एक अलग लोकमाना जाता है, जो "यमलोक" कहलाता है। हिंदुओं का विश्वास है कि मनुष्य मरने पर सब से पहले यमलोक में जाता है और वहाँ यमराज के सामने उपस्थित किया जाता है। वही उसके शुभ और अशुभ कृत्यों का विचार करके उसे स्वर्ग या नरक में भेजते हैं। ये धर्मपूर्वक विचार करते हैं, इसीलिए धर्मराज भी कहलाते हैं । यह भी माना जाता है कि मृत्यु के समय यम के दूत ही आस्मा को लेने के लिए आते हैं। स्मृतियों में चौदह यमों के नाम आए है, जो इस प्रकार हैं-यम, धर्मराज, मृत्यु, अंतक, वैवस्वत, काल, पर्वभूतक्षय, उदुबर, दम, नील, परमेष्टी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त । तर्पण में इनमें से प्रत्येक के नाम भी सीन तीन अंजलि जल दिया जाता है। मार्कंडेय पुराण में लिखा है कि जब विश्वकर्मा की कन्या संज्ञा ने अपने पति सूर्य को देखकर भय से आँखें बंद कर ली, तब सूर्य ने क्रुद्ध होकर उसे शाप दिया कि जाओ, तुम्हें जो पुत्र होगा, वह सब लोगों का संयमन करनेवाला ( उनके प्राण लेनेवाला ) होगा । जब इस पर संज्ञा ने उनकी ओर चंचल दृष्टि से देखा, तब फिर उन्होंने कहा कि तुम्हें जो कन्या होगी, वह इसी प्रकार चंचलतापूर्वक नदी के रूप में बहा करेगी । पुत्र तो यही यम हुए और कन्या यमी हुई, जो बाद में यमुना के नाम से प्रसिद्ध हुई । कहा जाता है कि यमी और यम दोनों यमज थे । यम का वाहन भंसा माना जाता है। पर्या-पितृपति । कृतांत । शमन । काल । दंडधर । श्राव देव । धर्म । जीवितेश । महिषध्वज । महिषवाहन । शीर्णपाद । हरि । कर्मकर। (३) मन, इंद्रिय आदि को वश या रोक में रखना । निग्रह। (४) चित्त को धर्म में स्थिर रखनेवाले कर्मों का साधन । विशेष---मनु के अनुसार शरीर-साधन के साथ साथ इनका पालन निस्य कर्त्तव्य है। मनु ने अहिंसा, सत्यवचन, प्रापर्य, अकस्कता और अस्तेय ये पाँच यम कहे हैं। रोक में रखना