पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१०७

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सतत समिताभियुक्त ४६२५ सतर' सतत समिताभियुक्त--ता पु० [म०] एक बोधिसत्व का नाम | सतफेरा-मा पु० [हि० नात+ फेरा] विवाह के समर होनेवाला मतत स्पदन-वि॰ [म० सततस्पन्दन] नित्य स्पदनशील । मनपदी नामक कर्म। विशेप दे० 'मप्नपदी'। उ०-~फिरहि दोउ मनफेर गुने है। सातहि फेर गाँठ मो एके ।-जायमी मतताभियोग--सज्ञा पुं० [मं०] किमी न किमी कार्य में सदैव लगा (शब्द०)। रहना चिो०)। सतति-वि० सी० | स०] जो सदा चला करे या विच्छिन्न न हो । सतवरवा -मशा ई० म० गतपर्व ( = वस)] एक प्रकार का वृक्ष जो नेपाल में होता और निमने नेपाली कागज बनाया जाता है। सतत्व--सक्षा पु० [स०] स्वभाव । प्रकृति । सतदत--ससा पुं० [हिं० सात+दाँत] [वि० मतदता] वह पश् सतभइया-भज्ञा चो० [१० मात + भाई] एक प्रकार की मैना (पक्षी) जिमके जिने पेगिया मैना भी कहते है। सात दांत हो गए हो। विगेप-मको लवाई प्राय. एक बालिश्त होती है। मका विशेप--प्राय पशुप्रो को पूरे दान निकल पाने के पूर्व उनके दाँतो रग पीलापन लिए भूरा होता है। इसके पैर और पजे पीले की सय्या के अनुसार पुकारते है । जैसे, दुदता, चौदता, सतदता होते है । ऋतुभेदानुसार यह रग वदनती है। यह मुड मे आदि शब्द रमश दो, चार और सात दांतोवाले बछडे के लिये रहती हे और छोटे, घने वृक्षो या झाडियो मे घोसला बनाती प्रयुक्त होते है। है। यह एक बार मे प्राय तोन अटे देती है। यह बहुत शोर सतदल-सन्ना पुं० [स० शतदल] १ कमल । २ सौ दलो या करती है। कहते है कि कोयल प्राय अपने अडे सी के पंखुडियोवाला कमल | घोसले मे रखती है। सतध्रत-सशा पु० [स० शतधृत] ब्रह्मा । (दि०)। सतभाव-मझा पं० [मं० मद्भाव] १ सद्भाव । अच्छा भाव । २ यौ०-सतध्रत सुत = नारदमुनि । सरलता । सीवापन। ३. सच्चापन | सचाइ । सतन-सज्ञा पु० [स०] एक प्रकार का लाल चदन जिमको गध भूमि सतभौरो-सज्ञा स्त्री० [स० सप्त भ्रमण] हिंदुनो मे विवाह के समय या मिट्टी के समान होती है ।को०] । की एक रोति । इममे वर और वध को अग्नि की सात वार सतनजा-सज्ञा पुं० [हि० सात+अनाज] सात भिन्न प्रकार के अन्नो प्रदक्षिणा करनी पड़ती है। इसे 'भौरी पडना' भी कहते है। का मेल । वह मिश्रण जिसमे सात भिन्न भिन्न प्रकार के सतमख-सज्ञा पुं० [स० शतमख] जिमने १०० यज्ञ किए हो । शतऋतु । अनाज हो। इद्र (डि०)। सतनी --सज्ञा स्त्री० [स० सप्तपर्ण] १ सप्तपर्ण वृक्ष । सतिवन । सतमसा-मुज्ञा सी० [स०] मार्कंडेय पुराण के अनुसार एक नदी छतिवन । २ एक प्रकार का बहुत ऊँचा वृक्ष । का नाम। विशेप-इस वृक्ष की छाल का रंग कालापन लिए होता है। और लकडी सदूक आदि बनाने के काम मे आती है। यह सतमस्क -वि० [स०] अवकारयुक्त । तममाच्छन्न (फो। बगाल, दक्षिण भारत और हिमालय मे अधिकता से पाया सतमासा-मज्ञा पुं० [हि० सात + मास] १ मात मान पर उत्पन्न जाता है। शिशु । वह बच्चा जो गर्भ मे सातवे महीने उत्पन्न हुआ हो । सतनु-वि० [40] जिसे तन हो । शरीरवाला । (ऐसा दना प्राय. बहुत रोगी और दुबना होता है और जल्दी सतपतिया'--सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० मत पुतिया] दे० 'मतपुतिया' । जोता नहीं) । २ वह रमम जो शिशु के गर्भ में आने पर सातवे महीने की जाती है। सतपतिया --राज्ञा स्त्री० [हिं० सात+पति] १ वह स्त्री जिमने मात पति किए हो । २ पश्वनी । घ्निाल । सतमूली-स्या सी० [स० शतमूली] सतावर । शतावरी । सतपदी--सज्ञा मी० [सं० सप्तपदी] दे० 'सप्तपदो' । सतयुग-मशा पु० [म० सत्ययुग] ६० 'मन्ययुग' । सतपरबा-सज्ञा पुं० [स० शतपर्वा] १ शतपर्वा । वाम । २ ऊय । सतरग-वि० [हिं० मनरगा दे० 'मतरगा'। सतरगा'-पि० [हिं० मात+रग] जिममे सात रग हो। मात रगो मतपात-सज्ञा पु० [स० शतपत्न, प्रा० मतपत्त] गतपन । कमल । वाना । जैसे-सतरगा माफा, नतरगी साडी। सतपुतिया [-सग सो० [स० सप्नपुत्रिका] एक प्रकार को तोरई जो सतरगा---गधा ० द्रधनुप जिममे नात रग होते है । प्राय मय प्रातो मे होती है। सतरज-मग सी० [अ० शतरज या म० चतुरन] दे० 'शतरज'। विशेप-इमके बोने का समय वर्षा ऋतु है। इसको लता भूमि उ.-सतरज को मो राज काठ को नरममाज महाराज वाजी पर फैननो ह या मॅट पर नहाई जाती है। इसके फन माधारण रचो प्रथमन हनि । - तुनसी (गन्द०)। तोरई मे कुछ छोटे होते है और पांच, मात या कभी कभी इससे सतरजो-सज्ञा स्त्री॰ [फा० शतरजो] २० 'जतरजी'। भो अधिक सय्या मे एक माय गुच्छो मे लगते है । सतर'-सा पी० [अ०] १ लकीर । रेया। सतपुरिया-सज्ञा पी० [हिं०] एक प्रकार को जगली मधुमक्यो । क्रि० प्र०-जीचना। हि २०-१०-१२ गन्ना।