पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१५१

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रामाज सन्निवेशन ४६६६ समाधि समाज सनिवेशन-सन्ना पुं० [म०] समाज या जनसमूह के बैठने के उपयुक्त स्थान । समाजसेवक-वि० [म० ममाज + सेवक] समाज की सेवा करनेवाला। समाजसेवा-मज्ञा स्त्री० । स० समाज + सेवा] वह सेवा जो सामाजिक हित की दृष्टि मे की जाय । समाजसेवी--सझा पु० [स० समाजसे विन्] दे० 'समाजसेवक' । समाजिक--सज्ञा पु० [सं०] दे० 'सामाजिक' [को० । समाजो-सज्ञा पुं० [हिं० समाज+ ई(प्रत्य॰)]१. वह व्यक्ति जो वेश्यानो के यहाँ तवला, सारगी आदि वजाता है । सपरदाई । २ किसी समाज का अनुयायी (विशेषत पार्यसमाज का)। जैसे-ग्रार्य- समाजी । ३ वह व्यक्ति जो सामाजिक हो । समाज्ञप्त-वि० [स०] जिसे आदेश दिया गया हो (को०] । समाज्ञा-सज्ञा स्त्री० [स०] १ यश । कीति । बडाई । २ पाया। सना । नाम (को। समाज्ञ त-वि० [स०] १ भली भांति जाना हुआ। पूर्णत ज्ञात । २ मान्य । माना हुआ। समातत--वि० [सं०] १ जिसका सिलसिला टूटा न हो। लगातार ऋमवाना । २ जिसे फैला दिया गया हो । पूर्णत विस्तारित । ३ आकृष्ट । खीचा या ताना हुआ । जसे-धनुष किो० । समाता -सज्ञा स्त्री० [स० समातृ] १ वह जो माता के समान हो । २ माता की विपत्नी । विमाता । सौतेली मां। समातीत-वि० [स०] एक वर्ष से अधिक आयु का। जो एक वर्ष पूरा कर चुका हो (को०) । समातृक-वि० [स०] मातासहित । माता के साथ | मातृयुक्त को०] । समादत्त-वि० [स०] प्राप्त । गृहीत । जिसे ले लिया गया हो ।को०] । समादर-सक्षा पुं० [सं०] अादर । समान । खातिर । समादरणीय - वि० [स०] समादार करने के योग्य । प्रादर सत्कार करने के लायक । समादान'-मञ्ज्ञा पु० [सं०] १ बौद्वो का सौगताह्निक नामक नित्य कर्म । २ ग्रहण किए हुए व्रतो या प्राचारो की उपेक्षा ( जैन ) । ३ पूर्णत स्वीकार या ग्रहण (को०)। ४ उचित दान स्वीकार करना। उपयुक्त उपहार लेना (को०' । ५ निश्चय । सकल्प (को०) । ६ प्रारभ । प्रारम (को०) । समादान'-सज्ञा पु० [फा० शमादान] दे० 'शमादान' । समादापक वि० [स०] उत्तेजक । विक्षोभक |को०] । समादापन-सज्ञा पुं० [स०] उकसावा । वढावा । उत्तेजन [को०] । समादिष्ट-वि० [स०] अादिष्ट । आज्ञप्त । निर्दिष्ट [को०। समादृत-वि० [सं०] जिसका अच्छी तरह आदर हुआ हो । समानित । समादेय-वि० [सं०] १ आदर या प्रतिष्ठा करने योग्य । २ स्वागत या अभ्यर्थना करने योग्य । ३ गहण या स्वीकरण योग्य (को०)। समादेश-सा पुं० [मं०] प्राज्ञा । आदेश । हुकुम । यौ०-समादेश याचिका - (राजाज्ञा प्राप्त करने के लिये) प्रार्थना पत्र (अ० रिट अनिकेशन)। समाधा-सज्ञा पुं० [म०] १ निराकरण । निपटाग। २ विरोध करना । ३ मिद्धात । ८ +0 'मगावान' । समाधान-ज्ञा पुं० [म०, वि० ममावानीय] १ चित्त को मय पोर से हटाकर ब्रह्म की प्रार नगाना । मन को एकाग्र करक ब्रह्म मे लगाना । ममाधि। प्रणिधान। २ किसी के शका या प्रश्न करने पर दिया जानेवाला वह उत्तर जिसमे जिनामु या प्रश्न- कर्ता का सतोप हो जाय । पिसी के मन का मदेह दूर करने- वाली बात । ३ इस प्रकार कोई वान वार किमी को सतुष्ट करने की किया। ४ किमी प्रकार का विरोध दूर करना। ५ निप्पत्ति । निराकरण । ६ नियम । ७ तपस्या । ८ अनुमधान । अन्वेपण । ६ धान । १० मत की पुष्टि। सहमति । समर्थन । ११ मिलाना। मेल बैठाना । माय रखना (को०)। १२ उत्सुकता। औत्सुक्य ने १३ मन की स्थिरता। मन म्यैर्य (को०)। १४ नाटक की मुखमधि के उपक्षेप, परिकर यादि १२ अगो में से एक अग। बीज को ऐसे रूप मे पुन प्रदणित करना जिमसे नायक प्रयवा नायिका का अभिमत प्रतीत हो। समाधानना-क्रि० स० [स० समाधान + हि० ना (प्रत्य॰)] समाधान करना । मतोप देना । सात्वना प्रदान करना । समाध'-मा स्त्री॰ [स०] १ ममर्थन । २ नियम । ३ ग्रहण करना । अगीकार । ४ ध्यान । ५ यारोप, ६ प्रतिज्ञा। ७ प्रतिशोध । बदला। ८ विवाद का अत करना। झगडा मिटाना। ६. कोई अमभव या असाव्य काय करने के लिये उद्योग करना। कठिनाइया मे बैर्य के साय उद्योग करना । १० चुप रहना । मौन । ११ निद्रा । नीद । १२ योग । १३ योग का चरम फल, जो योग के पाठ अगो मे से अतिम अग है और जिसकी प्राप्ति सवके अत मे होती है। विशेष-इम अवस्था मे मनुष्य सब प्रकार के कनेशो मे मुक्त हो जाता है, चित्त की सब वृत्तियाँ नष्ट हो जाती है, बाह्य जगत् से उमका कोई सबब नहीं रहता उने अनेक प्रकार की शक्तियां प्राप्त हो जाती है और प्रत मे गवत्य की प्राप्ति होती है। योग दर्शन में इस समाधि के चार भेद बतलाए है-मप्रज्ञात ममावि, सवितर्क ममावि, मविनार नमाधि पोर मानद समाधि। समाधि की अवस्था में लोग प्राय पद्मामन लगाकर और आंखे बद करके बैठते है, उनके शरीर में रिसी प्रकार की गति नहीं होती, और ब्रह्म में उनका अवस्थान हो जाता है। विशेष दे० 'योग' ३६ और ३८1 क्रि०प्र०--लगना |--लगाना । १४ किसी मृत व्यक्ति की अस्थियाँ पा शव जमीन में गाडना । क्रि० प्र०-देना। १५ वह स्थान जहा इस प्रकार गव या अस्थियां यादि गादी गई हा। छतरी। १६ काव्य का एक गुरण जिनके द्वारा दो घटनाओं का देवगयोग मे एक ही नमय में होना प्रकट होता है और जिसमे एक हो निया का दोनो कर्तात्रा के साथ अन्वय