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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१६१

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समुंद ४९७९ समुच्छित समुद-मज्ञा पुं० [स० समुद्र] समुद्र । वह जहाँ अाश्चर्य, हर्प, विषाद आदि बहुत से पावो के एक समदन-- सधा पुं० [स० समुन्दन] १ गीलापन । सीलन । तरी। २ पूरी साथ उदित होने का वर्णन हो। जैसे,-हे हरि तुम विनु तरह पार्द्र या तर होना [को०] । राधिका सेज परी अकुलाति । तरफराति, तमकति, तचति, सुसकति, सूखी जाति । दूमरा वह जहाँ किसी एक ही कार्य के समुदर-सज्ञा पु० [स० समुद्र] दे॰ 'समुद्र' । लिये बहुत से कारणो का वर्णन हो। जैसे,गा गीता गायत्री समुदरफल-सज्ञा पुं० [हिं० समु दर+फल] मझोले आकार का एक गनपति गरुड गोपाल । प्रात काल जे नर भजते न परै भव- प्रकार का वृक्ष । इजर। जाल । ४ वाक्य या शब्दो का समाहार । शब्दो का परस्पर विशेष-यह वृक्ष म्हेलखंड और अवध के जगलो मे झरनो के मिलन या योग (को०)। ५ कौटिल्य के मत से वह आपत्ति किनारे और नम जमीन पर होता है। बंगाल मे भी यह जिसमे यह निश्चय हो कि इस उपाय के अतिरिक्त और उपायो अधिकता से होता है और दक्षिण भारत मे लका तक पाया से भी काम हो सकता है। जाता है। कही कही लोग इसे शोभा के लिये वागो मे भी समुच्चयन-सज्ञा पु० [स०] बहुत सी चीजो का एक मे समाहार लगाते हैं । इसकी लकडी से प्राय नावे वनती है । औपध मे करना । एकत्र करना [को०] । भी इसकी पत्तियो और छाल आदि का व्यवहार होता है। समुच्चयालकार-सज्ञा पुं० [स० समुच्चयालवार समुच्चय नामक समुदरफूल-सज्ञा पु० [हिं० समु दर + फूल] एक प्रकार का विधारा । अलकार । दे० 'समुच्चय-३ वृद्धदारुक। समुच्चयोपमा--सज्ञा स्त्री॰ [स०] समुच्चयालकार से बनी उपमा [को०] । विशेष-वैद्यक के अनुसार यह मधुर, कसला, शीतल और कफ, समुच्चर-सज्ञा पुं० [म.] १ एक साथ पाना जाना। २ ऊपर की पित्त तथा रुधिरविकार को दूर करनेवाला और गभिरणी को पोर उठना या चढना । पारोह । ३ लाँघ जाना। पार हो पीडा हटनेवाला होता है। जाना (को०] । समुदरसोख - सज्ञा पुं० [हिं० सम दर+ मोखना] एक प्रकार का क्षुप जो प्राय सारे भारत मे थोडा बहुत पाया जाता है। समुच्चार-सञ्ज्ञा पु० [म०] १ स्पष्ट वेलना । उच्चारण करना । २ विसर्जन । त्याग (को०)। विशेष-समु दरसोख के पत्ते तीन चार अगुल लवे, अडाकार और नुकीले होते है । इसकी डालियो के अंत में छोटे छोटे वीज समुच्चित-वि० [सं०] १. ढेर लगाया हुआ। राशि के रूप मे रखा हुआ। २ एकत्र किया हुआ । जमा किया हुआ । सगृहीत । ३ होते हैं । वैद्यक मे यह वातकारक, मलरोधक, पित्तकारक तथा क्रम से लगाया हुना (को०)। कफकारक कहा गया है। समुच्छन्न-वि० [स०1१ खुला हुग्रा । नग्न । अनावृत। २ उद्ध्वस्त । समुक्त-वि० [स०] १ जिसे कहा गया हो। उक्त । कथित । २ विनष्ट । तितर वितर किया हुआ [को०] । जिसकी लानत मलामत की गई हो। तिरस्कृत । भत्सित । निदित [को०] 1 समुच्छित्ति-सज्ञा स्त्री० [स०] १. पूर्णत उच्छेद या उत्पाटन २. ध्वस । नाश । वरवादी। समुक्षण-सज्ञा पुं० [स०] १ सोचने या जल ग्रादि छिडकने की क्रिया। तरबतर करना । २ नांखना । ढुलकाना । गिराना [को०] । समुच्छिन्न-वि० [स०] १ जड से उखाडा हुआ या उत्पाटित । पूर्णत नष्ट या वर्वाद किया हुया । २ तार तार । फटा हुआ (को०] । समुक्षित-वि० [स०] १ अच्छी तरह छिडका या सीचा हुआ । तर यौ०-समुच्छिन्न वासन = (१) जिसके वस्त्र फटे हुए या उच्छिन्न किया हुअा। २ जिसे उत्तेजना या बढावा दिया गया हो। उत्साहित [को॰] । हो। (२) जिसकी वामना या भ्रम दूर हो गया हो। समुख'–सशा ४० [म०] वह जो अच्छी तरह बातें करना जानता हो। समुच्छेद-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ जड से उखाडना । उन्मूलन । २ ध्वस । वाग्मी । वाक्पटु । नाश । वरवादी। समुख-वि०१ भापणपटु । २ वकवादी । वातूनी। ३ मुखवाला। समुच्छेदन -मज्ञा पुं० [१०] १ जड से उखाडना । २ नष्ट करना । वरवाद करना। मुख-युक्त (को०] । समुचित-वि० [सं०] १ यथेष्ट । उचित । योग्य । ठीक । वाजिब । समुच्छ्रय-पञ्चा पु० [स०] १ उत्तु गता । ऊँचाई । २ वैर । विरोध । २ जैसा चाहिए, वैसा । उपयुक्त । जैमे,अापने उनकी बातो शत्रुता । ३ सग्रह । सचय । ढेर | ४ युद्ध । लडाई। ५ पहाड । का समुचित उत्तर दिया। ३ जो रुचि या विचार के अनुकूल ६. वृद्धि । विकाम । ७ जन्म । (बौद्ध)। ८ ऊपर हो। जो पसद हो। उठना । उत्थान । ६ उच्च पद [फोला । समुच्च-वि० [स०] जो बहुत ऊँचा हो को०] । समुच्छाय--स० पुं० [स०] १ ऊँचाई। उच्चता। २ उन्नति । उत्थान । ३ बढती । वृद्धि (को०] । समुच्चय-सज्ञा पु० [स०] १ बहुत सी चीजो का एक मे मिलना। समाहार । मिलन । २ समूह । राशि । ढेर। ३ साहित्य मे समुच्छ्रित--वि० [स०] १ ऊँचा । उन्नत । उन हमा। २ शक्तिशाली। एक प्रकार का अलकार जिसके दो भेद माने गए है। एक तो ३ लहरे लेता हुआ। ४ ऊपर क्यिा या उठाया हुआ [को०] | । पर्वत ।