मम्रथ ४६६० सर' सम्रय-वि० [स० समर्थ, हिं० समरथ] दे० 'समर्थ' । सयानपन--सञ्ज्ञा पुं० [हिं० सयान+पन (प्रत्य॰)] १ सयाना होने का भाव। सम्राज्ञो-सज्ञा स्त्री० [स०] १ सम्राट् की पत्नी। २ साम्राज्य की २ चतुरता। बुद्धिमानी। होशियारी। ३ अधीश्वरी। चालाकी । धूर्तता। सयाना'-वि० [म० सज्ञान] [वि॰ स्त्री० सयानी] १ अधिक अवस्था- सम्राट -सज्ञा पुं॰ [स० सम्राज वह बहुत बड़ा राजा जिसके अधीन वहत से राजा महाराज आदि हो और जिसने राजसूय यज्ञ वाला । वयस्क । जैसे,—अब तुम लडके नही हो, सयाने हुए । भी किया हो । महाराजाधिराज । शाहशाह । उ०-भली बुद्धि तेरै जिय उपजी, वडी वैस अब मई सयानी। सूर०, १०॥३६५। २ वुद्धिमान् । चतुर । होशियार । उ०-- सम्हरना, सम्हलना --क्रि० अ० [हिं० सँभलना] दे० 'समलना' । और काहि विधि करी तुमहिं ते कौन सयानो।-सूर०, सम्हार, सम्हाल-सज्ञा स्त्री० [सं० सम्भार] २० सँभाल'। १०१४६२ । ३ चालाक । धूर्त । सम्हारना, सम्हालना-क्रि० स० [स० सम्भार] दे० 'सँभालना'। उ०-(क) हीरा जनम दियौ प्रभु हमको दीनी बात सम्हार । सयाना--सक्षा पु० [स०] १ वडा बृढा । वृद्ध पुरुप । २ वह जो माड- फूक करता हो। जतर मतर करनेवाला। अोझा । ३ --सूर०, ११९६ । (ख) अानंद उर अचल न सम्हारति चिकित्सक । हकीम । ४ गाँव का मुछिया। नवरदार । सीस सुमन वरपावति ।--सूर०, १०।२३ । सयानाचारी--सज्ञा स्त्री० हिं० सयाना+चार (प्रत्य॰)] वह रसूम सय-सचा पु० [स० शत, प्रा० सय] दे० 'शत' । उ०--दिन दिन जो गाँव के मुखिया को मिलता है। सय गुन भूपति भाऊ । देखि सराह महा मुनिराऊ।- सयावक--वि० [स०] लाक्षारजित । जावकयुत [को०) । मानस, ११३६०। सयूथ्य--सज्ञा पुं० [स] यौ--सयगुन = सीगुना। जो समान समूह, श्रेणी या वर्ग का हो (को०)। सयन'--मज्ञा पु० [स०] १ वधन । २ विश्वामित्र के एक पुन सयोग--सज्ञा पुं० [स०] मेल । मिलाप । सयोग । सगम [को० । का नाम। सयोनि'--वि० [स०] १ जो एक ही योनि से उत्पन्न हुए हो । २ स्यन-सा पु० स० शयन] १ शयन करने का आसन । विस्तर । एक ही जाति या वर्ग प्रादि के । उ०--निज कर राजीवनयन पल्लव-दल रचित सयन प्यास सयोनि-सज्ञा पुं० १ इद्र का एक नाम । २ सहोदर भ्राता। सगा परस्पर पियूप प्रेम पान की।—तुलसी (शब्द०)।२ लेटने की क्रिया। सोने की क्रिया। उ०--सयन करहु निज निज गृह भाई (को० । ३ सुपारी आदि काटने का सरौता (को॰) । जाई।-मानस, ६।१४ । सयोनिता-सज्ञा स्त्री॰ [म०] सयोनि होने का भाव या धर्म । र यन--सशा सी० [स० सैन्य] सेना। वाहिनी। सैन्य । उ०-- सयोनीय पथ-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] खेतो मे जानेवाला मार्ग । तट कालिंद्री तहँ विमल करि मुकाम नृपराज । सथ्थ सयन सयोपए- वि० [स०] स्त्रियों से युक्त । स्त्रियो के साथ [को॰] । मामत भर सूर जु आए साज ।-पृ० रा०, ६१।१३५ । सरग'-सशा पु० [स० सरडग ] १ चौपाया। चतुष्पद जतु। २ र यल पु- सज्ञा पु० [स० शैल] पर्वत । शिखर । दे० 'शैल' । उ० चिडिया । पक्षी। ३ एक प्रकार का मृग । सारग (को०) । गहि सयल तेहि गढ पर चलावहि जहं सो तह निसिचर सरग-वि० १ अनुनासिक युक्त । सानुनासिक । २ वर्ण या हए।-मानस, ६।४८ । रगयुक्त । रगीन (को०] । सयान-सज्ञा पुं० [हिं०सयानापन] दे० 'सयानापन'। उ०-पाई सरजाम- राश पु० [फा०] दे० 'सरप्रजाम' । गौने कालि ही, सीखी कहा सयान । अब ही ते रुसन लगी, सरड-सज्ञा पु० [स० सरण्ड] १ पक्षी। चिडिया। २ कामुक या अव ही तै पछितान । मतिराम (शब्द०)। लपट व्यक्ति । ३ कृकलास । ४ धूर्त या खल व्यक्ति । सयान-वि० [स० सज्ञान] ज्ञानवान् । कुशल । चतुर । जिसे जान ५ एक प्रकार का आभपण [को०] । कारी हो । चालाक | उ०-सोड सयान जो परधन हारी। सरडर-वि० [अ० सरटर्ट] जिसने अपने को दूसरे के हवाले किया जो कर दम सो वड प्राचारी।-मानस, ७।१८। हो। जिमने दूसरे के समुख आत्मसर्मपण किया हो। उप- यो-गयानपन = चतुरता या चालाकी। स्थित । हाजिर । जैसे,--उनपर गिरफ्तारी का वारट था, सयानप-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० सयान+प (प्रत्य॰)] दे० 'सयानापन' । सोमवार को अदालत मे सरडर हो गए। उ०-(क) हरि तुम वलि को छलि कहा लीन्यौ। वाँवन गए क्रि० प्र०--करना।--होना । बंधाए अापुन कौन सयानप कीन्यौ।-सूर०, ८।१५ । (ख) मर'-सज्ञा पु० [स० सरस्] १ वडा जलाशय । ताल । तालाव । अति सूधो सनेह को मारग हे जहँ नेंकु सयानप वाँक नही ।- २ गमन । गति (को०) । ३ तीर। वारण। उ०-सत घनानद, पृ० ८६ । सत सर मारे दस भाला।-मानस, ६८२ । सयानपत यु-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० सयान+पत (प्रत्य॰)] चालाकी । हुआ दूध । दही का चक्का (को०)। ५ नमक (को॰) । ६ लडी। हार। माला (को०)। ७ झरना । जलप्रपात ४ जमा धूतता।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१७२
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