पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१६२

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२ समुच्छ्रिति ४९८० समुत्सुक समुच्छ्रिति-सज्ञा श्री० [२०] उन्ननि । वदती । वृद्धि [को०] । समुत्थान-पन्ना पु० [मं०] १ उठने क त्रिया। २ उत्पत्ति। ३ प्रारभ । ४ रोग का निदान या निर्णय । ५ पुनर्जीवन प्राप्त समुच्छ्वसित-सज्ञा पुं॰ [स०] १ वह जिमने ग नीर एवम् दीर्घ श्वास छोडा हो । २ गहरी माँम पिरो०] । करना । जीवित होकर पुन उठना । रोग का पूरी तरह शात होना। ६ पारयम । उद्यम । उद्योग (को०)। ७ वृद्धि । समुच्छ्वास - मज्ञा पुं॰ [म०] दोर्घ चाम । लपी सांस |को०] । विकास (को०)। ८ उत्तोलन। फहराना। जैसे,-ध्वजा, समुज्ज्वल - वि० [म०] बूब उज्ज्वल । चमकता हुग्रा । पताका (को०)। ६ (नामि का) उमडना । फूलना (को०)। समुज्ज भए-सहा पु० [स० समुज्जम्भण] १ जॅभाई लेना। ममुत्थापक वि० [स०] जगाने या उठानेवाला । उत्थापन करने- ऊपर की ओर बढना । निकलना । ३ प्रयत्न करना [को०] । वाला (को०। समुज्झित'--वि० [म०] १ छोडा हुआ । परित्यक्त । २ गया हुआ । समुत्थित--वि० [१०] १ एक साथ उठा हुआ । जैसे,—ममुत्थित ३ मुक्त को०] । धूलि । २ अत्यत ऊंचा । जैसे,-समुचित शैल शिखर । ३ समुज्झित-सज्ञा पुं० परित्याग [को०] । एकत्रित । घनीभूत । जैसे,-बादल । ४ उद्यत । प्रस्तुत । समुझg--सज्ञा स्त्री० [हिं० समझ] दे० 'समझ' । ५ जो फूला या मूज पाया हो। ६ जो स्वास्थ्यलाभ कर विशेष-2मके यौगिक और नियाग्रो आदि के लिये दे० समझ' चुका हो । ७ उत्पन्न । जात । उद् भूत (को०] । शब्द के यौगिक और क्रियाएँ । समुत्पतन -सञ्ज्ञा पु० [स०] १ उडना । ऊपर उठना । २ प्रयत्न । समझना-क्रि० अ० [स० सम्यक् जान) दे० 'समझना'। उ०- कोशिश । चेष्टा [को०] । जाको बालविनोद समझि ज्यि डरत दिवाकर भोर को। समुत्पत्ति--सञ्ज्ञा स्त्री० [म०] १ उत्पत्ति । पैदाइश । २. जड । मृल --तुलसी ग्र० । ३ होना । घटित होना किो०] । समझनिg---मज्ञा स्त्री० [हिं० समझना] समझने की क्रिया या भाव । समुझाना--क्रि० स० [हि समझना] दे० 'ममझाना'। उ०--पुनि समुत्पन्न-वि० [स०] उत्पन्न । उद् त । घटित [को० । रघुपति बहु विधि समुझाए। लै पादुका अवधपुर पाए । समुत्परिवनिम-सपा पु० [स०] कौटिल्य के अनुसार वेचे हुए पदार्थों -मानस, ७१६५। मे चालाकी से दूसरा पदार्थ मिला देना (को०] । प्रगुत्कटकित--वि० [स० समुत्वण्ट कित] जिसके रोएँ खडे हो गए समुत्पाट-सक्षा पुं० [स०] १ उत्पाटन। उन्मूलन । २ अलगाव । हो। रोमहर्प ने युक्त। पृथक्करण को समुत्कठा--सज्ञा स्त्री० [स० समुत्कण्ठा] तीव्र इच्छा । गहरी चाह समुत्पात-सज्ञा पुं० [सं०] सकट की सूचना देनेवाला उपद्रव [को०] । या लालमा [को०)। समुत्पादन-गमा पु० [म०] उत्पादन करना । उत्पन्न करना। पैदा समुत्क-वि० [स०] अत्यत उत्सुक । लालायित (को०] । करना को। समुत्कट-वि० [म०] १ उत्तु ग । उन्नत । ऊँचा। समपिज'--वि० [स० ममुत्पिञ्ज] अत्यत घबराया हुअा [को०] । अत्यधिक । प्रगाढ । ३ महान् । गौरवयुक्त । ४ अत्यधिक। समुत्पिज'-मन्ना पु० १ इतस्तत अस्तव्यस्त या तितर बितर हुई सेना । अनगिनत [को०] । २ भारी अव्यवस्था [को०] । समुत्कर्ष--सज्ञा पु० [म०] १ अात्म उन्नति । अपना उत्कर्ष । अपनी समुत्पिजल, समुत्पिजलक-वि०, महा पुं० [म० समत्पिञ्जल, समु- सपन्नता या वृद्धि। २ गौरव । ३ (आभूपण आदि) उतार त्पिञ्जलक] दे॰ 'समुत्पिज' [को०] । कर एक ओर रख देना [को०] । समुत्पुसन-सञ्ज्ञा पु० [म०] अपनयन । दूरीकरण [को० । समुत्कीएं-वि० [स०] १ भली भाँति उत्कीर्ण । २ छेदा हुआ। ममुत्सन्न--वि० [स०] पूरी तौर से उच्छिन्न । विनष्ट । ध्वस्त (को०] । छिद्रित (को०] । समुत्सर्ग-मज्ञा पु० [स०] १ छोडना । त्याग। २ देना । प्रदान समुत्क्रम-सज्ञा पु० [म०] १ ऊपर उठना। २ प्रतिवव को न करना । ३ मल त्याग । ४ उत्सर्ग करना। निर्गमन । जैसे,- मानना । सीमा का अतिक्रमण । हद पार करना [को०] । पुवीर्य [को०] । समुत्क्रोश-संशा पु० [स०] १ कुरर नाम का पक्षी। २ जोर से समुत्सर्पण- --मज्ञा पुं० [स०] आगे बढना । अग्रसरण (को०] । चिल्लाना (को०) । ३ भारी कोनाहल (को०)। समुत्सव--सप्पा पु० [स०] वृहत् उत्सव । बडा जलसा (को०] । समुत्तेजक-वि० [म०] उत्तेजना करनेवाला । जो उत्तेजित करे (को०] । समुत्पारए--मज्ञा पुं० [स०] १ भगाना। हांक देना। २ पीछे समुत्तेजन--सञ्चा पु० [स०] उत्तेजित करने की क्रिया । वडावा या लगना । दौडाना । ३ हाँके का शिकार करना को०] । उत्तेजना देना [को०] । समुत्साह-मशा पु० [म.] उत्साह या इच्छाशक्ति [को०] । समुत्थ-वि० [सं०] १ उठा हुआ। उन्नत । २ उत्पन्न । जात । समुत्सुक-वि० [सं०] १ अत्यत वेचैन । पातुर । अधीर । २ उत्कठित । घटित । उद्भूत । उत्सुक । ३ दु खपूर्ण । शोकपूर्ण । खेदजनक [को०] । २ अत्यन। -