पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१०५

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सटी ४६२३ सडसठ । सटो-मज्ञा स्त्री० [म०] वनग्रादी । जगली कचूर सट्टेबाजी - सधा सी० [हिं० सट्टेबाज + ई (प्रत्य॰)] सट्टेबाज का सटीक'-वि० [स०] जिसमे मूल के साथ टीका भी हो । टीका सहित । काम । सट्टा खेलने का काम । व्याच्या महित । जैसे,—सटीक रामायण । सट्वा-सज्ञा पुं० [स०] १ एक प्रकार का पक्षी । २ प्राचीन काल सटीक'-वि० [हि ठीक या स० सटीक बिलकुल ठीक । जैसा चाहिए का एक प्रकार का बाजा। ठीक वैसा ही। जैसे,—यह तसवीर वन तो रही है, - सटीक सठ'--सबा पुं० [सं० पष्टि, प्रा० सठिट, दे० हि० साठ] साठ की सख्या। उतर जाय, तो बात है। दे० 'साठ"। संयो॰ क्रि०-पडना ।-बैठना । सठ-सचा पु० [स० शय] २० 'शठ' । सठई-सज्ञा खी० [हिं० सठ+ई (प्रत्य॰)] शठ होने का भाव । सठता। सटला-सज्ञा पु० । देश०] एक प्रकार का पक्षी। सठता-सज्ञा स्त्री० [स० शठ, हिं० सठ+ता (प्रत्य॰)] १ शठ होने सटोरिया-सज्ञा पु० [हि० मट्टा] सट्टवाज । सट्टा खेलनेवाला । का भाव। शठ का धर्म । शठता । २ मूर्खता । बेवकूफी ।उ०- सट्ट'-मज्ञा पु० [स०] दरवाजे की चौखटे में दोनो ओर की लकडियाँ । जानी राम न कहि सके भरत लखन सिय प्रीति । सो सुनि वाजू। समुझि तुलसी कहत हठ सठता की रीति ।- तुलसी (शब्द॰) । सट्ट-सञ्ज्ञा पु० [हिं० सट्टा] दे० 'सट्टा' । सठि-सना स्त्री॰ [स०] कचूर [को०] । सट्टक-सज्ञा पुं० [स०] १ प्राकृत भाषा मे प्रणीत छोटा रूपक । एक सठियाना-कि० अ० [हिं० साठ+ इयाना (प्रत्य॰)] १ साठ वर्ष उपत्पक । जैसे,-- राजशेख र कृत कर्पूर मजगे हे । २ जीरा की अवस्था को प्राप्त होना। साठ वरस का होना । २ वृद्वा- मिला हुआ मट्ठा। वस्था के कारण बुद्वि तथा विवेकशक्ति का कम हो जाना । सट्टा-सा पु० (देश०। १ वह इकरारनामा जो काश्तकारो मे खेत के साझे आदि के सवध मे होता हे | वटाई। २ वह इकरार- विशेष-इस अर्थ मे इस शब्द का प्रयोग व्यक्ति और बुद्धि दोनो नामा जो दो पक्षो मे कोई निश्चित काम करने या कुछ शर्ते के लिये होता है। जैसे,—(क) उनको वात छोड दो, वे तो पूरी करने के लिये होता है। इकरारनामा । जैसे,-बाजेवालो सठिया गए है । (ख) तुम्हारी तो अक्त सठिया गई है । सयो क्रि०---जाना। को पेशगी रुपया दे दिया, पर उनसे सट्टा नही लिखाया । सट्टा-सज्ञा पु० [हिं० हाट या सट्टी] १ वह स्थान जहाँ लोग वस्तुएँ सठुरो -समा स्त्री० [हिं० सीठी या साठी] गेहूँ या जो प्रादि के डठलो खरीदने वेचने के लिये एकत्र होते है। हाट । बाजार । २ का वह गँठीला अश जिसका भूसा नही होता और जो प्रोसाकर अलग कर दिया जाता है । गठुरी। फॅटा । कूटी। वाजार की तेजी म दी के अनुमान के आधार पर अधिक लाभ को दृष्टि से की हुई खरीदफरोख्त जो एक प्रकार का द्यूत माना सठेरा-सञ्चा पु० [हिं० माँठा] मन का वह इठल जो सन निकल जाने पर बच रहता है । सठा । सरई । सलई। जाता है । दे० 'सट्टेवाज'। यौ०-सट्टा बाजार = वह बाजार जहाँ मट्ट का काम होता है । सठोरा-सज्ञा पुं० [हिं० सोठ + पोरा (प्रत्य॰)] दे० 'सोठीरा' । सट्टेवाज। सठ्ठो-पञ्चा पुं० [हिं०] ऊँट । क्रमेलक । सट्टा - ३.--सज्ञा स्त्री० [स०] १. एक प्रकार का पक्षी । २ वाजा । सड'-सशा पुं०, मी० [अनु॰] दे० 'सडाक' । सट्टा वट्टा-सज्ञा पुं० [हिं० सटना + अनु० बट्टा] १ मेल मिलाप । हेल सडा-सज्ञा पु० [स० सप्न] सात । मात को सख्या। समस्त शब्दो मेल । २ मिद्वि के लिये की हुई धर्ततापूर्ण युक्ति । चालबाजी । मे पूर्व पद के रूा मे प्रयुक्त । जैसे, मडसठ। मुहा०-सट्टा वट्टा लडाना = अपना कार्य सिद्ध करने के लिये सडक-सज्ञा स्त्री० [अ० शरक] १ आने जाने का चौडा रास्ता । किसी प्रकार की युक्ति करना । राजमार्ग । राजपथ । २ रास्ता । मार्ग। सट्टी--सज्ञा स्त्री० [हि० हाट या हट्टी] वह बाजार जिममे एक ही मेल सड़क्का-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० मटक्का] २० 'मटक्का'। को बहुत सी चीजें लोग दूर दूर से लाकर वेचते हो। हाट । जैसे,-तरकारी की सट्टी, पान की मट्टी। सडन-मज्ञा स्त्री० [हिं० सडना] मटने की क्रिया या माव । गलन । मुहा०-मट्टी मचाना = ऐसा शोर करना जैमा मट्टी मे होता सड़ना-क्रि० अ० [५० मरण] १ किमी पदार्थ मे ऐमा विकार होना जिससे उसके सयोजक तत्व या अग विलन अलग अलग हो है। बहुत से लोगो का मिलकर जोर जोर से बोलना । जैसे,- पडितजी के दरजे मे तो लडको ने सट्टी मचा रखी है। जायँ, उममे से दुर्गंध आने लगे और वह काम के योग्य न रह सट्टी लगाना = बहुत सी चीजे इधर उधर फैला देना। जाय । जैसे,-उगलो सदना, फल मडना। २ किसी पदार्थ मे खमीर उठना या याना। जैसे,—तुमने यहाँ किनाबो की सट्टी लगा रखी है। सट्टेबाज- संयो॰ क्रि०-जाना। 1-सञ्चा पुं० [हिं० मट्टा+फा० वाज (प्रत्य॰)] वह आदमी जो अधिक लाभ की दृष्टि से बाजार मे क्रय विक्रय करें। सट्टा ३ दुर्दशा मे पड़ा रहना। बहुत बुरी हालत में रहना । जैसे- खेलनेवाला। रियासतो मे लोग वरमो तक जेलखाने मे यो ही मडते है। विशेष-यह व्यापारियो का एक प्रकार का जुया है। कभी कभी सड़सठ-सज्ञा पु० [हिं० सड (मान का स्प) + माठ] मार और मात लाभ के स्थान पर व्यापारी इसमे अपना सर्वस्व गँवा देता है। की सख्या जो इस प्रकार लिखी जाती है-६७ । 1 -