पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५६४

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यादव २८५५ यामुन यादव-संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री यादवा ] (१) यदु के वंशज भानु सुता धनि मोहन धनि गोपिन को काम । इनकी को (२) श्रीकृष्ण । दासी परि हहै धन्य शरद की याम । कैसेहु सूर जनम ब्रज वि० यदु संबंधी। पावै यह सुख नहि तिहुँ धाम । —सूर । यादपगिरि--संज्ञा पुं० [सं०] एक पर्वत का नाम । - यामक-संज्ञा पुं० [सं०] पुनर्वसु नक्षत्र । यादवी-संशा स्त्री॰ [सं०] (१) यदुकुल की स्त्री । (२) दुर्गा । यामकिनी-संशा श्री० [सं०] (१) कुलवधू । कुल-स्त्री। (२) यातु-संज्ञा पुं० [सं०] (8) जल । पानी । (२) कोई तरल पदार्थ। लड़के की स्री । पुत्रवधू । (३) बहिन । भगिनी । यादश-वि० [सं०] जिस प्रकार का । जैसा । . यामघांप-संशा पं० [सं० ) मुर्गा । याद-वि० [सं०] (१) यदुवंशी । (२) यदु संबंधी। | यामघोषा-संशाम्बी [सं०] वह घंटा जो बीच बीच में समय यान-संशा पुं० [सं०] (१) गाड़ी, रथ आदि सवारी । वाहन । . की सूचना देने के लिए बजता हो । घड़ियाल । (२) विमान । आकाशयान । (३) शत्रु पर चढ़ाई करना, यामनाली-संज्ञा स्त्री० [सं० प समय बतलानेवाली घड़ी। जो राजाओं के छः गुणों में से एक कहा गया है। (४) गति। यामनेमि-संज्ञा पुं० [सं०] इंद्र।। यानी, याने--अव्य० [अ० ] तात्पर्य यह कि । मतलब यह कि। यामल-संज्ञा पुं० [सं०] (1) ये दो लड़के जो एक साथ उत्पन्न अर्थात् । हुए हों । यमज संतान । जोड़ा । (२) एक प्रकार का तंत्र- यापन-संज्ञा पुं० [सं०] वि० [ यापित, याप्य ] (1) चलाना। ग्रंथ जिसमें सृष्टि, ज्यानिप, आक्ष्यान, नित्य कृत्य, क्रमसूत्र, वर्तन। (२) व्यतीत करना। बिताना । जैग्मे, कालयापन । वर्ण-भेद, जाति-भेद और युगधर्म का वर्णन होता है। ये (३) निरसन । निवटाना । (४) परित्याग । छोड़ना। ग्रंथ संख्या में छः हैं---आदि यामल, ब्रह्म यामल, विष्णु हटाना । (५) मिदाना। यामल, रुद्र यामल, गणेश यामल और आदित्य यामल । यापना-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) चलाना । हाँकना । (२) यामवती-संशा श्री० [सं० ] रात । निशा । कालक्षेप । दिन काटना । (३) वह धन जो किसी को यामाता-संक्षा पु० दे० "जामाता" । जीविका निर्वाह के लिए दिया जाय। (४) व्यवहार । . यामायन-संशा पु० [सं०] वह जो यम के गोत्र में उत्पन्न बर्ताव । ! हुआ हो। यापनीय-वि० [सं०] यायन करने के योग्य । याप्य । । यामार्द्ध-संज्ञा पु० [सं०] पहर का आधा भाग । याप्ता-संज्ञा स्त्री० [सं० ] जटा । यामि-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) कुलवधू । कुल स्त्री। (२) बहिन । याप्य-वि० [सं०] (1) निंदनीय । निंदित । (२) यापन करने . भगिनी । (३) यामिनी । रात। (५) अग्नि पुराण के अनु- के योग्य । यापनीय । क्षेपणीय । (३) छिपाने के योग्य। सार धर्म की एक पत्नी का नाम । इसम नागवीथी नामक गोपनीय । आवरणीय । (४) रक्षा करने के योग्य । कन्या उत्पन्न हुई थी। (५) पुत्री। कन्या । (६) पुत्रवधू । रक्षणीय । (७) दक्षिण दिशा। संज्ञा पुं० वैद्यक के अनुसार वह रोग जो साध्य न हो, पर यामिक-संगा पुं० [सं० ] पहरेदार । पहरुआ । चौकीदार। चिकित्सा से प्राणघातक न होने पावे । ऐसा रोग जो यामिका-संशा [स. | रात । अच्छा तो न हो, पर संयम द्वारा जिम्मका रोगी बहुत दिनों यामित्र-संवा ५० दे. "जामित्र"। तक चला चले। यामित्रवेध-संगा पु० दे० "जामित्रवेध"। याबु-संज्ञा पुं० [फा०] वह घोड़ा जो डील डौल में बहुत बड़ा यामिन, यामिनि-संज्ञा स्त्री० दे० "यामिनी"। न हो । टटटू। यामिनी-संज्ञा स्त्री० [सं० । (१) रात । (२) हलदी। (३) कश्यप याभ-संज्ञा पुं० [सं०] मैथुन । की एक स्त्री का नाम । याम-संज्ञा पुं० [सं०] (9) तीन घंटे का समय । पहर । (२) यामिनीचर-संज्ञा पुं० [सं०] (1) राक्षस । निशाचर। (२) एक प्रकार के देवगण । इनका जन्म मार्कंडेय पुराण के अनु- गुग्गुल । (३) उल्लू पक्षी । सार स्वायंभुव मनु के समय यज्ञ और दक्षिणा से हुभा था। यामीर-संश। पुं० [सं०] चंद्रमा । ये संख्या में बारह हैं । (३) काल । समय । . यामीरा-संज्ञा स्री० [सं०] रात । वि० यम संबंधी। यामुदायनि-संज्ञा पु० [सं०] यामुंद ऋपि के गोत्र में उत्पन्न संज्ञा स्त्री० [सं० यामि ] रात । उ०-दोऊ राजत श्यामा अपत्य । श्याम । ब्रज युवती मंडली विराजत देखति सुरगन बाम । यामुन-वि० [सं०] यमुना नदी संबंधी । जैम्पे, यामुन धन्य धन्य वृदाबन को सुख सुरपुर कौने काम । धनि वृष जल।