पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५५७

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यमक २८४८ यमपुर पर पारस्कर गृह्यसूत्र में तथा और भी दो एक ग्रन्थों मैं | यमदंष्टा-संशा श्री० [सं० विधक के अनुसार आश्विन, कार्तिक इनकी संख्या दस कही गई है और नाम इस प्रकार दिए और अगहन के लगभग का कुछ विशिष्ट काल, जिसमें रोग गए है-ब्रह्मचर्य, दया, क्षांति, ध्यान, सत्य, अकल्कता, और मन्यु आदि का विशेष भय रहता है और जिसमें अल्प अहिया, अस्तेय, माधुर्य और यम । 'यम' योग के आठ भोजन तथा विशेष मया आदि का विधान है। कुछ लोगों अंगों में मे पहला अंग है। वि० दे० "योग"। के मन में यह समय कार्तिक के अंतिम आठ दिनों और (५) कौआ । (६) शनि । (७) विष्णु । (८) वायु । अगलन के आरंभिक आठ दिनों का है और कुछ लोगों के (९) यमज । जोड़े। (१०) दो की संख्या । (११) वायु । मत माश्विन के अंतिम आठ दिन और पूरा कार्तिक मास (जैन) इसके अंतर्गत है। यमक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) एक प्रकार का शब्दालंकार या ' यमदग्नि-Aj. [सं.] एक अपि जो परशुराम के पिता थे। अनुप्रास जिसमें एक ही शब्द कई यार आता है; पर हर विद० "जमदग्नि"। बार उसके अर्थ भिन्न भिन्न होते हैं 30-कनक कनक . यमदुनिया-मंशा स्त्री० दे० "यमद्वितीया"। तं सौगुनो मादकता अधिकार । (२) एक वृत्त का नाम, यमदतक-संजा पु० सं० ] (3) कोआ। (२) यम के तृत । जिसके प्रत्येक चरण में एक नगण और दो लघु मात्राएँ यमदतिका-संशा मा० [सं० इमली । होती है। (३) सेना का एक प्रकार का व्यूह या जमाव । यमदवता-ना ग. [ सं . ] भरणी नक्षत्र, जिसके देवता यम (४) वे दो बालक जो एक साथ ही उत्पन्न हुए हों। माने जाते हैं। यमज । जोड़े। (५) संयम । यमद्रम-मः। पुं० [सं० ] मेमर का पेड़ । शाल्मलि वृक्ष । यमकात, यमकानर-संभा ५० [सं० यम+: कातर] (1) (इमका यह नाम इसलिए है कि इनमें फूल तो बड़े यम का छुरा वा बाँड़ा (२) एक प्रकार की तलवार । मुदर देख पड़ते हैं, परंतु उनसे कोई खाने लायक फल नहीं उ.-(क) जनु यमकान करहि सब भवों । जिउ लेड उत्या होता)। जनहुँ स्वर्ग अपसवाँ।-जायसी । (ख) होप हनुमत यम- यद्वितीया-सहा म्बी० [सं० । कार्तिक शुक्ला द्वितीया । कहते कातर धाऊँ। आज स्वामि संकर सिर नाऊँ।—जायसी । हैं कि इस दिन यमराज ने अपनी बहन यमुना के यहाँ यमकीट-संज्ञा पुं० [सं०] केचुवा । भाजन किया था। इसीलिए इस दिन बहन के यहाँ भोजन यमघंट-संश। पुं० [सं० ] (१) एक दुष्ट योग जो रविवार के दिन करना और उग् कुछ देना मंगलकारक और आयुवर्धक माना मघा या पूर्वाफाल्गुनी, सोमवार के दिन पुष्य या श्लेषा, जाता है। भाई दूज। मंगलवार को ज्येष्ठा, अनुराधा, भरणी या अश्विनी, बुधवार यमधार-संक्षा ५० [सं० ऐसी तलवार या कटारी आदि जिसके को हम्त या आध, बृहस्पति को पूर्वापाद, रेवती या दोनों और धार हो। उत्तराभाद्रपद, शुक्र को स्वाति या रोहिणी, और शनिवार , यमन-संशा yo [सं.] (1) प्रतिबंध वा निरोध करना । नियम को शतभिषा या श्रवण नक्षत्र होने पर होता है। इस योग म बांधना । (२) बंधन। बाँधना । (३) विराम देना। में शुभ काम वर्जित है। (२) दीपावली का तृपरा दिन । टहराना । (४) रोकना । बंद करना। (५) यमराज । कार्तिक शुक्का प्रतिपदा । संज्ञा पुं० दे. “यवन"। यमचक्र-संज्ञा पुं० [सं०] यमराज का शस्त्र । यमनकल्यान-शा पु० दे० "मन"। यमज-संज्ञा पुं० [सं० ] (1) एक गर्भ में एक ही समय में और ' यमनक्षत्र-संः॥ पु० [सं० } भरणी नक्षत्र, जिसके देवता यम माने एक साथ उत्पन्न होनेवाली दो संतानें । एक माथ जन्म लेनेचाले दो बच्ची का जोरा। जीशा । (२) ऐसा घोड़ा यमनाह *-संज्ञा पुं० [सं० यमनाथ, प्रा. जमनाह 1 यमों के स्वामी, जिसका एक ओर का अंगहीन और दुर्वल हो और दूसरी धर्मराज । उ.-कह नारद हम कीजै काहा । जेहि ते ओर का वही अंग ठीक हो। यह दोष माना जाता है। मानि जाइ यमनाहा ।-विश्राम। (३) अश्विनीकुमार। यमनिका-संज्ञा स्त्री० दे० "यवनिका"। यमजात-संज्ञा पुं० दे० "यमज"।

यमनी-संगाली | यमन देश स ] एक प्रकार का बहुमूल्य पत्थर

यमजातना-संज्ञा स्त्री० दे० "यमयातना"। जिम्मकी गणना रनों में होती है। ( यह पत्थर अरब के यमजित्-संज्ञा पुं० [सं०] मृत्यु को जीतनेवाले, मृत्युंजय । यमन प्रदेश में आता है।) यमत्व-संज्ञा पुं० [सं०] यम का भाव या धर्म । यमपुर-संज्ञा पुं० [सं० ] यम के रहने का स्थान, जिसके विषय में यमदंड--संज्ञा पुं० [सं०] यमराज का डंडा । कालदंड । यह माना जाता है कि मरने पर यम के दूत प्रेतात्मा को