पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सडसठ ४६२४ सततयुक्त सडना। वाला। सडसठ-वि० जो गिनती मे माठ से मात अधिक हो । ८ शुद्ध । पवित्र । ६ श्रेष्ठ । उत्तम। अच्छा। भला । १० सड़सठवाँ-वि० [हि० सडमट + वाँ (प्रत्य॰)] गिनती मे सडमठ के वर्तमान । विद्यमान (को०)। ११ ठीक । उचित (को०)। १२ स्थान पर पड़नेवाला। मनोहर । मुदर (को०) । १३ दृढ । स्थिर (को०) । सडसी-सशा स्त्री० [हिं० सँडसी] दे० 'सेंडसो' । सत'-नि० [हिं०] ' 'मत्' । सडा-सक्षा पुं० [हिं० सडना] वह औषध जो गौग्रो को बच्चा होने के सत-पञ्चा पुं० [म० मत] सत्यतापूर्ण धर्म । समय पिलाते है। प्राय यह प्रौपध सडाकर बनाते हैं, इसी से मुहा०-मत पर चढ़ना = पति के मृत शरीर के माथ मती होना। इसे सडा कहते है। मत पर रहना = पतिवना रहना । मती रहना । सडाइँद-सज्ञा स्त्री० हिं० सडना + गव) दे० 'मडायच' । सत-वि० [सं० शत] " 'शत' । सडाक -सज्ञा पुं०, प्री० [अनु॰ 'सड' मे] १ कोडे आदि की फटकार सत'-- ज्ञा पु० [सं० मन्त्र] १ किमो पदार्थ का मन तत्व । मार भाग । की आवाज जो प्राय मड के समान होती है। २ शीघ्रता । जैसे-मुलेठो का मन । २ जोवनो गति । ताकन । जमे, - जल्दी । जैसे, -सडाक से चले जागो और चले आओ। चार दिन के बुखार में शरीर का मारा सन निकन गया। सडान-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० सडना) सडने का व्यापार या क्रिया। सत'- वि० [सं० मन] १ 'मान' (मध्या) का मक्षिप्त रूप जिमका व्यवहार योगिक शब्द बनाने में होता है। जमे,-मनमजिला । सडाना-क्रि० स० [हि० सडना का सक० रूप] १ मडना का सकर्मक सतकार प-मशा पुं० [स० मत्कार] दे० 'मत्कार । स्प। किसी वस्तु को सडने मे प्रवृत करना । किसी पदार्थ मे सतकारना पु-कि० स० [सं० सत्कार + हिं० ना (प्रत्य०)] सत्कार ऐसा विकार उत्पन्न करना कि उसके अवयव गलने लगे और करना । आदर करना। सम्मान करना । इज्जन करना । उसमे से दुर्गंध अाने लगे। जैसे,—(क) सव ग्राम तुमने रखे उ०-(क) गुरु को जेठो वधु विचारयो। करि प्रणाम अति- रखे महा डाले। (ख) महुए को सडाकर शराब बनाई जाती शय मतकाग्यो। (ब) गजा कियो ताहि परनामा। सादर है। २ किसी वस्तु को बुरी दशा मे रखना अथवा उसका सतकारयो मति धामा।-रघुगज (शब्द०)। उपयोग न करना, न करने देना । सतकोन-वि० [हिं० सात+कोना] जिममे सात कोने हो । सात कोतो सयो० क्रि०-डालना।-देना । सडायँध - सज्ञा पी० [हिं० सडना + गध] सडी हुई चीज को गध । सतगंठिया-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० सात+गांठ] एक प्रकार को वनस्पति सडाव-सहा पुं० [हिं० सडना + प्राव (प्रत्य॰)] सडने की क्रिया या जिमको तरकारी बनाई जाती है। सतगुरु-मज्ञा पुं० हिं० मत (= मच्चा) + गुरु या स० सद्गुरु] १ सडासड-अव्य० [अन् ० 'सड' से] सड शब्द के स थ । जिसने सडसड अच्छा गुर । २ परमात्मा परमेश्वर । शब्द हो। जैसे,-चोर पर सडामड कोडे पड़ने लगे। सतजीत-TET पुं० [सं० मन्यजित्] 'मत्यजित्'। सडियल-वि० [हिं० सडना + इयल (प्रत्य॰)] १ सडा हुमा । गला सतजुग -सहा पु० [मे० सत्ययुग। दे० 'सत्ययुग' । हुआ। २ निकम्मा। रद्दी। खराब । ३ नीच । तुच्छ । जैसे,- सतत-प्रव्य० [सं० । निन्तर । मदा । सर्वदा। हमेशा । वरावर । सडियल आदमी सडियल एक्का . सडियल तसवोर। सततक-वि० [म०J (ज्वर) जो दिन भर मे दो बार चढता हो [को०] । सढ--सच्चा पु० [दश०] वैश्यो की एक जाति । सततग-मषा पु० [सं०1१ वह जो मदा चलता रहता हो। २ पवन । सए-मचा पुं० [स० शण) दे० 'सन' । वायु । हवा। सततगति-पचा पुं० [सं०1 वायु । हवा । सएगारg+--सज्ञा पुं० [म० शृङ्गार] शृगार । सजावट । (डिं.)। सततज्वर-मबा पुं० [स०] वह ज्वर जो दिन में दो वार आवे, या सणतूल --सचा पुं० [स०] सन का रेशा । शरणततु । कभी दिन मे एक वार और फिर रात को भी एक बार पावे । सणसूत्र सज्ञा पुं॰ [म०] दे० 'शणसूत्र' । द्विकालिक विषम ज्वर । सएि-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [म.] गाय के श्वास को गध (को०) । सततदुर्गत -वि० [स०। निरतर बुरी अवस्थावाला। जो सदा कष्ट सतद्र - वि० [स० सतन्द्र] तद्रायुक्त । क्लात । थका हुआ [को॰] । मे रहे किो०)। सत्'-सधा पुं० [स०] १ ब्रह्म। २. वह जो वस्तुन विद्यमान हो। सततवृति -वि० [स०] निरनर धैर्यशील रहनेवाला । जो सर्वदा दृद्ध अस्तित्व सत्ता (पो०) । ३ सचाई। वास्तविकता (को०)। सकल्प युक्त हो [को॰] । ४ भद्र पुरुप । सद्गुणो व्यक्ति (को०)। ५ जल (वेद) । मततपरिग्रह-अ० [म.] निरतर [को०] । ६ कारण (को०)। सततयायी-वि० सं० मततयायिन्। १ निरतर गतिशील । २ निरतर सत्'-वि०१ सत्य । २ माबु । सज्जन । ३ धीर। ४ नित्य । क्षयालु या क्षयशील को। स्थायी। ५ विद्वान् । प'डत । ६ मान्य । पूज्य । ७ प्रशस्त । सततयुक्त -वि० [स०] सदा तत्पर । सतत अनुरक्त या परायण [को०] । भाव । सडना। To