पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/७२

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२३६५ बड़वानलरस - गोल छोटा टुकड़ा। (२) कूटने पीसने का पत्थर ।। बकवाद करना। व्यर्थ बोलना । प्रलाप करना । (२) कोई लोदिया। (३) समडौल कटा हुआ टुकड़ा। यही टिकिया। बात बुरी लगने पर मुँह में ही कुछ बोलना । खुलकर जैसे, साबुन की वट्टी, नील की बट्टी। अपनी अरुचि या क्रोध न प्रकट करके कुछ अस्फुट शब्द यह-संशा पुं० [देश॰] (1) धारीदार चारखाना । (२) ताली। मुंह से निकालना । बुबबुदाना । जैसे,—मेरे कहने पर गया बजरबटटू । एक प्रकार का ताद जो सिंहल में और मला- तो, पर कुछ बडबड़ाता हुआ। बार के तट पर होता है। | बड़बड़िया-वि० [ अनु० बड़बड़ | बड़बड़ानेवाला । बकवादी। संज्ञा पुं० [सं० बर्वट ] बजरबटट्टू । बोड़ा। लोबिया। बड़बोल-वि० [हिं० बड़ा+बोल] (1) बहुत बोलनेवाला । अन- बट्टेबाज़-वि० [हिं० बट्ठा+फा० बाज] (१) नज़रबंद का खेल र्गल प्रलाप करनेवाला । बोलने में उचित अनुचित आदि करनेवाला । जादूगर । (२) धूर्त । चालाक । का ध्यान न रखनेवाला 1 30-का वह पंखि कृट मुँह बठिया-संशा स्त्री० [ देश० ] पाथे हुए सूखे कंडों का ढेर।। फोटे । अस बरबोल जीभ मुख छोटे-जायसी । (२) उपलों का ढेर। बढ़ बढ़ कर बोलनेवाला । शेखी हॉकनेवाला । बठूचना-क्रि० अ० [हिं० बैठना ] बैठना । ( दलाल ) बड़बोला-वि० [हिं० बढ़ा+बोल J बड़ी बड़ी बातें करनेवाला । बठूसना-क्रि० अ० [हिं० बैठना ] बैठना । (दलाल) बढ़ चढ़ कर बर्त करनेवाला । लंबी चौडी हाँकनेवाला । बडंगा-संशा पुं० [हिं० पा+अंग ] लंबा बल्ला जो छाजन के सीटनेवाला।। बीचोबीच लंबाई के बल आधार रूप में रहता है। बँडेरी। बहभाग-वि० दे० "बड़भागी"। बडंगी-संशा पुं० [हिं० बड़ा+अंग ? ] घोड़ा। (हिं.) बड़भागी-वि० [हिं० बड़ा+भागी, सं० भागिन् । बड़े भाग्यवाला। बडंगू-संशा पुं० [ देश. ] दक्षिण का एक जंगली पे जो कोकन, भाग्यवान् । उ.-अहह तात लछिमन बबभागी । राम मलाबार, जावंकोर आदि की ओर बहुत होता है। इसमें पदारविंद अनुरागी। -तुलसी। से एक प्रकार का तेल निकलता है। बड़रा-वि० [हिं० बड़ा+रा (प्रत्य॰)] [स्त्री० बढ़रा ] बहा। बड़-संज्ञा स्त्री० [ अनु० बड़बड़ ] बकवाद । प्रलाप । जैसे, उ.-फेरि चली बदरी अखियान ते छुटि बड़ी बड़ी आँसू पागलों की बड़। की बूंदें । रघुनाथ। संज्ञा पुं० [सं० वट ] बरगद का पेड़। | बड़राना-क्रि० अ० दे. "बर्राना"। यौ०-बड़कौला । बड़बहा। । बड़वा-संज्ञा स्त्री० [सं० ] (१) घोड़ी। (२) अश्विनी रूपधारिणी वि० दे० "बड़ा"। सूर्यपत्नी संज्ञा । (३) अश्विनी नक्षत्र । (४) दासी । (५) बड़का-वि० दे० "बड़ा"। नारी विशेष । (६) वासुदेव की एक परिचारिका । (७) बडवाइयाँ-संज्ञा पुं० [देश० । कच्चा कुआँ । एक नदी । (4) बड़वानि ।। बड़कौला-संवा पुं० [हिं० बड़+कोपल ] बरगद का फल। संशा पुं० [ देश० ] एक प्रकार का धान जो भादों के अंत बड़गुल्ला-संशा पुं० [हिं० बड़+बगुला ] एक प्रकार का बगला। . और कुआर के आरंभ में हो जाता है।। बड्दुमा-संशा पुं० [हिं० बड़ा+फा० दुम ] वह हाथी जिसकी : बड़वाग्नि-संज्ञा पु० [सं०] समुद्राग्नि । समुद्र के भीतर की पूँछ की कैंगनी पाँव तक हो। लंबी बुम का हाथी। आग या ताप । बड़प्पन-संज्ञा पुं० [हिं० बढ़ा+पन ] बड़ाई। श्रेष्ठ या बड़ा होने . विशेष-भूगर्भ के भीतर जो अग्नि है उसी का ताप कहीं का भाव । महत्व । गौरव । जैसे,-तुम्हारा बदन इसी में कहीं समुद्र के जल को भी खौलाता है। कालिकापुराण है कि तुम कुछ मत बोलो। में लिखा है कि काम को भस्म करने के लिए शिव ने जो विशेष-वस्तुओं के विस्तार के संबंध में इस शब्द का प्रयोग क्रोधानल उत्पस किया था उसे ब्रह्मा ने बड़वा या घोड़ी के नहीं होता । इससे केवल पद, मादा, अवस्था आदि की रूप में करके समुद्र के हवाले कर दिया जिसमें लोक की श्रेष्ठता समझी जाती है। रक्षा रहे। पर वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि बद- बड़फनी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बड़ा+फन्नी ] बहुत चौड़ी मठिया।। वाग्नि और्व ऋषि का कोध रूपी तेज है जो कल्पात में बड़यट्टा-संज्ञा पुं० [हिं० बड+बट्टा ] बरगद का फल । फैलकर संसार को भस्म करेगा। बड़बड़-संज्ञा स्त्री॰ [ अनु० ] ८कवाद । व्यर्थ का बोलना। फिज़ल बड़वानल-संक्षा पुं० दे० "बड़वाग्नि"। की बातचीत । प्रलाप । बड़वानलचूर्ण-संज्ञा पुं० [सं०] एक चूर्ण जिसके संवन से क्रि० प्र०—करना ।-मचाना । —लगाना । अजीर्ण का नाश और क्षुधा की वृद्धि होती है। (वैद्यक) बड़बड़ाना-क्रि० अ० [ अनु० बड़बड़ ] (१) बक बक करना। बड़वानलरस-संशा पुं० [सं०] (1) बसवाग्नि । (२) एक