पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१६५

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समुद्रगुप्त ४६८३ समुद्ररसना समुद्रगुप्त-सञ्ज्ञा पुं० [स०] गुप्त राजवंश के एक बहुत बडे, प्रसिद्ध समुद्रफल-सञ्ज्ञा पु० [सं०] एक प्रकार का सदावहार वृक्ष जो अवधा वीर सम्राट् का नाम जिनका समय सन् ३३५ से ३७५ ई० मध्य भारत ग्रादि मे नदियो के किनारे और तर भूमि मे तथा तक माना जाता है। कोकण मे समुद्र के किनारे बहुत अधिकता से पाया जाता है। विशेप-अनेक बडे बडे राज्यो को जीतकर गुप्त साम्राज्य हुगली विशेष-यह प्राय ३० से ५० फुट तक ऊँचा होता है। इसकी से चवल तक और हिमालय से नर्मदा तक विस्तृत था। लकडी सफेद और बहुत मुलायम होती है और कुछ भूरी या पाटलिपुत्र मे इनकी राजधानी थी, परतु अयोध्या और कौशावी काली होती है। इसके पत्ते प्राय तीन इंच तक चौडे और दस भी इनकी राजधानियां थी। इन्होने एक बार अण्वमेव यज्ञ इच तक लवे होते है। शाखाप्रो के अत मे दो ढाई इच के घेरे भी किया था। के गोलाकार सफेद फूल लगते हैं। फल भी प्राय इतने ही बडे समुद्रगृह मज्ञा ० [स०] १ ग्रीष्म ताप से वारण के लिये जल के होते है जो पकने पर नीच की ओर से चिपट या चौपहल हो बीच मे बना हुआ भवन । २ नहाने का कक्ष। स्नान- जाते है। वैद्यक के अनुसार यह चरपरा, गरम, कडवा और गृह [को०)। त्रिदोपनाशक होता हे तथा सन्निपात, भ्राति, सिर के रोग और समुद्रचुलुक-यहा पु० [स०] अगस्त्य मुनि जिन्होने चुल्लुओ से समुद्र भूतबाधा आदि को दूर करता है। पी डाला था। समुद्रफेन-सज्ञा पु० [म०] समुद्र के पानी का फेन या झाग जो उसके समुद्रज'-वि० [स०] समुद्र से उत्पन्न । समुद्रजात । किनारे पर पाया जाता है और जिसा व्यवहार प्रोपधि के समुद्रज'--सज्ञा पुं० मोती, हीरा, पन्ना आदि रत्न जिनकी उत्पत्ति रूप मे होता है । समु दरफेन । समुदर झाग । ममुद्र से मानी जाती है। विशेष-समुद्र में लहरे उठने के कारण उसके खारे पानी मे एक समुद्रझाग-सञ्ज्ञा पु० [स०] समुद्रफैन । प्रकार का झाग उत्पन्न हाता है जो किनारे पर पाकर जम जाता है । यही झाग समुद्रफेन के नाम से बाजारों में विकता समुद्रतट, समुद्रतीर-सज्ञा पुं॰ [स०] समुद्र का किनाग। है। देखने मे यह सफेद र । का, ख रखरा, हलका और जालो- समुद्रदयिता-सञ्ज्ञा सी० [स०] नदी। दरिया। दार होता है। इसका स्वाद, फोका, ताखा पार खारा होता समुद्रनग्नीत - सज्ञा पुं॰ [स०] १ अमृत । २ चद्रमा । है। कुछ लोग इसे एक प्रकार को मछलो को हड्डियो का समद्रनवनीतक--मक्षा पुं० [स०] दे० 'समुद्रनवनीत' । पजर भो मानते है । वैद्यक के अनुसार यह कसैला, हलका, समुद्रनेमि. समुद्रनेमो--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [म०] पृथ्वी । शीतल, सारक, रुचिकारक, नेत्रो को हितकागे, विष तथा समुद्रपत्नी--सज्ञा स्त्री॰ [स०] नदी । दरिया। पित्तविकार का नाशक और नेत्र तया कठ ग्रादि के रोगो को समुद्रपर्यंत--वि० [स० समुद्रपर्यन्त] जिमको सीमा समुद्रतक दूर करनेवाला होता है। हो। आसमुद्र (को०] । समुद्रभव-वि० [स०] जो समुद्र मे उत्पन्न हो । समुद्रजात (को॰] । समुद्रपात-सञ्ज्ञा पुं० [स० समुद्र + हि० पात ( = पत्ता)] एक प्रकार समुद्रमडूको 1-सज्ञा श्री० [म० समुद्रमण्टूबी पुराणानुसार एक दानव की झाडदार लता जो प्राय सारे भारत मे पाई जाती है । समु दर का पत्ता । समु दरसोख । समुद्रमथन सज्ञा पु० [स० समुद्रमन्थन । समुद्र को मथना । विशेष - इसके डठल बहुत मजबूत और चमकीले होते है और समुद्रमथन-सक्षा पु० [स०। १ सिंधु का मथन । समुद्रमथन । पत्ते प्राय पान के आकार के होते है। पत्ते ऊपर की ओर हरे २ एक दैत्य का नाम (को०] । और मुलायम होते है। इन पत्तो मे एक विशेष गुण यह होता समुद्रमहिषो --सञ्ज्ञा स्त्री० [म०] समुद्र की पत्नी । गगा नदी [को०] । है कि यदि घाव आदि पर इनका ऊपरी चिकना तल रखकर समुद्रमालिना-सञ्ज्ञा जो० [स०] पृथ्वी, जो समुद्र को अपने चारो ओर वाँधा जाय, तो वह घाव सूख जाता है । और यदि नीचे का माला की भाँति धारण किए हुए ह । रोएँदार भाग रखकर फोडे आदि पर बाँधा जाय, तो वह समुद्रमेखला-सझा सो० [स०] पृथ्वी, जो समुद्र को मेखला के समान पककर बह जाता है। वसत के अत मे इसमे एक प्रकार धारण किए हुए है। के गुलाबी रंग के फूल लगते हैं जो नली के आकार के लवे समुद्रयात्रा-सधा ना [स०] समुद्र के द्वारा दूसरे देशो की यात्रा। होते है । ये फूल प्राय रात के समय खिलते है और इनमे से वहुत मीठी गध निकलती है। इसमे एक प्रकार के गोल, समुद्रयात्रो-वि० [स० समुयानिन्। समुद्रयात्रा करनेवाला । चिकने, चमकीले और हलके भूरे रंग के फल भी लगते हे । समुद्रयान-सक्षा ५० [स०, १ समुद्र यात्रा । २ समुद्र पर चलने की सवारो। जैसे,-जहाज, स्टोमर आदि । वैद्यक के अनुसार इसकी जड बलकारक और आमवात तथा स्नायु सबधी रोगो को दूर करनेवाली मानी गई है, और समुद्रयायो-वि० [स० समुद्रयायिन्। दे० 'समुद्र ग' को॰] । इसके पत्ते उत्तेजक, चर्मरोग के नाशक और घाव को भरनेवाले समुद्रयोषित् --सक्षा स्त्री० [१०] सरिता । नदी (को॰] । कहे गए हैं। समुद्ररसना-सचा त्रास०] पृथ्वी। का नाम। 1