पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५६२

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यहाँ २८५३ याजुषीपंक्ति जैसे, इसको याकों। (ख) पुरुषवाचक और निजबाधक होनेवाला जंगली बैल जिसकी पूंछ का बर बनता है। सर्वनामों को छोड़कर शेष सर्वनामों की भांति इसका नवि० दे० "एक" | उ.-(क) कोऊ याको घात न प्रयोग भी प्रायः विशेषण के समान होता है। जब यह अकेला समुझे चाह बीसन दांप कहन 1-प्रतापनारायण मिश्र । रहता है, तब तो सर्वनाम होता है; और जब इसके साथ ! (ख) दादी नाक याक माँ मिलिग, बिनु दाँतन मुँह अस कोई संज्ञा आती है, तब यह विशेषण हो जाता है। पोपलान ।—प्रतापनारायण मिश्र ।। जैसे,—"यह बाहर जायगा" में "यह" मर्वनाम है; और याकृत-मंज्ञा पुं० [अ० ] एक प्रकार का लाल रंग का बहुमूल्य "यह लड़का पाजी है" में "यह" विशेषण है। पत्थर । लाल। यहाँ-क्रि० वि० [सं० इह ] इस स्थान में । इस जगह पर । याग-संज्ञा पुं० [सं०] यज्ञ । उ०—योग याग व्रत दान जो यहि-सर्व० वि० [हिं० यह ] (१) 'यह' का वह रूप जो पुरानी कीजै।-केशव । हिन्दी में उसे कोई विभक्ति लगने के पहले प्राप्त होता है। यागमंतान-संशा पुं० [मं० ] इंद्र के पुत्र जयंत का एक नाम । जैसे, यहि को, यहि तें। (२) 'ग' का विभक्तियुक्त रूप, याचक-संज्ञा पुं० [म.] (१) जो मांगता हो। मांगनेवाला । जिसका व्यवहार पीछे कर्म और संप्रदान में ही प्रायः होने उ.-(क) चातक ज्यी कातिक के मेघ से निराश होत, लगा । इपको। याचक क्यों तजत आय कृपण के दान की। हृदयराम । यही-अव्य० [हिं० यह+ही (प्रत्य॰)] निश्चित रूप से यह । यह (ख) जनि यांचे प्रजपति उदार अति याचक फिरि न ही । उ-पही गोष यह ग्वाल इहै सुख, ग्रह लीला कहुँ कहावै।-सूर । (ग) तोपि याचक सकल. दादुर मयूर तजत न साथ।-सूर। ये। केशव । (२) भिवमंगा। यहद-संघा पुं० [इवानी ] वह देश जहाँ हजरत ईया पैदा हुए ' याचना-क्रि० स० [सं० याचन ] प्राप्त करने के लिए विनती थे और जहाँ के निवासी यहूदी कहलाते हैं। यह देश करना। प्रार्थना करना । मांगना। एशिया की पश्चिमी सीमा पर है। संज्ञा स्त्री० [सं० ) मांगने की क्रिया। यहूदी-संज्ञा पुं॰ [ हिं यहूद ] [स्त्री० यहूदिन ] (१) यहूद देश का याच्य-वि० [सं०] याचना करने के योग्य । मांगने के निवासी। (२) आर्य जाति से भिन्न शामी जाति के योग्य । अंतर्गत एक जाति । याज-संज्ञा पुं० [सं०] यज्ञ करानेवाला । याजक । यहयह-संशा पुं० [ देश. ] कवृतर की एक जाति । याज-संशा पुं० [सं०] (1) अन्न । अनाज । (२) एक प्राचीन याँ-कि० वि० "यहाँ"। उ.--(क) याँ नम्र भाव ही से ऋषि का नाम । जाना मेरे मन भाया है-प्रतापनारायण मिश्र । (ब) याजक-संथा पुं० [सं०] (१) यज्ञ करानेवाला । (२) राजा का फबकता है क्यों हाथ दहना । याँ तपोवन में क्या होगा हाथी । (३) मस्त हाथी। लहना ।-प्रतापनारायण मिश्र । याजन-संशा पुं० [सं०] यज्ञ की क्रिया। याँचना*-संज्ञा स्त्री० दे० "याचना"। याजि-संज्ञा पुं० [सं०] यज्ञ करनेवाला । क्रि० स० दे० "याचना"। याजी-संज्ञा पुं॰ [स. याजिन् । यज्ञ करनेवाला । यांचा-संज्ञा स्त्री० [सं०] मांगने की क्रिया । प्रार्थनापूर्वक का क्रिया । प्राथनापूर्वक याजुप-वि० [सं० 11 श्री. याजधी यजुर्वेद संबंधी। माँगना । याजुषी अनुष्टुप-संज्ञा पु. [ 10 ] एक वैदिक छंद जिसमें या-अव्य० [फा०] विकल्प-सूचक शब्द । अथवा । वा। उ० सब मिलाकर आठ वर्ण होते है। आप रहा है सीस नवाय। या प्रवाह ने दिया झुकाय । याजपीउष्णिक-सपा Y० [सं० । एक वैदिक छंद जिममें सात -प्रतापनारायण मिश्र । वर्ण होते हैं। सर्व० वि० 'यह' का वह रूप जो उसे ब्रज भाषा में याजषीगायत्री-संशा सी० [सं०] एक वैदिक छंद जिसमें छ: कारक चिन्ह लगने के पहले प्राप्त होता है। उ०—(क) वर्ण होते हैं। या चौदहें प्रकास में हहै लंका दाह । केशव । (ख) याजुपीजगती-संशा श्री० [ स. ] एक वैदिक छंद जिसमें बारह चली लाल या बाग मैं लग्यो अपूरब केलि । मतिराम वर्ण होते है। संशा स्त्री० [सं० ] (१) योनि । (२) गति । चाल। (३) याजुषीत्रिष्टुप-संज्ञा पुं० [सं०] एक वैदिक छंद जिसमें ग्यारह स्थ । गाली । (४) अवरोध । रोक । वारण । (५) ध्यान। वर्ण होते हैं। (६) प्राप्ति । लाभ। याजुषीपंक्ति-संशा स्त्री० [सं०] एक वैदिक छंद जिसमें दस याक-संज्ञा पुं० [तिम्बती म्याक, सं० गावक ] हिमालय पर . वर्ण होते हैं। ७१४