पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१०४

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सटकना ४६२२ सटिया 1 सटकना'-क्रि० अ० [अनु० सट से] धीरे से खिसक जाना। रफू सटर पटर:--मन्चा स्त्री० १ उलझन का काम । बग्रेडे का काम । चक्कर होना ! चल देना। चपत होना। उ०-असुर यह २ व्यर्थ या तुच्छ काम। जैसे,--इमो सटर पटर मे दिन बीत वात तकि गयो रण ते सटकि विपति ज्वर दियो तब शिव जाता है। पठाई । —सूर (शब्द॰) । क्रि० प्र०—करना ।--लगाना । सटकनारे-क्रि० स० वालो मे से अनाज निकालने के लिये उसे कूटने सट सट--क्रि० वि० [अनु०११ सट शब्द के माथ । मटासट । २ की क्रिया । डाँठ कूटना या पोटना । शोत्र । बहुत जल्दो। तुरत । जैसे, -वह मर काम नट मट सटकाना-क्रि० स० [अनु० सट से] १ किसी को छडी, कोडे प्रादि निपटा टालता है। से मारना जिसमे 'सट' शब्द हो। जैसे,-दो कोडे सटकाऊँगा, सटाक--पहा पु० [स० सटाङ्क मिह । शेर । ठाक हो जानोगे। २ सड सड या सट सट शब्द करते हुए सटा-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १ चूडा। शिखा। २ जटा । ३ घोडे पा शेर हुक्का पीना। जैमे,--क्या बैठे सटका रहे हो। के कधे पर के वाल। अयाल । केशर । ८ शूकर का बाल सटकार--सञ्चा स्त्री॰ [अनु० सट] १ सटकाने को क्रिया या भाव । (1.)। ५ केशपाश । वेणो । जूडा (को०)। ६ युनि। २ फटकारने या झटकारने की क्रिया। ३ गौ आदि को दोनि । चमक (लाक्ष०)। ७ बाहुल्य । बहुलता। बहु हॉकने को क्रिया। हटकार । उ.--सारथी पाय रुख दए सख्या (को०)। सटकार हय द्वारकापुरी जब निकट पाई । —सूर (शब्द०)। सटाक-पहा पुं० [अनु॰] सट शब्द । 'सट' को अावाज । सटकारना-क्रि० स० [अनु० सट से] १ पतलो लचोलो छडी या कोडे सटाका-पज्ञा पुं० [अनु०।१ दे० 'सटाकी' । २ दे० 'मटाक' । आदि से किसी को सट से मारना । सट सट मारना । २ सटाका--क्रि० वि० मट से । तुरत । झटपट । झटकारना। फटकारना। सटाकी-पना स्त्री॰ [अनु॰] चमडे को वह रम्मो या पट्टो जो पैना के सटकारा--वि० [अनु॰] चिकना और लवा। (केश, वाल)। उ०-- सिरे पर बाँधो जाती है। छुटे छुटावत जगत ते सटकारे सुकुमार । मन बाँधत बेनो बँध विशेष--पैना बांस का एक पाला छोटा उडा होता है जिसमे हल नील छबीले बार।--स० सप्नक, पृ० १०५। जोतनेवाला या गाडी हाकनेवाला बैल हाँकता है। इम पैना सटकारी--सञ्ज्ञा स्त्री० [स० अनु०] लचनेवालो पतलो छडो । साँटी । को कोडे का आकार देने के निये इममे चमडे को पतलो पतली सटक्का-सञ्ज्ञा पु० [अनु० सट से] १ दे० 'सटका' । २ दौड । झपट । पट्टियाँ वाधते हैं। इन्हो पट्टियों को सटाको कहते हैं। मटाको जैसे,—एक सटक्के मे तो तुम पर पहुँच जायेंगे। और डडा दोनो मिलकर 'पैना' होता है। मुहा०-सटक्का मारना = एक साँस से दौडकर या बहुत जल्दी सटान - प्रज्ञा स्त्री० [हिं० सटना+पान (प्रत्य॰)] १ मटने को क्रिया जल्दी जाना। या माव । मिलान। २ दो वस्नुमा के सटने या मिलने का सटना-त्रि० अ० [सं० म+Vस्था] ' दो चीजो का इस प्रकार एक स्यान । जोड। मे मिलना जिसमे दोनो के एक पाश्म एक दूसरे से लग जायें । जैसे,-दीवार से अलमारी मटना। २ विपकना। जैने,- सटाना--क्रि० स० [म० स+या] १ दो बोजो को एक मे सयुक्त करना । दो चोजा के पाखा को प्रापस मे मिलाना । मिलाना । दफ्ती पर कागज सटना। ३ सभोग होना। (वाजात) । ४ जोडना। ३ लाठी, डडे आदि से लडाई करना। मारपीट लाठी या डडे आदि से मार पोट होना। लाठी सोटा चलना । मार पीट होना । (वदमाश) । ५ साथ होना । मिलना। करना । (बदमाश)। ४ स्त्री और पुरुष का सयोग कराना । सभोग कराना। (बाजारू)। सयो० क्रि० -जाना। सटाय--वि॰ [देश॰] १ (दलाला को परिमापा मे) कम । न्यन । सटपट-सञ्ज्ञा स्त्री० [अनु॰] १ सिपपिटाने को क्रिया। चकपकाहट । २ हलका । घटिया। खराब । उ.-परी खरी सटपट परी, विधु पागे मग हेरि । सग सटाल'-- था पुं० [म०] सिंह । केसरी । शेर बबर । लगे मधुपन लई भागत गलो अँधेरि ।--बिहारो (शब्द॰) । '२ शील । सकोच । ३ सकट । दुविधा । असमजस । सटाल--जिसको गर्दन पर अयाल हो । २ पूण । युक्न 'को॰] । क्रि० प्र०-मे पडना।—मे डालना। सटालु --पञ्चा पुं० [सं०] अपक्व फल । वह कल जो पका न हो को०] । सटपटाना'--क्रि० अ० [अनु०] १ सटपट को ध्वनि होना । २ ३० सटि--पञ्चा ८१० [८०] कन् । शटी। 'सिटपिटाना' । उ०-छुटै न लाज न लालची प्यो लखि नैहर सटिका - पञ्चा जी० [सं०] वन अादी । जगली कचूर । गेह। सटपटात लोचन खरे, भरे सकोच सनेह । -विहारो सटियल-व० [स० स्रस्त] जो रद्दी किस्म का हो। 'घटिया (शब्द॰) । ३ दव जाना । मद या मोन होना। ४ चकपकाना। सटपटाना--त्रि० स० सटपट शब्द उत्पन्न करना। सटिया - मझा श्री० [हिं। सटना] १ सोने या चाँदो को एक प्रकार सटर पटर'--वि०, कि० वि० [अनुव०] १ छोटा मोटा । तुच्छ । की चूडो । २ चादी को एक प्रकार को कलम जिमसे स्त्रियाँ हलका। जैसे,—सटर पटर काम करने से न चलेगा। २ बहुत मांग मे सिंदूर देतो हें। ३ दे० 'साटो'। ४ अभिसधि । गुप्त साधारण । विलकुल मामूली। वार्ता या पडयत्न करना। दरजे का।